वसुधैव कुटुम्बकम का भाव ही विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान
वसुधैव कुटुम्बकम का भाव ही विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान
जयपुर, 19 जनवरी। आज पूरी दुनिया विभिन्न समस्याओं से त्रस्त है। भारत का विचार ‘वसुधैव कुटुंबकम’ विश्व की इन समस्त समस्याओं का समाधान है। यह बात आरएचआरडी संरक्षण जसवंत खत्री ने कही। वे शनिवार को प्रदीप गोपाल स्मृति न्यास सांगानेर, एयू बैंक एवं पूर्णिमा ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में सीतापुरा स्थित पूर्णिमा इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड टेक्नॉलॉजी में चल रहे दो दिवसीय ‘द ढूंढाड़ टॉक्स-2025’ कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
मुख्यवक्ता खत्री ने कहा कि दुनिया के दो सौ देशों में घूमकर आने वाले को ‘बचाओ-बचाओ’ जैसी आवाजें निश्चित रूप से सुनाई देंगी। इन समस्याओं का समाधान दुनिया के अन्य देशों के पास नहीं है। यह केवल भारत के पास है। भारत का ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का विचार ही दुनिया को बचा सकता है।
उन्होंने कहा कि विदेशी शक्तियां योजनापूर्वक भारत में ऐसी समस्याएं खड़ी करने का प्रयास लम्बे समय से कर रही हैं। इन सबसे बचना है, तो भारत को अपने मूल स्वभाव को समझना होगा। ‘कण-कण में भगवान’ यह केवल स्लोगन नहीं है, यह परिपूर्ण विचार है, जो सब का कल्याण करने के साथ ही दुनिया में शांति स्थापित कर सकता है। इसी विचार के कारण दुनिया में देशों के मध्य दुश्मनी की दीवारें ढह रही हैं। हमें भारत के स्व के विचार को जीवन में उतारना होगा। इसके लिए प्रबल इच्छाशक्ति, तीव्र देशभक्ति व सामाजिक समझदारी चाहिए। अगर ऐसा कर पाए तो दुनिया को हम समाधान दे सकेंगे।
मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि भारत केवल मिट्टी का टुकड़ा नहीं है, यह जीता जागता राष्ट्र है। इसने दुनिया को हर क्षेत्र में ‘आइना’ दिखाया है। भारत दुनिया में आदिकाल से विश्वगुरु था, है और भविष्य में भी विश्वगुरु रहेगा।
हमारा जिंदादिल समाज, जिसे कोई तोड़ ना सका: चकलोई
‘राजस्थान का अनछुआ गौरव’ विषयक छठवें सत्र को संबोधित करते हुए लेखक, वक्ता एवं इतिहास विशेषज्ञ राजवीर चकलोई ने कहा कि हमारा समाज जिंदादिल समाज है। कई आक्रांता आए, कई गए, लेकिन हमारे समाज और संस्कृति को समाप्त नहीं कर पाए। भले ही मंदिर-मूर्तियों को तोड़ा। लेकिन फिर भी वो समाज को संस्कृति से अलग नही कर पाए। जिंदादिल समाज ने मूर्तियां खण्डित होने के बाद भी, खेतों में, मिट्टी के चबूतरों पर पत्थरों की मूर्तियां लगाकर पूजा शुरू कर दी। जिस प्रकार आक्रांता कुछ नहीं बिगाड़ पाए, उसी तरह मार्क्सवाद भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। हमारी धर्म-संस्कृति की अनमोल बातें अगली पीढ़ी में कैसे उतरें, इसकी चिंता करने की आवश्यकता अधिक है। इतना कर लिए तो मार्क्सवाद कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसी सत्र में पाथेयकण के सह प्रबंध प्रमुख श्यामसिंह ने भी ‘राजस्थान का अनछुआ गौरव’ पर प्रकाश डाला।
इस दो दिवसीय कार्यक्रम में शनिवार को पांचवां सत्र मातृशक्ति के नाम रहा, जिसमें लेखिका शेफाली वैद्य व नेशनल पैनेलिस्ट अधिवक्ता चारू प्रज्ञा ने ‘आधी आबादी पूरा कर्तव्य’ विषयक मंच साझा किया। सातवां सत्र भी युवा-रोजगार केंद्रित रहा, जिसमें प्रथम सॉफ्टवेयर के सीईओ पुनीत मित्तल व शशिकांत सिंघी ने ‘स्व रोजगार की ओर बढ़ता युवा’ विषय के माध्यम से अपने अनुभवों का आदान-प्रदान किया।
एयू स्माल फ़ाईनेंस बैंक के संस्थापक, एमडी और सीईओ संजय अग्रवाल ने कहा, “भारत नए विचारों के साथ आगे बढ़ रहा है, जहाँ प्रगति और पुरानी संस्कृति एक साथ चल रहे हैं। असली बदलाव यही है कि हम अपनी पुरानी विरासत को साथ लेकर नए रास्ते पर चलें। भारतीय संस्कृति, जो विज्ञान और दर्शन पर आधारित है, हमेशा से आगे की सोच वाली रही है। हमारी पुरानी समझ आज भी हमें रास्ता दिखाती है। भारत कभी विश्वगुरु था, और मुझे लगता है कि हम सही बदलाव के साथ फिर से उसी ऊँचाई पर पहुँच रहे हैं—ऐसा बदलाव जो अपनी जड़ों का सम्मान करता है और प्रगति की प्रेरणा देता है।