दत्ताजी डिडोळकर के विचार और उनकी रचनात्मकता अनुकरणीय- सुनील आंबेकर
दत्ताजी डिडोळकर के विचार और उनकी रचनात्मकता अनुकरणीय- सुनील आंबेकर
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि दत्ताजी डिडोळकर अखिल भारतीय दृष्टि के स्वामी थे। उनके कार्य में रचनात्मकता थी। वे समाज को जोड़ने तथा सकारात्मक विचार करने वाले व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व से अनेक बातें हमने सीखीं, जिनका हमारे जीवन पर प्रभाव हुआ। उनके समान भाव युवावस्था से ही मन में जगाना, यही सही मायने में उन्हें श्रद्धांजलि होगी।
सुनील आंबेकर दत्ताजी डिडोळकर जन्मशताब्दी समारोह समिति की ओर से कवीवर्य सुरेशभट्ट सभागृह में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। मंच पर आध्यात्मिक मार्गदर्शक श्री एम, जन्मशताब्दी समिति के अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, समिति के सचिव अजय संचेती तथा संयोजक जयंत पाठक उपस्थित थे।
सुनील आंबेकर ने कहा कि दत्ताजी संघ के कार्य हेतु दक्षिण में तमिळनाडु गए थे। उन्हें मराठी के साथ हिन्दी, मलयालम तथा तमिळ आदि भाषाएं भी अच्छी तरह से अवगत थीं। कम शब्दों में बड़ा संदेश देने में वे कुशल थे। उन्होंने एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि, वर्ष 1990 में जब कश्मीर से हिन्दुओं का निर्वासन हुआ, उन्हीं दिनों विद्यार्थी परिषद की योजना से हिन्दू परिवार की दो कश्मीरी छात्राएं नागपुर आई थीं। उन्हें दत्ताजी के निवास पर ले गए। उस समय दत्ताजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। अपने अनुभव कथन के पश्चात इन युवतियों ने कश्मीरी बंधुओं के लिए जनजागरण करने का प्रण व्यक्त किया। इस पर दत्ताजी ने उन्हें केवल कश्मीर के लिए नहीं, अपितु संपूर्ण देश के लिए काम करने का संकल्प लेने का संदेश दिया। दत्ताजी के मन में सभी देशवासियों के प्रति प्रेमभाव था। जब विद्यार्थी परिषद के सील प्रकल्प के अंतर्गत ईशान्य भारत के विद्यार्थी नागपुर आए थे, तब उनके निवास की व्यवस्था अपने ही निवास पर करवा कर उन्होंने यह प्रेमभाव सहज प्रकट किया।
नितिन गडकरी ने कहा कि दत्ताजी डिडोळकर का जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित था। उनमें नम्रता एवं सरलता थी। वे अजातशत्रु थे। कार्यकर्ताओं से उनके पारिवारिक संबंध थे। मुझे उनके सानिध्य में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। कार्यकर्ता कैसा हो, यह हम उनके जीवन से सीखें। उनके कार्य जन-जन तक पहुंचें, इस हेतु से जन्मशताब्दी समिति की स्थापना की गई। नागपुर विश्वविद्यालय में उनके कार्यकाल में हुए काम अभिनंदनीय थे।
कार्यक्रम के दौरान अपने मार्गदर्शन में आध्यात्मिक गुरू श्री एम ने ‘भारत की संकल्पना’ विषय पर प्रकाश डाला। ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोsहम’, यही भारत की मूल संकल्पना है। भारत विश्वगुरु था, है और भविष्य में रहेगा।
नालंदा विश्वविद्यालय में विदेश के दो हजार से अधिक छात्र केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति हेतु अध्ययनरत थे। बख्तियार खिलजी ने उसे जलाकर भस्मसात कर डाला। विदेशी आक्रांताओं ने विशेषत: अंग्रेजों ने हमारी विचारपद्धति और मानसिकता बदल डाली। इसके कारण संस्कृत की जो हानि हुई, वह चिंतनीय है। अतः पालक संस्कृति रक्षण हेतु बच्चों को संस्कृत की शिक्षा दें।
उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने जब विदेश में भारत की विशेषताओं का बखान किया, तब विदेशी लोग आश्चर्यचकित हुए और तभी से भारत का विश्वगुरु होना प्रारंभ हुआ। आध्यात्मिक ज्ञान भारत की सम्पदा है, वो ही ना रहे तो भारतीय कहलाने योग्य कुछ भी हमारे पास शेष नहीं बचेगा।
भारत में सभी पंथों के लिए स्थान है। ऐसा देश विश्व में कहीं नहीं। अतः भारत का भारत बने रहना आवश्यक है। अध्यात्म भारत को प्राप्त सबसे बड़ी धरोहर है। इसके कारण ही अंग्रेजों को समूचा भारत पदाक्रांत करना संभव नहीं हुआ।आज लोग शिक्षा हेतु हॉर्वर्ड जाते हैं। किंतु, आगामी काल में विश्व के लोग ज्ञान प्राप्ति हेतु भारत की ओर चल पड़ेंगे। वंदेमातरम के गान से कार्यक्रम का समापन हुआ।