चीन के साम्राज्यवाद का जवाब : स्वावलंबन और आर्थिक कूटनीति

प्रीति शर्मा

निश्चय ही भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा करने के लिए सक्षम है किंतु चीन जैसे महत्वाकांक्षी पड़ोसी देश को समुचित उत्तर देने के लिए आर्थिक मंदी के इस काल में व्यापार की दृष्टि से कूटनीतिक दबाव बनाना अति आवश्यक है।
चीन अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते भारत को वर्षों से ऑबोर (One belt one road) तथा समुद्री रेशम मार्ग के नाम पर घेरता रहा है। भारत के चारों ओर स्थित देशों के साथ व्यापारिक- सामरिक संधियां कर भारत के विरुद्ध ‘मोतियों की माला’ नामक चीनी कूटनीति का पालन करता आया है। यही नहीं चीन भारत की सीमाओं पर भी समय-समय पर तनाव उत्पन्न करने का प्रयास करता रहा है।
हाल ही में लद्दाख के इंजीनियर आविष्कारक शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक ने चीनी उत्पादों और मोबाइल ऐप का बहिष्कार करने का आह्वान किया, जिससे चीन द्वारा भारत को लद्दाख में वास्तविक सीमा रेखा पर उत्तेजित करने का समुचित प्रत्युत्तर दिया जा सकता है। लद्दाख में वास्तविक सीमा रेखा पैंगोंग झील और गलवान नदी घाटी में चीन की बढ़ती गतिविधियों के चलते  भारत-चीन की सेनाओं के बीच निरंतर गतिरोध एवं तनाव बना हुआ है। भारतीय जनता के इस निर्णय द्वारा कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक मंदी और व्यापार शिथिलता से ग्रसित चीन में निश्चय ही उथल-पुथल होगी। हाल ही में ‘ऑर्गेनाइजर’ पत्रिका के लेख में बताया गया कि चीनी समसामयिक अंतरराष्ट्रीय संबंध संस्थान द्वारा प्रस्तुत अप्रैल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार 1989 के थियानमेन चौक की घटना के बाद से वैश्विक रूप से चीन-विरोधी वातावरण निरंतर बना हुआ है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चीन की भारत विरोधी मंशा से लड़ने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प को दृढ़ता से निभाने की आवश्यकता है। स्पष्ट है की भारत की अंतरराष्ट्रीय नीतियां भारतीय संस्कारों से पोषित रही है। तभी तो भारतीय विदेश नीति के पंचशील के अनाक्रमण और बुद्ध, जैन तथा गांधी के अहिंसावादी मूल्यों का अनुकरण करते हुए मात्र चीनी उत्पादों के संदर्भ में ‘बहिष्कार’ जैसे शक्तिशाली अस्त्र का प्रयोग अत्यधिक उपयोगी है। निश्चय ही भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा करने के लिए सक्षम है किंतु चीन जैसे महत्वाकांक्षी पड़ोसी देश को समुचित उत्तर देने के लिए आर्थिक मंदी के इस काल में व्यापार की दृष्टि से कूटनीतिक दबाव बनाना अति आवश्यक है।
‘भारत’ और ‘इंडिया’ के बीच वर्षों से चले आ रहे संघर्ष के दुष्प्रभाव का साक्षात्कार देश ने वर्तमान कोरोना महामारी के परिदृश्य में वास्तविक रूप में किया। आत्मनिर्भर ‘भारत’ के सरल एवं स्वावलंबी मानव की दुर्गति, आर्थिक प्रतिस्पर्धा में वर्षों से बिना थके दौड़ रहे ‘इंडिया’ में विवश श्रमिक के रूप में देखी गई। ‘इंडिया’ का यह स्वरूप वर्षों से ‘भारत’ के स्वदेशी वस्त्र को छिद्रित करते हुए निर्धनता के विवशता पूर्ण वातावरण को दिन प्रतिदिन पल्लवित करता रहा है। इसने सामाजिक आर्थिक स्वावलंबी भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को भी अछूता नहीं छोड़ा।
भारत को वर्तमान परिदृश्य में स्थिति का आभास कर स्वावलंबी जनता के दृढ़ मनोबल का लाभ उठाना चाहिए जिससे भारत की ओर आंख उठाने का दुस्साहस कोई देश न कर सके। सर्वे भवंतु सुखिनः एवं वसुधैव कुटुंबकम जैसे भारतीय संस्कारों तथा योग एवं आयुर्वेद की समृद्ध संस्कृति  ने जहां संपूर्ण विश्व में अपनी पहचान स्थापित की है। उसी प्रकार अब भारत  को विशेषत: चीन के संदर्भ में स्वदेशी की नीति अपनाकर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करना होगा।
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