अयोध्या ने छद्म पंथनिरपेक्षता का पाखंड उजागर कर दिया

अयोध्या ने सेक्युलरिज्म का पाखंड उजागर कर दिया

मुरारी गुप्ता

अयोध्या ने सेक्युलरिज्म का पाखंड उजागर कर दिया

भारत में छद्म पंथनिरपेक्षता का पाखंड हर वर्ग के तथाकथित हाई प्रोफाइल लोगों में ठूंस ठूंस कर भरा है। राम मंदिर भूमि पूजन के दिन लता मंगेशकर, मालिनी अवस्थी, कैलाश खेर जैसी कुछ संजीदा हस्तियों को छोड़ दें तो खेल और सिनेमा की तथाकथित बड़ी शख्सियतों के सोशल मीडिया हैंडल से रामजी के मंदिर के निर्माण पर शुभकामनाओं या बधाई का एक शब्द नहीं फूटा।

अयोध्या में भारतीय जनमानस के आत्म पुरुष श्री राम की जन्मभूमि पर उनके पावन स्मरण के लिए बन रहे भव्य मंदिर ने देश में पिछले कई दशकों से तथाकथित पंथ निरपेक्षता के बैनर तले रचे जा रहे षड्यंत्रों को भी बेनकाब कर दिया है। अस्सी के दशक में एक वर्ग विशेष को तुष्ट करने के लिए संविधान की प्रस्तावना के मूल स्वरूप को छेड़ा गया। फिर बहुसंख्यक समाज -हिंदू समाज की भावनाओं के साथ पूर्वाग्रह रखते हुए खिलवाड़ किया गया। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के उद्घाटन कार्यक्रम में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को जाने से रोकने का असफल प्रयास किया गया। इसी तरह अबकी बार राममंदिर के भूमि पूजन के कार्यक्रम के साथ ही सरकारी दफ्तरों और मंत्रियों के यहां सफेद टोपी पहनकर रोजा इफ्तारी का आनंद उठाने वाली जमात ने सोशल मीडिया पर रोना-धोना शुरू कर दिया। राजदीप सरदेसाई से लेकर प्रशांत भूषण और रामचंद्र गुहा तक ने जैसे अपने ट्विटर हैंडल पर प्रतिक्रिया देना शुरू किया उससे यह अनुभव करना आसान है कि उनके मन और मस्तिष्क में तथाकथित सेकुलर के पाखंड के कीटाणु किस हद तक घुसे हुए हैं और भारत की सांस्कृतिक विरासत से नफरत का स्तर कितना ऊंचा है। राष्ट्रपुरुष श्रीराम का उनकी जन्मभूमि पर एक पावन स्थल का निर्माण अगर भारत में नहीं होगा तो कहां होगा? जिस तरह मुस्लिमों के लिए मक्का, यहूदी और इसाइयों के लिए यरूशलम पवित्र है, भारत और सनातन अनुयायियों के लिए अयोध्या हजारों वर्षों से पवित्र है।

पंथनिरपेक्षता के नाम पर आखिर कब तक हम भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और महापुरुषों का अपमान होते देखते रहेंगे। तथाकथित सांप्रदायिक सद्भाव की राजनीति आखिर कब सनातन के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रतीक चिह्नों को लीलती रहेगी। गंगा-जमनी तहजीब के नाम पर आखिर क्यों मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया जाता रहा है। क्यों उन्हें कभी समझने नहीं दिया गया कि सनातन संस्कृति की पहचान में ही उनकी पहचान है। क्यों भारतीय सनातन परंपराओं से अलग उनकी पहचान को हवा दी जाती रही? क्यों भारत के गौरव को रौंदने वाले मुगलों और तुर्कों के साथ उनकी पहचान को जोड़ने का काम किया जाता रहा कि उन्हें अब बाबर और औरंगजेब से संबंधों में गर्व महसूस होने लगा। मुस्लिम समाज की कमजोरी यह रही कि उन्होंने असदुद्दीन औवेसी जैसे लोगों का नेतृत्व सहजता से ग्रहण कर लिया, जो कहता है कि बाबरी मस्जिद थी और हमेशा रहेगी। और दुर्भाग्य से उस समाज से एक दो आवाजों को छोड़कर कोई भी नहीं कहता है कि औवेसी तुम गलत हो और श्री राम हमारे भी राष्ट्र पुरुष है।

