गुरु समान परम पवित्र भगवा ध्वज

गुरु समान परम पवित्र भगवा ध्वज

प्रहलाद सबनानी

गुरु समान परम पवित्र भगवा ध्वजगुरु समान परम पवित्र भगवा ध्वज

भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति में आस्था रखने वाले व्यक्तियों के लिए उनके जीवन में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा माना गया है। परम पूज्य गुरुदेव जीवन में आने वाले विभिन्न संकटों से न केवल उबारते हैं बल्कि इस जीवन को जीने की कला भी सिखाते हैं ताकि इसे सहज रूप से जिया जा सके। भारत के मठ, मंदिरों एवं गुरुद्वारों में इसलिए प्रत्येक वर्ष व्यास पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन का विशेष पर्व मनाया जाता है एवं इस शुभ दिन पर गुरुओं की पूजा अर्चना की जाती है ताकि उनका आशीर्वाद सदैव उनके भक्तों पर बना रहे। कई मंदिरों में गुरु पूजन एवं ध्वजा वंदन के समय कई गीत भी गाए जाते हैं, जैसे “हम गीत सनातन गाएंगे, हम भगवा ध्वज लहराएंगे।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक किसी व्यक्ति या ग्रंथ की जगह केवल भगवा ध्वज को अपना मार्गदर्शक और गुरु मानते हैं। जब डॉक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रवर्तन किया, तब अनेक स्वयंसेवक चाहते थे कि संस्थापक के नाते वे ही इस संगठन के गुरु बनें; क्योंकि उन सबके लिए डॉक्टर हेडगेवार का व्यक्तित्व अत्यंत आदरणीय और प्रेरणादायी था। इस आग्रहपूर्ण दबाव के बावजूद डॉक्टर हेडगेवार ने हिंदू संस्कृति, ज्ञान, त्याग और सन्यास के प्रतीक भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने का निर्णय लिया। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष व्यास पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) के दिन संघ स्थान पर एकत्र होकर सभी स्वयंसेवक भगवा ध्वज का विधिवत पूजन करते हैं। अपनी स्थापना के तीन साल बाद संघ ने वर्ष 1928 में पहली बार गुरु पूजा का आयोजन किया था। तब से यह परम्परा अबाध रूप से जारी है और भगवा ध्वज का स्थान संघ में सर्वोच्च बना हुआ है। भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने के पीछे संघ का दर्शन यह है कि किसी व्यक्ति को गुरु बनाने पर उसमें पहले से कुछ कमजोरियां हो सकती हैं या कालांतर में उसके सदगुणों का क्षय भी हो सकता है, लेकिन ध्वज स्थायी रूप से श्रेष्ठ गुणों की प्रेरणा देता रह सकता है।

भारत और कई दूसरे देशों में ऐसे अनेक धार्मिक एवं आध्यात्मिक संगठन हैं, जहां इन संगठनों के संस्थापकों को गुरु मानकर उनका पूजन करने की परम्परा है। इस प्रचलित परिपाटी से हटकर संघ में डॉक्टर हेडगेवार की जगह भगवा ध्वज को गुरु मानने का विचार विश्व में समकालीन इतिहास की अनूठी पहल है। जो संगठन दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन गया है, उसका सर्वोच्च पद भगवा ध्वज को प्राप्त है। कालांतर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय मज़दूर संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय किसान संघ, विश्व हिंदू परिषद जैसे कई संगठनों ने भगवा ध्वज को अपने गुरु के रूप में अपना लिया। यह भगवा रंग राष्ट्रीय प्रतीक रूप में भारत के करोड़ों लोगों के मन में विशिष्ट स्थान बना चुका है।

कई बार यह प्रश्न मन में उभरता है कि ध्वज, भगवा रंग का ही क्यों चुना गया? इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है कि एडवांस कलर थेरेपी के अनुसार भगवा रंग समृद्धि एवं आनंद का प्रतीक माना जाता है, यह रंग न केवल आंखों को एक अपूर्व राहत व शांति देता है बल्कि मानसिक रूप से संतुलन बनाने के साथ यह क्रोध पर नियंत्रण करते हुए प्रसन्नता को बढ़ाता है। ज्योतिष शास्त्र में भगवा रंग बृहस्पति ग्रह का रंग है। यह ज्ञान को बढ़ाता है और आध्यात्मिकता का प्रसार करता है। भगवा पवित्र रंग है और युगों से हमारे धार्मिक आयोजनों में और साधु संतों के पहनावे में प्रयोग होता रहा है। हमारे पूर्वज भगवा ध्वज के सम्मुख नतमस्तक होते रहे हैं। सूर्य में विद्यमान आग और वैदिक यज्ञ की समिधा से निकलने वाली आग भी भगवा रंग की है। भारतवर्ष में विदेशी आक्रांताओं और आक्रमणकारियों के खिलाफ युद्ध भी भगवा ध्वज के तले ही लड़े गए हैं। भगवा रंग प्रकृति से जुड़ा हुआ है, सूर्यास्त और सूर्योदय के समय ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति का पुनर्जन्म हो रहा हो। सूर्य की यह लालिमा नकारात्मक तत्वों को साफ करती है। यह बलिदान का प्रतीक है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महाराष्ट्र प्रांत कार्यवाह एनएच पालकर ने भगवा ध्वज पर एक रोचक पुस्तक लिखी है। मूलतः मराठी में लिखी यह पुस्तक सन 1958 में प्रकाशित हुई थी। बाद में इसका हिन्दी संस्करण प्रकाशित हुआ। इसके अनुसार, सनातन धर्म में वैदिक काल से ही भगवा ध्वज फहराने की परम्परा मिलती है। “वैदिक साहित्य में ‘अरुण केतु’ के रूप में वर्णित इस भगवा ध्वज को हिन्दू जीवन शैली में सदैव प्रतिष्ठा प्राप्त रही है। यह ध्वज हिन्दुओं को हर काल में विदेशी आक्रमणों से लड़ने और विजयी होने की प्रेरणा देता रहा है। इसका सुविचारित उपयोग हिन्दुओं में राष्ट्र रक्षा के लिए संघर्ष का भाव जाग्रत करने के लिए होता रहा है।” मध्यकाल के प्रसिद्ध भक्ति आंदोलन और हिन्दू धर्म में युगानुरूप सुधार के साथ इसके पुनर्जागरण में भी भगवा व सन्यासी रंग की प्रेरक भूमिका थी। भारत के अनेक मठ मंदिरों पर भगवा झंडा फहराया जाता है, क्योंकि इस रंग को शौर्य और त्याग जैसे गुणों का प्रतीक माना जाता है।

सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने जब हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हजारों सिख योद्धाओं की फौज का नेतृत्व किया, तब उन्होंने केसरिया झंडे का उपयोग किया। यह ध्वज हिंदुत्व के पुनर्जागरण का प्रतीक है। इस झंडे से प्रेरणा लेते हुए महाराज रणजीत सिंह के शासन काल में सिख सैनिकों ने अफगानिस्तान के काबुल कांधार तक को फतह कर लिया था। उस समय सेनापति हरिसिंह नलवा ने सैनिकों का नेतृत्व किया था। जब राजस्थान में मुगलों का हमला हुआ, तब राणा सांगा और महाराणा प्रताप के सेनापतित्व में राजपूत योद्धाओं ने भी भगवा ध्वज से वीरता की प्रेरणा लेकर आक्रमणकारियों को रोकने के लिए ऐतिहासिक युद्ध किए। छत्रपति शिवाजी और उनके साथियों ने मुगल शासन से मुक्ति और हिन्दू राज्य की स्थापना के लिए भगवा ध्वज की छत्रछाया में ही निर्णायक लड़ाइयां लड़ीं। मुगलों के आक्रमण को विफल करने के लिए दक्षिण भारतीय राज्य विजयनगरम के राजाओं की सेना द्वारा भी भगवा ध्वज को शौर्य और बलिदान की प्रेरणा देने वाले झंडे के रूप में फहराया जाता था।

आधुनिक भारत में शुरुआती दौर में तो भगवा ध्वज को ही भारत के ध्वज के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 1905 में सिस्टर निवेदिता ने एक ध्वज बनाया था जिस पर वज्र (इंद्र देवता का शस्त्र) अंकित था। इसका रंग लाल और पीला था। दिसम्बर 1906 के कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सिस्टर निवेदिता द्वारा बनाए गए ध्वज को प्रदर्शित किया गया था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता दादा भाई नैरोजी ने की थी। इसके बाद वर्ष 1929 में पुनः भगवा ध्वज को भारत का राष्ट्रीय ध्वज बनाए जाने के प्रयास हुए थे। दरअसल वर्ष 1929 के लाहौर अधिवेशन में सिख सम्प्रदायी हिंदुओं ने यह मांग उठाई थी कि केसरी रंग को भी ध्वज में स्थान मिलना चाहिए। 2 अप्रैल 1931 को कराची में हुए अधिवेशन में ध्वज का रंग एवं आकार निश्चित करने के लिए, एक समिति का गठन किया गया। इसमें सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आजाद, सरदार तारा सिंह, पंडित जवाहरलाल नेहरू, काका कालेलकर, डॉक्टर पट्टाभि सीतारम्मैया और डॉक्टर हार्डिकर – सात सदस्य शामिल किए गए थे। इस समिति ने 6,7,8 अगस्त को मुंबई में अखिल भारतीय समिति की बैठक में अपना लिखित अभिमत प्रस्तुत किया, जिसमें भगवा ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज बनाए जाने की बात की गई थी। “राष्ट्रीय ध्वज एक ही रंग का रहे इस पर हम सब एकमत हैं। सब हिन्दी लोगों का एक साथ उल्लेख करना हो तो सबके लिए सर्वाधिक मान्य केसरी रंग है। अन्य रंगों से यह अधिक स्वतंत्र स्वरूप का रंग है और इस देश को पूर्व परम्परा से वह अपना सा लगता है।”

समिति की इस रिपोर्ट से सबसे ज़्यादा प्रसन्नता डॉक्टर हेडगेवार को हुई थी क्योंकि वर्ष 1925 में विजयादशमी को उन्होंने हिन्दू राष्ट्र के पुनरुत्थान की महान मंगल आकांक्षा से प्रेरित होकर भगवा ध्वज आरोहित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शुभारम्भ किया था।

हालांकि उक्त रिपोर्ट को कांग्रेस ने नहीं माना था। परंतु, झंडा समिति के वृत्त से कुछ अनुकूल बदल हुआ। पहले तिरंगे ध्वज में रंगों का ऊपर से नीचे तक क्रम सफेद, हरा और लाल स्वीकृत किया जा रहा था, अब केसरी, सफेद और हरा यह क्रम तय हुआ और पूर्व के लाल रंग को हटा कर केसरी रंग को शामिल किया गया। इस प्रकार राष्ट्रीय ध्वज के रंगों को स्वीकृति प्रदान की गई थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आज भगवा ध्वज के साथ साथ राष्ट्रीय ध्वज को भी पूर्ण सम्मान देते हुए, इसे भी फहराया जाता है।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *