गोरा धाय जयंती : छतरी पर पुष्पांजलि अर्पितकर उन्हें याद किया
जोधपुर, 04 जून। मुगल बादशाह के कहर से शिशु महाराजा अजीतसिंह को बचाकर लाने वाली बलिदानी गोरा धाय की जयंती शुक्रवार को हाईकोर्ट रोड स्थित उनकी छतरी पर मनाई गई। यहां माली समाज और अन्य वर्गों ने पुष्पांजलि अर्पितकर उनके बलिदान को नमन किया।
गोरा धाय की छतरी पर नगर निगम उत्तर महापौर कुंती परिहार, राज्यसभा सांसद राजेन्द्र गहलोत, जुगल पंवार, युवराज सोलंकी, वेदंशु भाटी, अमरचंद सैनी, राहुल कंडारा के साथ माली समाज के लोगों ने इस वीर नारी के बलिदान को नमन किया, साथ ही विश्व को कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने की कामना की। जयंती पर शुक्रवार को छतरी के आसपास सफाई की गई और इस छतरी के जीर्णोद्वार की प्रक्रिया के बारे में भी मौके पर विचार विमर्श किया गया।
उल्लेखनीय है कि शिशु महाराजा अजीतसिंह को मुगल बादशाह के शिकंजे से निकालकर लाने वाली महा बलिदानी गोरा धाय पत्नी मनोहर गहलोत की स्मृति में इस छतरी और बावड़ी का निर्माण करवाया गया था। कहा जाता है कि सन् 1679 में महाराजा अजीतसिंह का जन्म हुआ। इनके जन्म से पूर्व ही महाराज जसवंत सिंह की मृत्यु हो गयी थी। उस समय मारवाड़ का और कोई उत्तराधिकारी नहीं होने के कारण दिल्ली के शासक औरंगजेब ने मारवाड़ पर कब्जा कर लिया। अजीतसिंह का जन्म होने पर राठौड़ पुन: मारवाड़ का शासन और पद लेने के लिए औरंगजेब के पास गए। तब औरंगजेब ने शर्त रखी कि यदि युवराज अजीतसिंह का लालन-पालन दिल्ली में उसके सामने हो तभी वो ऐसा करेगा क्योंकि औरंगजेब की मंशा अजीत सिंह को मुसलमान बनाने की थी। लेकिन महाराजा जसवंत सिंह के स्वामिभक्त रहे वीर दुर्गादास राठौड़ और अन्य राजभक्तों को यह मान्य नहीं था। अत: उन्होंने अजीत सिंह को गुप्त तरीके से औरंगजेब के चंगुल से बचाने की योजना बनाई। तब जोधपुर के मंडोर निवासी मनोहर गहलोत की पत्नी बघेली रानी जिन्हें गोरा धाय भी कहा जाता था, ने एक सफाईकर्मी का वेश बनाकर अजीतसिंह को अपने पुत्र से बदलकर उन्हें दिल्ली की सीमा से सुरक्षित बाहर निकाल लिया और लगभग बीस वर्षों तक उनका लालन पालन अपने पुत्र के समान ही किया। इस तरह अपनी स्वामिभक्ति और बलिदान के कारण वे इतिहास में अमर हो गईं। बीस साल बाद अवसर पाकर वीर दुर्गादास राठौड़ और अन्य सरदारों ने पुन: जोधपुर पर अधिकार कर लिया और अजीतसिंह को राजगद्दी पर विराजमान किया। इस संघर्ष, बहादुरी व बलिदान के लिए राठौड़ों को आज भी याद किया जाता है।
सन् 1712 में महाराजा अजीतसिंह ने गोरा धाय के बलिदान और उनकी स्मृति में छह खम्भों की एक छतरी का निर्माण करवाया। ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके बलिदान और स्वामिभक्ति के बारे में उनका स्मरण करती रहें।