गाय के गोबर से बनाये जा रहे दीये
स्वदेशी दीपावली श्रृंखला – तीन
जयपुर। राजस्थान में गोशाला में काम करने वाली महिलाओं का एक समूह गाय के गोबर से बने दीये तैयार करने के लिए आगे आया है। ये दीये न केवल इको फ्रेंडली हैं बल्कि वोकल फॉर लोकल अभियान को भी बढ़ावा दे रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण और महिला स्वयं सहायता समूहों को रोज़गार उपलब्ध कराने की दिशा में गोबर से बने दीयों को अहम माना जा रहा है। बता दें रंग-बिरंगे गोबर के ये दीये पहली बार बाजार में आए हैं। जयपुर सहित बीकानेर, भीलवाड़ा और श्री डूंगरगढ़ की गोशालाओं में गाय के गोबर से दीपक बनाने का कार्य तेजी से चल रहा है।
सांगानेर में टोंक रोड़ स्थित पिंजरापोल गोशाला स्थित सनराइज ऑर्गेनिक फार्म में गाय के गोबर से दीपक बनाने के लिए हेरीमेन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी से जुड़ी महिलाओं ने इस दिशा में अभिनव पहल की है। कुछ समय पहले तक यहां पर दर्जनों महिलाएं ऑर्गेनिक पार्क में औषधि की खेती करती थीं। इन्हीं महिलाओं ने गाय के गोबर को आर्थिक और सामाजिक स्थिति मजबूत करने का जरिया बना लिया। ये आकर्षक दीये बनाने के साथ-साथ लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति सहित कई तरह की कलात्मक चीजें भी बना रही हैं।
महिलाओं को सशक्त करने में मिल रही मदद
सोसायटी की अध्यक्ष मोनिका गुप्ता बताती हैं कि जब लक्ष्मी जी की पूजा होती है तो उसके पट्टे के नीचे गाय के गोबर का ही लेप किया जाता है क्योंकि गाय का गोबर पवित्र माना जाता है। इसके साथ-साथ हमें महिलाओं को भी सशक्त करना है तो हम दोनों को जोड़कर गाय के गोबर से दीपक बना रहे हैं। इससे पर्यावरण भी दूषित नहीं होगा।
पर्यावरण संरक्षण में सहायक हैं गोबर से बने दीये
आगे जोड़ते हुए मोनिका बताती हैं कि चीन के बने उत्पाद यदि हम प्रयोग करते हैं तो दिवाली बीत जाने के बाद में ढेर सारा कचरा पड़ा रह जाता है जिससे वातावरण दूषित होता है, लेकिन यदि गाय के गोबर का दीपक प्रयोग करने के बाद उसे फेंक भी दिया जाए तो वह उल्टा जमीन के लिए फ़ायदेमंद साबित होगा। दरअसल, गोबर से बना दीपक मिट्टी के साथ मिलकर जमीन को उपजाऊ बनाता है। मोनिका का लक्ष्य 25 हजार दीये बनाने का है ताकि लोग गाय के गोबर के महत्व को जानें। अभी तक जयपुर सहित तेलंगाना, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा में गाय के गोबर के दीयों की मांग बढ़ी है। होल सेल में ये दीये 250 रुपए प्रति सैकड़ा दीपक बिक रहे हैं।
वहीं सनराइज ऑर्गेनिक पार्क के संचालक डॉक्टर अतुल गुप्ता ने बताया कि इस दीपक के जलने से घर में हवन की खुशबू महकेगी। इससे वातावरण में पटाखों की गैस को कम करने में भी सहायता मिलेगी। मिट्टी के दीये बनाने और पकाने में पर्यावरण को होने वाले नुकसान के स्थान पर गोबर के दीयों को इको फ्रेंडली माना जाता है। अतुल गुप्ता कहते हैं कि दीपावली के पर्व पर भारत में हजारों करोड़ रुपए का व्यापार होता है। जिसमें चीन में बनी झालरों, लक्ष्मी व गणेश जी की मूर्तियों का भी बड़ा बाजार था। हमारी संस्था ने सर्वप्रथम गाय के गोबर से दीपक बनाने का कार्य किया। इससे अनेक फायदे हुए। हजारों महिलाओं को रोज़गार तो प्राप्त हुआ ही, अब लोकल फॉर वोकल के अंतर्गत यहां की अर्थव्यवस्था भी यहां के लिए ही कार्य करेगी और पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा।
चीनी माल की सबसे बड़ी समस्या
चीन निर्मित दीयों में सबसे बड़ी समस्या यह होती थी कि उनके उपयोग के बाद उनका क्या किया जाए, क्योंकि इन दीयों में रासायनिक तत्वों के अलावा पीओपी जैसे तत्वों का उपयोग होता है जो कहीं न कहीं पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित होता है। लेकिन गाय के गोबर और मिट्टी से निर्मित दीये न सिर्फ उपयोग के लिए अच्छे हैं बल्कि निस्तारण के लिए भी बेहद उपयोगी साबित हो रहे हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि इससे न केवल पर्यावरण सुरक्षित रहेगा बल्कि महिलाओं को भी रोज़गार प्राप्त हो रहा है।