चीन की तीन कमजोरियां हैं: तियानमेन नरसंहार, तिब्बत और ताइवान
‘चीन: एक वैश्विक खतरा (तियानमेन चौक नरसंहार से लेकर कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में)’ विषय पर द नैरेटिव द्वारा आयोजित सात दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार में “गलवान और भारत-चीन सैन्य परिस्थितियों के बाद का प्रभाव” विषय पर वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं रणनीतिक मामलों के विश्लेषक नितिन गोखले ने अपना व्यख्यान दिया।
उन्होंने कहा कि गलवान के मामले पर बात करने से पहले हमें थोड़ा पीछे जाना होगा, जिससे हमें समझने में और सरलता होगी। वर्ष 2013 में भी 22 दिन तक चीन के लगभग 100 सैनिकों ने भारत में घुसपैठ की थी और 22 दिनों तक टेंट लगाकर बैठे थे। इसके बाद सितंबर 2014 में चुनुर क्षेत्र में ऐसी ही एक घुसपैठ चीनी सेना द्वारा की गई थी। उस वर्ष हुई घुसपैठ की विशेष बात यह थी कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग उस समय भारतीय दौरे पर थे और वह चाहते थे कि भारत के संबंध चीन के साथ अच्छे हों, उन्होंने दिखावे के तौर पर लोगों के सामने यह बात कही थी। उस घुसपैठ के दौरान चीनी सेना ने लगभग अपने 1000 सैनिकों को सीमा पर खड़ा कर दिया था और उसकी प्रतिक्रिया में भारत ने 3000 सैनिकों को रातों-रात सीमा पर तैनात कर दिया था। इस घुसपैठ की चर्चा दिल्ली में भी हुई।
इसके बाद सन् 2017 में डोकलाम में घुसपैठ हुई। यह घुसपैठ 74 दिन तक चलती रही। इस घुसपैठ का सामना भारत ने फिर से एक बार पूरी शक्ति से किया। भारतीय सेना ने भूटान की धरती पर जाकर चीनी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से 2013 से 2017 तक भारतीय सेना ने चीनी सेना को घुसपैठ करने के बाद वापस खदेड़ा, उससे चीन ने किसी भी प्रकार का कोई पाठ नहीं सीखा। तभी इन्होंने लद्दाख में घुसपैठ करने का प्रयास किया।
उन्होंने कहा कि चीन ने गलवान घाटी में घुसपैठ करने का जो प्रयास किया वह उसकी सबसे बड़ी हार है। उन्हें ऐसा लगता था कि काफी बड़ी संख्या में चीनी सेना को खड़ा करने पर भारत तनाव में आ जाएगा और तनाव में आने के बाद अपनी सैन्य गतिविधियों में रुकावट ले आएगा। चीन ने कोरोनावायरस का भी पूरा लाभ उठाना चाहा था। चीन यह अनुमान लगाने में असफल रहा कि भारत उसकी किसी भी गतिविधि का डटकर मुकाबला करेगा।
उन्होंने 2020 में चीन द्वारा की गई घुसपैठ पर बोलते हुए यह बताया कि चीन ने भारत की तय सीमा पर घुसपैठ करते हुए अंदर आकर टेंट लगा लिए। चीनी टेंट को हटाने के लिए बातचीत हुई और उसमें यह तय हुआ कि दोनों तरफ से सैनिक पीछे हट जाएंगे 1 किलोमीटर या आधे किलोमीटर तक। 2 दिन बाद कर्नल बाबू साइट पर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि वहॉं तैनात सभी सैनिक और चीनी सेना के अफसर बदल गए हैं। उन्हें वहां सभी नए चेहरे दिखे। बातचीत में वे सभी बेहद आक्रमक थे। जैसे ही कर्नल बाबू ने उनसे टेंट हटाने की बात की वे मारपीट पर उतारू हो गए।
कर्नल संतोष बाबू और उनके लोगों पर पीछे से वार किया गया। चीनी सैनिकों की संख्या अधिक होने के बावजूद भारतीय सैनिकों ने उनसे जमकर लोहा लिया। लेकिन चीन की धूर्तता और धोखे ने हमारे 20 सैनिकों की जान ले ली। जबकि इस हमले में 45 चीनी सैनिक मारे गए, जिसे स्वीकार करने में चीन आज तक कतराता है।
उन्होंने कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में चीन के 962 सैनिक मारे गए थे। उन सैनिकों की मौत को चीन ने 1994 में स्वीकार किया था। चीन की वामपंथी सरकार यह कभी नहीं चाहती कि चीन की आम जनता को यह पता चले कि उनकी सेना के सैनिक अन्य देशों से शिकस्त पाकर मारे गए हैं।
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हमारे लिए सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी चीन है। चीन की दृष्टि भारत की सीमाओं पर है। वह भारत से युद्ध नहीं करना चाहता बल्कि हमेशा भारत पर दबाव बनाने का प्रयास करता है। चीन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है।
ताइवान-तिब्बत मामले के एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि चीन की तीन कमजोरियां हैं: तियानमेन नरसंहार, तिब्बत और ताइवान। जब भी चीन से इन मामलों पर कोई बात करने का प्रयास किया जाता है तो वह बौखला जाता है। चीन लगातार इस तरीके से घुसपैठ करवा कर भारत की सैन्य ताकत और अपनी आर्मी के मनोबल को जांचने का प्रयास करता है।
पत्रकार नितिन गोखले ऑथर भी हैं। हाल ही में इनके द्वारा अंग्रेजी भाषा में लिखी गई एक पुस्तक ”मनोहर पर्रिकर: ब्रिलिएंट माइंड, सिंपल लाइफ” को काफी सराहा गया है। ये अनेक मीडिया प्लेटफॉर्म, राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अपना वक्तव्य दे चुके हैं। नितिन गोखले को पत्रकारिता के क्षेत्र में 36 वर्षो का अनुभव है, साथ ही उनको चीन और सीमावर्ती सामरिक मुद्दों के विषय में काफी गहरा ज्ञान है।