सदियों से पहले मुगलों के द्वारा और बाद में केंद्रीय सरकारों द्वारा भारतीयता के मूल्यों को दबाने की परिणति राम जन्मभूमि आंदोलन के रूप में खड़ी हुई। इस आंदोलन ने भारत के सनातन समाज के मन में छिपी और दबी पीड़ा के प्रकटीकरण में मदद की और वह समाज पूरी ताकत से उठ खड़ा हुआ। इस आंदोलन को दबाने के लिए कई स्तर पर प्रयास किए गए। 1984  से  प्रारम्भ  रामजन्मभूमि  आन्दोलन  ने  भारत  की  राष्ट्रीयता  को  फिर से प्रतिष्ठित करने का काम किया।

भारत में लोग अपने राष्ट्र और राष्ट्रीयता को लेकर हमेशा से स्पष्ट रहे हैं। लेकिन भारत को कमजोर और विभाजित करने के लिए अंग्रेजों के तैयार किए भ्रम को तत्कालीन राजनेताओं ने स्थापित करने का प्रयास किया। इसमें उनके वामपंथी इतिहासकारों ने उनका साथ दिया और भारतीय समाज पर गंगा-जमनी तहजीब को थोपने का प्रयास हुआ। और तथाकथित तहजीब की सारी कीमत सनातन समाज को चुकानी पड़ी। पंथ निरपेक्षता की आड़ में राष्ट्रीयता की अपने अनुसार व्याख्या की जाने लगी, जिससे भारतीय जनमानस को लगने लगा कि कहीं उनसे उनकी मूल पहचान तो नहीं छीनी जा रही है। इन सभी सवालों का उत्तर महर्षि अरविंद घोष अपने उत्तरपाड़ा के भाषण में देते हैं-‘‘सनातन धर्म ही राष्ट्रीयता है। हिंदू जाति उसी धर्म को लेकर पैदा हुई, उसी को लेकर चलती है और पनपती है। जब धर्म की हानि होती है तो जाति की भी अवनति होती है।’’

भारत में पंथनिरपेक्षता का पाखंड हर वर्ग के तथाकथित हाई प्रोफाइल लोगों में ठूंस ठूंस कर भरा है। राम मंदिर भूमि पूजन के दिन लता मंगेशकर, मालिनी अवस्थी, कैलाश खेर जैसी कुछ संजीदा हस्तियों को छोड़ दें तो खेल और सिनेमा की तथाकथित बड़ी शख्सियतों के सोशल मीडिया हैंडल से रामजी के मंदिर के निर्माण पर शुभकामनाओं या बधाई का एक शब्द नहीं फूटा। ये वही हस्तियां हैं जिन्हें भारत के असहिष्णु हो जाने से डर लगता है और भारत से भाग जाने का मन करता है।

पंथनिरपेक्षता का पाखंड हर वर्ग के तथाकथित हाई प्रोफाइल लोगों में ठूंस ठूंस कर भरा है

इनका पाखंड दरअसल इनकी जीवनशैली का हिस्सा है। वैसे तो भारतीय समाज को उन लोगों से राम मंदिर के निर्माण पर शुभकामनाओं की अपेक्षा भी नहीं है। लेकिन हर महत्वहीन बात पर ट्वीट करने वाले और भारतीय समाज से अपना नाम और आजीविका चलाने वालों से समाज इतनी तो अपेक्षा कर ही सकता है कि वे समाज के राष्ट्रपुरुष के स्मरण स्थल के अवसर पर एक शुभकामना संदेश दें। उनसे तो लाख गुना बधाई के पात्र पाकिस्तान के एकमात्र हिंदू क्रिकेट खिलाड़ी दानिश कनेरिया हैं, जिन्होंने पाकिस्तान जैसे कट्टर मुल्क में रहते हुए भी श्रीराम जन्मभूमि निर्माण पर कई ट्वीट किए। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम ने उन लिब्रांडुओं की आंखें भी चकाचौंध कर दीं, जिन्होंने इस मुद्दे पर मुस्लिम समाज को भ्रमित करने का प्रयास किया। प्रमुख सियासी दल समझ नहीं पा रहे हैं कि इस घटनाक्रम पर क्या स्टैंड रखा जाए।

भारतीय जनमानस की चेतना जाग्रत हो चुकी है। उसका प्रकटीकरण अयोध्या में श्रीराम के जन्मभूमि पूजन में अनुभव किया गया है। अब उसे पाखंड भरे पंथ निरपेक्षता के हथियार से कमजोर नहीं किया जा सकता।

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