ज्ञानवापी का अविमुक्तेश्वर शिवलिंग सनातन सत्य है

ज्ञानवापी का अविमुक्तेश्वर शिवलिंग सनातन सत्य है

दीप्ति शर्मा

ज्ञानवापी का अविमुक्तेश्वर शिवलिंग सनातन सत्य हैज्ञानवापी का अविमुक्तेश्वर शिवलिंग सनातन सत्य है

वाराणसी की कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी में हो रहे सर्वे से निकल कर आ रही प्रारंभिक रिपोर्ट में वुजु के स्थान पर प्रकट शिवलिंग इस पूरे ऐतिहासिक और धार्मिक तथ्यों और लोकजीवन में व्याप्त मान्यताओं पर अपनी मोहर लगाता है। देश की एकता और अखंडता के लिए कितना अच्छा हो यदि मुस्लिम समाज स्वयं आगे आकर भारत के सनातन समाज को उसकी शिव धरोहर सौंपे।

काशी (वाराणसी) लोक कल्याण करने वाली, मृत्यु लोक के कर्म बन्धन से मुक्त करने वाली, मोक्षगामी, मोक्ष तत्वों से प्रकाशित, ज्ञान प्रदान करने वाली शिव-शक्ति की प्रिय नगरी कहलाती है। ज्ञान अर्थात् बोध, जानकारी, सत्य विद्या का भंडार तथा वापी अर्थात् छोटा जलाशय, कुआं, बावड़ी। ज्ञानवापी संस्कृत शब्द है। अर्थ समझें तो वह जल स्रोत जो संसार को सत्य का बोध कराने वाला मोक्षदायिनी‌ ईश्वर निर्मित कुआं है।

ज्ञानवापी को लेकर सदैव मान्यता रही है कि तथाकथित मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से स्वयं लिंग अभिषेक करने के लिए इस कुएं को बनाया था। मान्यता है की इस कुएं का जल बहुत ही पवित्र है। ज्ञानवापी का जल काशी विश्वनाथ को चढ़ाया जाता था, जिसकी ओर मुख कर नन्दी स्वयं विराजमान थे। और आज भी हैं।

शिव पुराण के महात्म्य से भी पता चलता है कि वर्तमान समय में ज्ञानवापी में मिला यह वही स्थान है, जहां महादेव ने अविमुक्त लिंग (काशी) को स्वयं स्थापित किया था। अविमुक्त वह स्थान जहां पुराणों की मान्यता के अनुसार महापातकियों को भी मुक्त कर मोक्ष देने वाला कहा गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अविमुक्तेश्वर लिंग ही वह काशी नामक मणि है, जिसे सदाशिव ने अपने त्रिशूल से उतार कर मृत्यु लोक में स्थापित किया था।

ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के अनुसार काशी वह देव स्थान है, जो प्रलय में भी सुरक्षित होगी और शिवपुराण कथा के अनुसार काशी को स्वयं विश्वनाथ शिव उसी क्षण अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे। काशी की महिमा तो कैलाशपति बाबा विश्वनाथ की स्वयं की नगरी के रूप में काल दर काल हम सुनते आये हैं और सुनते रहेंगे। काशी खंड में परिकल्पित एतिहासिक साक्ष्य के अनुसार, अविमुक्तेश्वर शिवलिंग का भव्य मंदिर था और इस परिसर में विश्वेश्वर शिवलिंग भी मौजूद था। भक्तों एवम् मान्यताओं के अनुसार दोनों शिवलिंग के दर्शन एक ही परिसर में किये जाते थे। परन्तु भारत के दुर्भाग्य से मुग़ल आक्रमणों का काल विनाशक ‌समय रहा, जिसके बाद अविमुक्तेश्वर शिवलिंग उस स्थान पर नहीं देखा जा सका। मुग़ल आक्रांताओं ने सनातन भारतीय संस्कृति के प्रतीकों को नष्ट करने का कार्य किया था।

मुगलों की व्यवस्था दुराग्रह से सनातन संस्कृति के प्रतीकों और स्थानों को ध्वस्त कर अपना आधिपत्य स्थापित करने की रही थी। सबसे पहले विश्वनाथ मंदिर को 1194 में मुहम्मद गोरी ने लूट कर ध्वस्त किया था। इसके बाद वर्ष 1669 में औरंगजेब ने एक बार फिर काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया। जनश्रुति के अनुसार औरंगजेब ने जब काशी का मंदिर तोड़ा तो उसके ढांचे के ऊपर मस्जिद बनवा दी। लेकिन मंदिर की दीवारें जस की तस बनी रह गईं। इसके बाद सन 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था।

भारत के जन जन में काशी व्याप्त है। हर हिंदू परिवार जीवन में एक बार काशी में भगवान महादेव के दर्शन का अभिलाषी रहता है। हिंदू जीवन में काशी के महत्व को एक हिंदू ही अनुभव कर सकता है। वाराणसी के न्यायालय के आदेश पर ज्ञानवापी में हो रहे सर्वे से निकल कर आ रही प्रारंभिक रिपोर्ट में वुजु के स्थान पर प्रकट शिवलिंग इस पूरे ऐतिहासिक और धार्मिक तथ्यों और लोकजीवन में व्याप्त मान्यताओं पर अपनी मोहर लगाता है। ऐसे में मुस्लिम समाज स्वयं आगे आकर भारत के सनातन समाज को उनकी शिव धरोहर सौंपे।

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2 thoughts on “ज्ञानवापी का अविमुक्तेश्वर शिवलिंग सनातन सत्य है

  1. समसामयिक प्रस्तुत किया आप ने बहुत बहुत अनुमोदना।।

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