चाइनीज वायरस कहना नस्लीय टिप्पणी है तो इंडियन, यूके या अफ्रीकन वेरिएंट कहना क्यों नहीं?
आजकल समाचार पत्रों में चाइनीज़ कोरोना वायरस को लेकर तरह-तरह के वेरिएंट की बात की जा रही है। कभी इंडियन वेरिएंट तो कभी यूके वेरिएंट, कभी अफ्रीकी वेरिएंट तो कभी ब्राज़ीलियाई वेरिएंट।
कोरोना वायरस के कई नए स्ट्रेन आ चुके हैं और इन सभी को उन देशों के नाम के साथ जोड़ा जा रहा है जहां उसका पहला संक्रमण केस सामने आ रहा है। इसमें भारत, ब्राजील, यूके और अफ्रीका जैसे देश शामिल हैं।
समय-समय पर इसके लक्षणों की जांच की जा रही है और बताया जा रहा है कि कौन सा वेरिएंट अधिक खतरनाक है और कौन सा कम घातक है।
पूरी दुनिया इस वायरस से जूझ रही है और भारत में दूसरी लहर में स्थिति अत्यंत ही गंभीर हो चुकी है। लेकिन इन सबके बावजूद चीनी कम्युनिस्ट प्रोपेगेंडा मशीनरी पूरे विश्व में अपने काम में लगी है।
आपने भारत-दक्षिण अफ्रीका समेत दुनिया के अलग-अलग देशों के वायरस वेरिएंट के नाम जरूर सुने होंगे लेकिन क्या आपने इसके चीनी वेरिएंट का नाम सुना है?
क्या किसी आधिकारिक बयान में या किसी मीडिया ने आधिकारिक तौर पर कोरोना वायरस को चाइनीज़ वायरस या वुहान वायरस कहना शुरू किया है?
जिस चीन से यह वायरस पूरी दुनिया में फैला वहां के वेरिएंट का नाम लेने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी आपत्ति जता दी। लेकिन जब अब अलग-अलग देशों के नाम के साथ वायरस के नए-नए वेरिएंट को जोड़ा जा रहा है तब विश्व स्वास्थ संगठन चुप्पी साधे क्यों बैठा है?
बात सिर्फ विश्व स्वास्थ्य संगठन की ही नहीं बल्कि ऐसे लोगों की भी है जिन्होंने चीनी कम्युनिस्ट सरकार का जमकर बचाव किया। चीनी सरकार के पक्ष में लेख लिखे और वायरस को चीन से जोड़ने पर ट्विटर पर जमकर नारेबाजी भी की। लेकिन जब वायरस के नए नए वेरिएंट को विभिन्न देशों के नाम से जोड़ा जा रहा है तब यह सभी चुप्पी साध कर बैठ गए हैं।
आज पूरा विश्व चीन की वजह से भयावह स्थिति से गुजर रहा है। हर दिन हजारों लोग मारे जा रहे हैं। चीन से फैले इस वायरस ने पूरी दुनिया को घेर लिया है। भारत सहित यूरोप, अमेरिका बुरी तरह से संघर्ष कर रहे हैं। पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था वेंटीलेटर पर है। यह सब कुछ चीन के कारण हुआ है।
यह बात पूरी दुनिया को समझ आ रही है लेकिन वामपंथी समूह लगातार चीन की रक्षा में लगा हुआ है। भारतीय वेरिएंट और विभिन्न देशों के वायरस वेरिएंट की बात करने वाले लोग चाइनीज़ वायरस कहने पर यह घोषित कर चुके हैं कि ऐसा कहना नस्लीय / जातीय टिप्पणी है।