गोबर क्रांति: लोगों को पसंद आ रहे हैं गोमय उत्पाद
गोबर क्रांति: लोगों को पसंद आ रहे हैं गोमय उत्पाद
जयपुर। वर्षों पहले तक क्या किसी ने यह सोचा था कि, गोबर से बने साबुन से भी नहाया जा सकता है या गोबर से ही बने इत्र को लगाकर लोगों के बीच सुगंध बिखेरी जा सकती है? शायद नहीं। लेकिन टच स्क्रीन की इस आभासी दुनिया में जहां एक क्लिक पर दुनिया भर के काम हो रहे हैं, वहीं गोबर से बने साबुन और इत्र की सुगंध भी तेजी के साथ एक क्रांति की तरह फैल रही है। इतना ही नहीं दीपक, राखी, गोकाष्ठ, धूपबत्ती, कागज—पेन, साबुन, शैम्पू, हवन सामग्री, तेल, मंजन, पेंट, पेपर, बैग, ईंट और भी कई सारे गोमय उत्पाद इन दिनों तेजी के साथ मार्केट में जगह बना रहे हैं। अब गोबर सिर्फ कंडे बनाने के काम नहीं आ रहा, यह रचनात्मकता का प्रतीक बन गया है।
गोमूत्र से विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनाई जा रही हैं, जो पेट की बीमारियों से लेकर चर्म रोगों, आंत्रशोथ, पीलिया, सांस की बीमारी, विरेचन कर्म, मुख रोग, नेत्र रोग, अतिसार, मूत्राघात, कृमिरोग आदि अनेक रोगों में प्रभावी हैं।
गोमय उत्पादों की बढ़ती लोकप्रियता के चलते इसे गोबर क्रांति कहा जाने लगा है।लगभग दो दशक से गोवंश संरक्षण व संवर्धन पर काम कर रहे श्रीगंगानगर के नोहर भादरा उपज मंडी के सचिव पं.विष्णु शर्मा कहते हैं कि, ”गोबर और गोमूत्र से उत्पादों का निर्माण वास्तव में एक क्रांति है। इससे गोवंश की दशा में सुधार आएगा। गोबर और गोमूत्र की उपयोगिता बढ़ेगी तो लोग गोवंश के संरक्षण के लिए प्रेरित होंगे। लावारिस गोवंश की संख्या में कमी आएगी तो गोतस्करी में भी कुछ हद तक कमी आएगी। अभी ऐसे गोवंश पर गोतस्करों की नजरें रहती हैं।”
पं.विष्णु शर्मा आगे बताते हैं कि, आज कुछ लोगों के प्रयास से गायों के संर्वधन और सरंक्षण के लिए काम किया जा रहा है। आम व्यक्ति कैसे पुन: गायों से जुड़ सके, इसके लिए पंचगव्य से अलग—अलग तरह के उत्पादों का भी निर्माण किया जा रहा है, जो अब घरों तक पहुंचने लगे हैं। सुझाव के रूप में शर्मा कहते हैं कि, ”हम पुन: अपनी प्रकृति, गांव और गाय की ओर लौंटे। गोमय उत्पादों का उपयोग करना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।”
वहीं, पिछले कुछ वर्षों से पंचगव्य से लोगों का उपचार कर रहीं जयपुर निवासी अनीता शर्मा कहती हैं कि ईश्वर ने हमारी गोमाता के इन पंचगव्यों दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर में अपार शक्ति दी है। इनके माध्यम से असाध्य रोगों का उपचार किया जा सकता है। शर्मा अपनी गोशाला में गोमूत्र और गोबर से कई सारे उत्पादों का निर्माण करती हैं। जो उपचार के अलावा बेचे भी जाते हैं। वे गहरी चिंता जताती हैं कि, ”हम लोग आधुनिकता की अंधी दौड़ में अपनी संस्कृति, संस्कार और परंपराओं को भूल चुके हैं, इसलिए ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक व्याधियों ने हमको बुरी तरह से घेर लिया है। हमारी आधुनिक जीवनशैली ने हमें डायबिटीज, हाइपरटेंशन, थाइरॉयड, डिप्रेशन और मोटापा जैसी अनेक बीमारियां दी हैं। जीवन शैली आधारित इन बीमारियों को ठीक किया जा सकता है यदि हम संयमित जीवन जिएं। इसके लिए हमें खान पान से सम्बंधित अपनी पुरानी परम्पराएं अपनानी होंगी, पंचगव्यों की ओर लौटना होगा साथ ही शारीरिक श्रम को भी महत्व देना होगा।”
