धोरों से हिलोरों तक (नर्मदा यात्रा-2)

धोरों से हिलोरों तक (नर्मदा यात्रा - 2)

दयाराम महरिया

धोरों से हिलोरों तक (नर्मदा यात्रा - 2)

25 फरवरी, 21 को हम प्रातः काल नर्मदा दर्शनार्थ पहुंचे। वहां आदरणीय गोविंदाचार्य जी के साथ हमने भी पूजा की। मैं वैसे अनुष्ठान को बिल्कुल नहीं जानता-मानता, परंतु गोविंदाचार्य जी को मानता हूं इसलिए जैसा वे करते गए वैसा ही मैं करता गया। वैसे वे भी जैसा पंडित जी करा रहे थे वैसा कर रहे थे। पूजा -अर्चना के बाद हम घाट पर बने मंदिर में गए। मंदिर के मुख्य महंत आदरणीय गोविंदाचार्य जी के पिता के शिष्य हैं। वे बनारस में उनसे पढ़े थे। उन्होंने आदरणीय गोविन्दाचार्य का भाव-भीना स्वागत कर मुख्य आसन पर ससम्मान बैठाया। वे देवतुल्य भद्रपुरुष देववाणी में गोविन्दाचार्य जी से संवाद कर रहे थे। संवाद करते -करते पुरानी स्मृतियों में खो गए। भावुकतावश जब मुख बंद हुआ तो आंखें बोलने लगीं। उस ‘कृष्ण-सुदामा’ मिलाप को देख कर मुझे ‘सुदामा चरित ‘ की ‘ पानी परात के हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सैं पग धोये ‘ वाली पंक्तियां याद आईं। अंग्रेजी के एक कथन का भावानुवाद है -‘मनुष्य का जीवन प्याज की तरह है। यदि उसके छिलके उतारोगे तो तुम्हें कुछ समय के लिए रोना पड़ेगा।’ उन्होंने गुरु -पुत्र ‘गोविंद’ का गुरुवत् सम्मान किया। वहां भारत की महान् पुरातन संस्कृति के साक्षात् दर्शन कर हम निहाल हो गए। होशंगाबाद के विश्रामगृह (सर्किट हाउस) में गोविंदाचार्य जी ने पत्रकार वार्ता की। आदरणीय गोविंदाचार्य जी के साथ हमारा भी स्थान -स्थान पर स्वागत- सत्कार होता। वे अपने उद्बोधन में उसे अपना स्वागत नहीं बता कर भारतीय संस्कृति का स्वागत बताते। इस प्रसंग में मुझे रवींद्रनाथ टैगोर की भगवान जगन्नाथपुरी की रथयात्रा पथ में जन समूह द्वारा किए जाने वाले दंडवत प्रणाम के संबंध में कही गई निम्न कविता याद आ रही है –
रथ भावे आमी देव ,
पथ भावे आमी।
मूरत भावे आमी देव ,
हासे अंतर्यामी।।
अर्थात रथ- पथ व मूर्ति अपने-अपने को देवता मानते हुए यह मान रहे हैं कि जन समूह दंडवत प्रणाम उन्हें ही कर रहा है। यह सब देख अंतर्यामी अर्थात् ईश्वर हँस रहे हैं। हमारी स्थिति भी रथ-पथ व मूर्ति जैसी थी। वहां भी ‘गोविंद’ के साथ हमारा भी स्वागत हो रहा था।

रास्ते के ग्राम – कस्बों में हमारा स्वागत सत्कार होता तत्पश्चात आदरणीय गोविंदाचार्य जी का उद्बोधन होता। मैं हरदा नगर परिषद के द्वारा किए गए स्वागत- सत्कार समारोह की चर्चा करना चाहूंगा। हरदा नगर परिषद के परिषद हाल के चारों तरफ हुतात्मा एवं सुप्रसिद्ध देशभक्तों की दीर्घा बनी हुई है। उस दीर्घा में देश के प्रमुख हुतात्माओं एवं देशभक्तों की प्रतिमाएं लगी हैं। प्रतिमा के पास संबंधित विभूति की जानकारी अंकित है। हरदा नगर परिषद का यह बहुत ही अच्छा एवं प्रेरणास्पद कार्य है। हमें सबसे पहले ‘दीर्घा-दर्शन’ कराये।

