धोरों से हिलोरों तक (नर्मदा यात्रा-3)
दयाराम महरिया
26 फरवरी, 2021 को अतरसमा ग्राम में ही शिवनारायण जी महरिया (जिनकी पूर्व में मैं चर्चा कर चुका हूं) के घर पर प्रातःकाल अल्पाहार किया। सेवानिवृत्ति से पहले वे भोपाल में ही रहते थे इसलिए बच्चे उनको ‘भोपाल वाला बाबा ‘कहते हैं। संतोष जी ने मुझे ग्राम दिखाया। वहां के जाट लगभग एक सौ पचास वर्ष पूर्व राजस्थान से वहां गए थे। उस समय किसानों का कृषि के बजाय पशुपालन मुख्य व्यवसाय था। राजस्थान में जब अकाल पड़ जाता तो अपने पशु लेकर मालवा (माल वाला प्रदेश) क्षेत्र में चले जाते थे। उनमें से कुछ परिवार वहीं बस गए। राजस्थानी में कहावत है – काल़ पड़ै जद मऊ (जनता का सामूहिक पलायन) माल़वै जाय।
संतोष जी का श्री राममंदिर निधि संग्रह में विशेष दायित्व के क्रम में उनका कहीं जाने का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था। अतः उनके पुत्र प्रिय रोहित मुझे हमारे सहयात्रियों के रात्रि विश्राम स्थल हंडिया के ‘शिव करुणा धाम’ पर छोड़ने आया। वह आश्रम हंडिया में उनके घर से लगभग 10 किलोमीटर दूर था। रोहित ने बताया कि हंडिया में नर्मदा के किनारे ‘जाट श्मशान घाट’ भी है। काशी की तरह वहां भी मान्यता है कि नर्मदा के किनारे दाह- संस्कार करने पर जीवात्मा को सद्गति प्राप्त होती है। अतः दूर-दूर से लोग अपने परिजनों का दाह संस्कार वहां आकर करते हैं। आश्रम पहुंचकर हमने आदरणीय गोविंदाचार्य जी के चरण स्पर्श किए। उन्होंने रोहित को नाम लेकर पुकारा। यह सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ। आदरणीय गोविंदाचार्य जी कल रात रोहित के घर पर उसके परिवारजनों के साथ कुछ समय के लिए मिले थे। वहां मिलने वालों में भी वह प्रमुख नहीं था। उसके बावजूद उसको नाम लेकर पुकारना उनकी विलक्षण स्मरण शक्ति का परिचायक है। ऐसे प्रज्ञावान महापुरुष के समक्ष मैं नतमस्तक हूं।
शिव करुणाधाम आश्रम में मनमोहक आम्रकुंज है। वह मंजरी- महक से सुवासित था। मेरा मन-भ्रमर वहां उड़ने लगा।वहां की गौशाला का अवलोकन कर हम आगे चल दिए। प्रतिदिन की भांति आज भी रास्ते में स्थान- स्थान पर हमारा स्वागत- सत्कार होता रहा। अपराह्न में हम संत सिंगाजी की समाधि पर दर्शनार्थ गए। उस क्षेत्र में उनकी बड़ी मान्यता है। वे लगभग 500 वर्ष पहले हुए थे। उन्होंने 40 वर्ष की आयु में जीवित समाधि ले ली थी। उनकी समाधि पर दर्शनार्थ प्रतिदिन काफी श्रद्धालु आते हैं। समाधि स्थल पर उनके कुछ विचार भी लिखे हुए हैं। उनमें से एक दोहा लिखा हुआ है-
क्या कुएँ का बैठना, फूट ठीकरी हाथ।
जा बैठो दरियाव में ,मोती बांधो गांठ।।
मेरे मतानुसार फूट के स्थान पर ‘पड़े’ व गांठ के स्थान पर तुकबंदी के लिए ‘साथ’ उपयुक्त है। मैंने वहां के महंत को जब इस बारे में अवगत कराया तो उन्होंने कोई रुचि नहीं ली। समाधि के बाहर सीडी की दूकान पर राजस्थान में आजकल प्रचलित डीजे संगीत ‘गजबण पाणी ने चाली’ बज रहा था। गज़ब ! राजस्थान की गजबण मध्यप्रदेश में पानी भर रही थी। उस गीत ने भूगोल-भाषा की सब सीमाएं तोड़ दीं। अनेक स्थानों पर भ्रमण करते हुए हम सायंकाल सनावद कस्बे में पहुंचे। वहां रीवा गुर्जर समाज के संस्थान में हम सब का स्वागत हुआ तथा आदरणीय गोविंदाचार्य जी का उद्बोधन हुआ। संचालनकर्ता ने राम मंदिर व कार सेवा से जुड़े कई प्रसंग याद किए। उन्होंने आजकल के अधिकांश नेताओं की कार्यशैली पर व्यंग करते हुए निम्न पंक्तियां पढ़ीं –
काम मत कर ,काम की फिक्र कर।
फिक्र मत कर , फिक्र का जिक्र कर।।
गोविंदाचार्य जी ने अपने विचारों एवं नर्मदा दर्शन यात्रा के उद्देश्यों पर काफी विस्तार से प्रकाश डाला। रात्रि- विश्राम हमने ओंकारेश्वर (ममलेश्वर) के ‘नज़र निहाल आश्रम’ में किया।
– क्रमशः