घुमंतू समाज का दूसरा जत्था रामलला के दर्शन कर वापस लौटा

घुमंतू समाज का दूसरा जत्था तीर्थयात्रा पर, घुमंतू जाति उत्थान न्यास की निशुल्क तीर्थ यात्रा योजना

घुमंतू समाज का दूसरा जत्था रामलला के दर्शन कर वापस लौटाघुमंतू समाज का दूसरा जत्था रामलला के दर्शन कर वापस लौटा

जयपुर। समाज में हाशिए पर रहकर जीवनयापन कर रहे घुमंतू समाज के लोगों ने शनिवार को अयोध्या पहुंच कर रामलला के दर्शन किए। उन्हें यह अवसर मिला घुमंतू जाति उत्थान न्यास के प्रयासों से। उल्लेखनीय है न्यास अपनी तीर्थ यात्रा योजना के अंतर्गत घुमंतू समाज के 50 जोड़ों को प्रति माह निशुल्क तीर्थ यात्रा करवा रहा है। इस 31 मई को दूसरा जत्था तीर्थ यात्रा पर गया था। अयोध्या-मथुरा-वृंदावन की यात्रा से वापस आने पर सभी के चेहरे खिले हुए थे। सभी का कहना था कि रामलला के दर्शन कर हम धन्य हो गए। हमारे लिए यह यात्रा अविस्मरणीय थी। रामरथ (वातानुकूलित बस) से अपनों के साथ समूह में यात्रा करना तो हमारे लिए स्वप्न जैसा ही था। आकेड़ा डूंगर निवासी कृष्ण नायक ने कहा कि हमने कभी नहीं सोचा था कि बिना एक रुपया खर्च किए इतनी सुविधाओं के साथ तीर्थ यात्रा हो सकती थी। लोहामंडी के शीतलदास महाराज ने कहा कि घुमंतू समाज की इतनी चिंता किसी ने नहीं की, जितनी घुमंतू जाति उत्थान न्यास कर रहा है। शांता कालबेलिया ने कहा कि यात्रा में एक बार भी नहीं लगा कि परिवार से दूर हूं। चेतन कौशिक, महेंद्र ज्योतिषी और मनोज कुमार ने कार्यकर्ता के रूप में हम सबका बहुत ध्यान रखा। घुमंतू जाति उत्थान न्यास- जयपुर महानगर प्रमुख राकेश कुमार शर्मा ने बताया कि अगला जत्था जुलाई के प्रथम सप्ताह में हरिद्वार-ऋषिकेश के लिए रवाना होगा।

घुमंतू समाज का दूसरा जत्था तीर्थयात्रा पर, घुमंतू जाति उत्थान न्यास की निशुल्क तीर्थ यात्रा योजना

कौन हैं घुमंतू लोग?
घुमंतू कहो, गाड़िया लोहार या बंजारे…ये सभी एक ही समुदाय के लोग हैं, जो अंग्रेजों के कपटी कानून का शिकार हुए और उसके बाद से समाज में इन्हें हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। क्या कभी ऐसा होता है कि परिवार में जन्म लेते ही नवजात शिशु का नाम देश के अपराधियों की सूची में डाल दिया जाए? भारत के घुमंतू समाज के साथ ऐसा ही हुआ, जब देश पर राज कर रही अंग्रेज सरकार ने 1871 में आपराधिक जनजाति अधिनियम बनाया। दरअसल अंग्रेज सरकार यह कानून इसलिए लाई क्योंकि कला, लोक कला और हथियारों के निर्माण व युद्ध कौशल में पारंगत इन जनजातीय समूह के लोगों को गोरे अपना ‘गुलाम’ नहीं बना पा रहे थे। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने इन पर प्रतिबंध लगाने का उपाय खोज निकाला और इस कानून के अंतर्गत कई जनजातियों को आदतन अपराधी घोषित कर दिया। कानून के अंतर्गत घुमंतू या बंजारों की गतिविधियों पर नजर रखी जाने लगी। इन्हें पुलिस थाने जाकर स्वयं का पंजीकरण करवाना अनिवार्य कर दिया गया और बिना लाइसेंस के गांव से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी। लाइसेंस न होने पर तीन वर्ष की कड़ी सजा का प्रावधान था। 1876 में यह कानून बंगाल में लागू किया गया। 1947 में अंग्रेज तो चले गए, लेकिन इनकी दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। यह बहादुर कौम स्वाधीनता के बाद भी सड़कों के किनारे रहकर ही जीवन यापन कर रही है। 31 अगस्त 1952 को गोरे अंग्रेजों के कानून की जगह काले अंग्रेजों ने एक नया कानून बना दिया, जिसे नाम दिया गया ‘अभ्यस्त अपराधकर्ता अधिनियम’। 1972 में सरकार ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया, जिसके अंतर्गत सांप पकड़ने, भालू और बंदर का खेल दिखाने पर रोक लगा दी गई। जंगल की बाड़बंदी कर दी गई और जंगल के अंदर प्रवेश करने पर रोक लग गई। मेडिकल प्रैक्टिशनर अधिनियम, क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट कानून, ड्रग एंड कॉस्मेटिक कानून जैसे कानूनों ने इनके जड़ी बूटियों के प्रयोग तथा चिकित्सा के परंपरागत तरीकों को अवैध बना दिया। 1982 में नट के रस्सी पर करतब दिखलाने पर रोक लगा दी गई। 1995 में बंजारों के नमक बेचने पर पाबंदी लगा दी गई।
राजस्थान और मध्य प्रदेश में घुमंतुओं की 10 प्रतिशत जनसंख्या के पास बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) राशन कार्ड तक नहीं हैं। इनके बुजर्गों और विधवा महिलाओं को पेंशन नहीं मिलती। इनके टोले में 150 से अधिक सदस्य रहते हैं लेकिन वहॉं एक भी आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है, जबकि कानून के अनुसार जहां भी 150 से अधिक लोगों की बस्ती है, वहां आंगनबाड़ी केंद्र होना चाहिए।

खैर! देखते हैं सरकार इनकी कब सुध लेती है। घुमंतू जाति उत्थान न्यास इनके उत्थान के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहा है।

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