गाँव में मज़दूर, क़िसान, व्यापारी, कारीगर सभी के बीच समन्वय- बी. सुंदरन

गाँव में मज़दूर, क़िसान, व्यापारी, कारीगर सभी के बीच समन्वय- बी. सुंदरन
– भूमिहीन कृषि मज़दूरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर संगोष्ठी संपन्न
जयपुर, 7 मार्च। स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर और RHRD फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय परिसर में भारतवर्ष में भूमिहीन कृषि मज़दूरों की सामाजिक आर्थिक स्थिति विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस अवसर पर मुख्य वक्ता भारतीय मज़दूर संघ के अखिल भारतीय संगठन मन्त्री बी. सुंदरन ने कहा कि समाज़ के यथार्थ सत्य को समझना आवश्यक है। गाँव में मज़दूर, क़िसान, व्यापारी, कुशल कारीगर सभी के बीच समन्वय है। भारतीय समाज की यही विशेषता है, जिसमें सभी जाति समाज अपनी-अपनी विधाओं में पारंगत होते हैं, ऐसा विश्व में कहीं नहीं है। अपने जीवन में भोजन की आदतों में भी ग्रामीण व्यवस्था झलकनी चाहिए ताकि हम अपने क्षेत्र में ज्वार, बाजरा, मोटा अनाज, सांगरी या अन्य विशेष वस्तुएँ जो कि उस क्षेत्र को पहचान देती हैं, उन्हीं का उपयोग करें। महानरेगा से परिवारों के अंदर मज़दूर वर्ग को कुछ आर्थिक शक्ति मिली है। समाज में सभी नागरिकों को मिलकर कार्य करना है, अब इसके लिए हमें सबको प्रेरित करना चाहिए।
भारतीय समाज विज्ञान अनुसन्धान परिषद के सीनियर रिसर्च फेलो एवं लेखक डॉ. धर्मवीर चंदेल ने भूमिहीन किसानों की समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी समस्या स्वाधीनता के बाद भी बनी हुई है, उन पर कभी फोकस ही नहीं किया गया। डॉ. अंबेडकर ने वायसराय की काउंसिल में लेबर सचिव के रूप में भूमिहीन किसानों की समस्या के लिए एक आयोग का गठन किया, लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण रिपोर्ट ही नहीं आ पाई। उन्होंने कहा कि आज भी भूमिहीन किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने देश में गाँव की खुशहाली से देश की खुशहाली को ध्यान में रखकर योजनाएँ बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि हरिसिंह गौड़ कृषि विश्वविद्यालय सागर के कुलाधिपति के.एल. बेरवाल ने RHRD के माध्यम से सामाजिक सौहार्द स्थापित किए जाने वाले प्रयासों के बारे में जानकारी दी।
अध्यक्षता कर रही डॉ. विमला डुकवाल ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। राष्ट्रगान से संगोष्ठी का समापन हुआ। मंच संचालन गोमाराम जीनगर ने किया।