हमारे ग्रंथों में कहा गया है- गोमय वस्ते: लक्ष्मी। अर्थात ‘गोबर में ‘मां लक्ष्मी’ निवास करती हैं’। कुछ लोग इसी टैग लाइन के साथ अब गोमय उत्पादों को जोड़कर इसे आर्थिक उद्यमिता के एक सशक्त माध्यम के रूप में देख रहे हैं। सरकार का रुख भी सकारात्मक है। भारत सरकार के उपक्रम खादी ग्रामोद्योग विभाग ने गाय के गोबर से साबुन बनाया है।
इस बिंदु पर ‘गौकृति’ के संस्थापक व देसी गोवंश के गोबर से कागज बनाने की अनूठी पहल करने वाले जयपुर के भीमराज शर्मा बताते हैं कि, 1 टन पेपर के लिए लगभग 17 पेड़ों की कटाई की जाती है। कागज के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण को लगातार हानि हो रही है। इस क्षति को रोका जा सकता है। वे कहते हैं कि, गोबर से कागज बनाकर जीरो प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिल सकती है। आज कागज बनाने के लिए पूरी दुनिया में प्रतिदिन 80 हजार से डेढ़ लाख पेड़ काटे जा रहे हैं। कागज बनाने के लिए गोबर पेड़ों का एक बड़ा विकल्प हो सकता है।
शर्मा गोबर से कागज बनाने की अपनी पहल के बारे में बताते हैं कि, ”काफी अध्ययन के बाद हमने गोबर को चुना और गोमय कागज बनाने के प्रयास में जुट गए। 2016 से हमने गोमय कागज बनाने पर काम शुरू किया। साथ ही गोबर के अन्य उत्पाद बनाना शुरू किया। 2019 में पेटेंट के लिए आवेदन किया। मिल पेपर से बने उत्पाद और हमारे गोबर से बने कागज के उत्पादन में भी ज्यादा अंतर नहीं है। मिल पेपर पेड़ को काटकर उसके पल्प से तैयार किया जाता है जबकि गौकृति कागज पूर्ण रूप से वेस्ट से तैयार होता है।” भीमराज अपने उत्पादों के निर्माण के लिए अधिक कीमत देकर गोबर खरीदने से भी नहीं हिचकते।
अपने एक अन्य प्रयोग के बारे में वे बताते हैं कि, आमतौर पर शादी के कार्ड फेंक दिए जाते हैं या रद्दी में चले जाते हैं। हम बीज और वनस्पति युक्त ऐसे कार्ड बना रहे हैं जो मिट्टी में मिलने के बाद सुंदर पौधों को जन्म देते हैं।
आज गोवंश संरक्षण हमारे सामने एक अहम प्रश्न है। क्या गो—संरक्षण की जिम्मेदारी मात्र गोशालाओं एवं गो—सदनों पर ही छोड़ देना उचित है? इसका उत्तर स्वाभाविक है ‘नहीं’..। ऐसे में आज आवश्यकता है पंचगव्य उत्पादों के बेहतर निर्माण की। इस संबंध में किए जाने वाले सही प्रयोगों की। साथ ही ऐसे प्रशिक्षण केंद्रों की भी, जो उद्यमी को विभिन्न गोमय उत्पादों की निर्माण प्रक्रिया का प्रशिक्षण दें और उसके उत्पाद को बेचने में सहायता करें। इससे जैविक खेती और पंचगव्य उत्पादों के लिए अनुकूल वातावरण बनेगा। सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देना होगा।आज यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि, हम ‘अथर्ववेद’ के उस सूत्र वाक्य को दोहराएं, “गाय संपदाओं का घर है।” इसे यथार्थ में बदलने का दायित्व हम सबका है।