यूं ही कोई नरेंद्र कोहली नहीं हो जाता है..
कौशल अरोड़ा
हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार श्री नरेन्द्र कोहली जी का देहावसान कोरोना की लड़ाई से राजधानी दिल्ली के सेंट स्टीफंस अस्पताल में हुआ । वह कलम के निर्भीक योद्धा, जिन्होंने शब्दों को हिन्दी के सभी आयामों में चितेरा । हिन्दी साहित्य का प्रेरणा पुन्ज सदा सर्वदा के लिए हमें छोड़ गये।
कोहली जयपुर यूथ फेस्टिवल के संरक्षक रहे। 6 जनवरी 1940 को अविभाजित भारत के सियालकोट, पंजाब (पाकिस्तान) में जन्मे। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा का माध्यम हिंदी न होकर उर्दू था। फिर भी आपकी हिन्दी के प्रति आस्था रही। दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर और डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। प्रसिद्ध आलोचक डॉ नगेंद्र के निर्देशन में शोध प्रबंध ‘हिंदी उपन्यास: सृजन एवं सिद्धांत’ विषय पर लिखा।
मोतीलाल नेहरू कॉलेज दिल्ली में हिंदी के प्राध्यापक रहे। लेखन को प्राथमिकता देने के लिए आपने नौकरी से त्यागपत्र दिया। आप अपने समर्थकों में ‘आधुनिक तुलसीदास’ के रूप में लोकप्रिय थे। वर्ष 2017 में पद्मश्री सम्मान, इसके अलावा व्यास, शलाका, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अट्टहास सम्मान मिले।
मुझें अभी भी स्मरण है जब एक कार्यक्रम में आपने कहा था कि मुझे इंजीनियर, डॉक्टर, वास्तुकार, बड़ा अधिकारी नहीं बनना था। मैं तो बना बनाया लेखक था। लेखक बनता नहीं पैदा होता है। उन्होंने कहा मैं सचिन तेंदुलकर नहीं बन सकता, मुझे इसका अफसोस नहीं क्योंकि मैं जानता हूं कि तेंदुलकर भी नरेंद्र कोहली नहीं बन सकता।
धन्य है लेखनी के पुरन्दर अश्वस्थामा, आपको अश्रुपूरित श्रद्धांजलि….