भारत को धर्म निरपेक्ष नहीं, धर्म सापेक्ष राष्ट्र बनाना चाहिए – आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज
कुंडलपुर (दमोह)। मप्र के पवित्र जैन तीर्थ कुंडलपुर में जैन धर्म के सबसे प्रतिष्ठित संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने भारत के संविधान में धर्म निरपेक्ष शब्द को हटाकर धर्म सापेक्ष करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की रक्षा और उन्नति धर्म से विमुख होकर कैसे हो सकती है? अंग्रेजों ने धर्म का अर्थ रिलीजन यानि साम्प्रदायिक होना गलत समझाया है। धर्म का सही अर्थ तो कर्तव्य का ठीक से पालन करना होता है। महोत्सव में लगभग एक लाख लोग पहुंचे थे।
कुंडलपुर महोत्सव में आज भगवान आदिनाथ का समोशरन सजाया गया था। इस समोशरन में आचार्यश्री अपने निर्यापक शिष्यों के साथ विराजमान हुए। समोशरन में भगवान की देशना (धर्म उपदेश) के रूप में आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि धर्म की विदेशी परिभाषा को स्वीकार करते हुए भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र कहा गया, यह बिल्कुल गलत है। धर्म का सही अर्थ समझा ही नहीं गया। धर्म हमें सद्मार्ग पर चलने की प्ररेणा देता है। धर्म हमारी आत्मा को पवित्र बनाता है। भारत की संस्कृति रही है कि धर्म पर चलने वाला राजा ही प्रजा को सुखी रख सकता है। धर्म से विमुख होकर जनता का हित कैसे हो सकता है? भारत के राजनेताओं को इस बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के नेताओं को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। आचार्यश्री ने धर्म के पांच गुण भी बताये। उन्होंने कहा कि जहां झूठ, चोरी, हिंसा, कुशील न हो, वहां धर्म होता है। दया का मूल ही धर्म है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में रहकर धर्म निरपेक्षता की बात करना बिल्कुल गलत है। उन्होंने कहा कि मेरा यह संदेश केन्द्र सरकार तक पहुंचना चाहिए। आचार्यश्री के इस आह्वान पर लोगों ने तालियां बजाकर उनका समर्थन किया।
आचार्यश्री ने इस बात पर चिन्ता व्यक्त की कि आज षड्यंत्र पूर्वक तरीके से अंडे को शाकाहारी और दूध को मांसाहारी बताया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस धरती पर यदि साक्षात् लक्ष्मी है तो वह गाय है। शास्त्रों में लिखा है कि भगवान आदिनाथ के पुत्र भरत चक्रवर्ती तीन करोड़ गोशालाओं का संचालन करते थे। आचार्यश्री ने नकली दूध के प्रचलन पर चिन्ता व्यक्त करते हुए, त्यौहार के समय इससे बचने को भी कहा।
साभार रवीन्द्र जैन