प्राचीन समय की सभ्यताएं नदियों के किनारे विकसित होती थी। आधुनिक समय में सड़कों के किनारे होती हैं। नर्मदा की पूरी परिक्रमा 2312 किलोमीटर की है। उसके तट पर शहरों -ग्रामों के साथ-साथ स्थान- स्थान पर आश्रम बने हुए हैं। उन आश्रमों में प्राचीन भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। वहां एक अलौकिक संसार है। उन आश्रमों में नर्मदा तीर्थ यात्रियों के भोजन- आवास आदि की निःशुल्क व्यवस्था है। रास्ते के ग्रामवासी भी तीर्थ यात्रियों की सेवा कर अपने आप को धन्य अनुभव करते हैं। रास्ते में चिंचोट ग्राम में नर्मदा के किनारे सुरम्य-विस्तृत परिसर में संघ द्वारा संचालित (विद्या भारती) गुरुकुल में हमारा स्वागत किया गया। एक तरफ नर्मदा की कल- कल तो दूसरी तरफ वृक्षों पर विहंगवृन्द का कलरव मन मोहने वाला है। दिव्य – शांत वातावरण में संचालित उस गुरुकुल में पुराभारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। वहां के सभी बटुक (विद्यार्थी) अपना उपनाम ‘वैदिक’ लिखते हैं। वहां के संचालक ने बताया कि अलग-अलग प्रांतों के विद्यार्थियों को उनके प्रांत की भाषा भी सिखाने की व्यवस्था है। बटुक परस्पर वार्तालाप संस्कृत में ही करते हैं। गोविंदाचार्य जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि यहां संस्कृत पढ़ाई जाती है यह अच्छी बात है परंतु संस्कृत में अन्य विषय भी पढ़ाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने इजराइल का उदाहरण देते हुए बताया कि इजराइल जब नया राष्ट्र बना तो विश्व में फैले यहूदियों ने वहां जाकर हिब्रू भाषा में ही शिक्षण साहित्य का निर्माण किया। हमारी यात्रा के बारे में जब मेरे चचेरे भाई श्री सुभाष जी महरिया (पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री) को पता चला कि मैं नर्मदा यात्रा पर हूं तो उन्होंने मुझे पूछा कि आप लोग कहां हो? मैंने कहा कि हम इस समय हरदा जिले में हैं। संयोग से हरदा जिले के अतरसमा गांव के महरिया उनके सुपरिचित थे। भाईसाहब ने जब उनको सूचित किया तो मेरे पास फोन आया। उन्होंने कहा कि हमारा गांव आपकी यात्रा मार्ग पर ही है। अतः घर पर अवश्य पधारें। हमें काफी विलंब हो रहा था परंतु उनके स्नेहिल आग्रह को मैं टाल नहीं सका। रात्रि के करीब 9:00 बजे हम उनके घर पहुंचे। वहां की स्वागत परंपरा के अनुसार आदरणीय गोविंदाचार्य जी का उन्होंने भावनाओं के झूले में झुलाकर पलक -पावड़े बिछाकर स्वागत किया। उन महरियाओं के पूर्वज आज से 160 वर्ष पूर्व मेड़ता (नागौर) से वहां जाकर बस गए थे। कहते हैं पानी से पतला ख़ून होता है। पानी और भाई को मिलते देर नहीं लगती। हम परस्पर तुरंत घुल-मिल गए। मैं वहां मेहमान से मेजबान हो गया। श्री शिवनारायण जी महरिया (सेवानिवृत्त सहायक अभियंता) श्री संतोष जी महरिया (जिला गौ सेवा प्रमुख), प्रिय रोहित आदि के स्वागत – सत्कार को देखकर नर्मदा की हिलोरों के साथ-साथ मेरे ह्रदय में भी भाव हिलोरें उठने लगीं। उनके आग्रह एवं आदरणीय गोविंदाचार्य जी के आदेश पर मैंने रात्रि विश्राम उनके घर पर ही किया। श्री संतोष जी महरिया संघ के स्वयंसेवक हैं। उनके पास अच्छी कृषि भूमि है। एक साल में तीन फ़सलें होती हैं। मैंने कहीं पढ़ा है कि भारतीय संस्कृति में चार माताएं मानी जाती हैं। धरती, वेद, गाय व जन्मदात्री माता। वहां पांचवीं माता नर्मदा है।मिट्टी उपजाऊ है तथा धरती – माता को नर्मदा – माता का खूब दूध (पानी) मिलता है। नर्मदा के कारण ‘उत्तम खेती’ की उक्ति वहां चरितार्थ हो रही है। राजस्थानी में कहावत है -‘जल जठे जगदीश’ अर्थात जहां जल वहां जगदीश। विष्णु के दशावतारों में प्रथम अवतार मत्स्य जल में ही अवतरित हुए।अवतार शब्द अवतरण से ही बना है।

वहां के किसान खुशहाल एवं जागरूक हैं। हरदा मध्यप्रदेश का शेखावाटी है। हरदा विधानसभा क्षेत्र से श्री कमल पटेल अनेक बार विधायक रह चुके हैं। वे वर्तमान में मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री हैं। उनके पूर्वज भी वर्षों पहले नागौर से ही उस क्षेत्र में गए थे। मूलतः वे डूडी गौत्र के जाट हैं ।

श्री संतोष जी महरिया का पुत्र रोहित इंदौर बी.एस.सी. द्वितीय वर्ष में पढ़ता है। मैंने उससे पूछा कि पढ़ने के पश्चात कौन -सी नौकरी का लक्ष्य रखा है। उसका त्वरित उत्तर था -मैं ज्ञान के लिए पढ़ रहा हूं, नौकरी के लिए नहीं। नौकरी करने पर माता-पिता से दूर जाना पड़े। अतः मैं नौकरी नहीं करूंगा। घर पर ही रह कर कृषि के साथ-साथ माता- पिता की सेवा करूंगा। उस विद्यार्थी के उत्तर ने मुझे उस परिवार के उत्तम संस्कारों एवं परंपराओं से पल में अवगत करा दिया।

क्रमशः ….

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