आजाद हिन्द फौज की पहली महिला जासूस नीरा आर्य पर बनेगी बायोपिक

आजाद हिन्द फौज की पहली महिला जासूस नीरा आर्य पर बनेगी बायोपिक

 आजाद हिन्द फौज की पहली महिला जासूस नीरा आर्य पर बनेगी बायोपिक आजाद हिन्द फौज की पहली महिला जासूस नीरा आर्य पर बनेगी बायोपिक

स्वतंत्रता के लिए भारत का एक लंबा और कठिन संघर्ष था, जिसमें हजारों लोग गुमनाम रहते हुए ही बलिदान हो गए। ऐसा ही एक कम ज्ञात नाम है नीरा आर्य का, जो INA (इंडियन नेशनल आर्मी) की एक बहादुर योद्धा थीं। उन्हें भारत की पहली महिला जासूस के रूप में जाना जाता है। वे आजाद हिन्द फौज की झाँसी रेजिमेंट में एक सैनिक थीं।

स्वाधीनता के सात दशक बाद, विश्व अब नीरा आर्य की बहादुरी के बारे में जान पाएगा, क्योंकि कन्नड़ फिल्म निर्देशक रूपा अय्यर उनके जीवन पर एक बायोपिक बना रही हैं। रूपा अय्यर नीरा आर्य की बायोपिक के साथ एक अभिनेत्री और निर्देशक के रूप में बॉलीवुड में अपनी शुरुआत कर रही हैं।

नीरा आर्य के अंदर देश प्रेम हिलोरें मार रहा था, वे अपनी पढ़ाई के साथ ही सुभाष चंद्र बोस की ‘आजाद हिन्द फौज’ की रानी झांसी रेजिमेंट में एक सैनिक के रूप में शामिल हो गईं।उन्हें आजाद हिंद फौज की प्रथम जासूस होने का गौरव प्राप्त है। नीरा को यह दायित्व स्वयं नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दिया था। अपनी साथी मानवती आर्या, सरस्वती राजमणि, दुर्गा मल्ल गोरखा एवं युवक डेनियल काले संग इन्होंने नेताजी के लिए अंग्रेजों की जासूसी की।

जासूसी से संबंधित इनकी आत्मकथा का एक अंश इस प्रकार है, “मेरे साथ एक और लड़की थी, सरस्वती राजमणि। वह आयु में मुझसे छोटी थी, जो मूलतः बर्मा की रहने वाली थी और वहीं जन्मी थी। उसे और मुझे एक बार अंग्रेजी अफसरों की जासूसी का काम सौंपा गया। हम लड़कियों ने लड़कों की वेशभूषा अपना ली और अंग्रेज अफसरों के घरों व मिलिट्री कैम्पों में काम करना शुरू किया। हमने आजाद हिंद फौज के लिए बहुत सूचनाएँ इकट्ठी कीं। हमारा काम होता था अपने कान खुले रखना, प्राप्त जानकारी को नेताजी तक पहुँचाना। कभी-कभार हमारे हाथ महत्वपूर्ण दस्तावेज भी लग जाया करते थे। जब हम लड़कियों को जासूसी के लिए भेजा गया था, तब हमें स्पष्ट रूप से बताया गया था कि पकड़े जाने पर हमें स्वयं को गोली मार लेनी है। एक लड़की ऐसा करने से चूक गई और जीवित गिरफ्तार हो गई। इससे अनेक साथियों और संगठन पर खतरा मंडराने लगा। मैंने और राजमणि ने निर्णय किया कि हम अपनी साथी को छुड़ा लाएँगी। हमने हिजड़े नर्तकी की वेशभूषा धारण की और पहुँच गईं उस स्थान पर, जहाँ हमारी साथी दुर्गा को अंग्रेजों ने बंदी बना कर रखा हुआ था। हमने अफसरों को नशीली दवा खिला दी और अपनी साथी को लेकर भागीं। यहां तक तो सब ठीक रहा, लेकिन भागते समय एक दुर्घटना घट ही गई। जो सिपाही पहरे पर थे, उनमें से एक की बंदूक से निकली गोली राजमणि की दाईं टांग में धंस गई, खून का फव्वारा छूटा। किसी तरह लंगड़ाती हुई वो मेरे और दुर्गा के साथ एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गई। नीचे सर्च ऑपरेशन चलता रहा और हमें तीन दिनों तक पेड़ पर ही भूखे-प्यासे रहना पड़ा। तीन दिन बाद ही हमने हिम्मत की और सकुशल अपनी साथी के साथ आजाद हिन्द फौज के बेस पर लौट आईं। तीन दिन तक टांग में रही गोली ने राजमणि को हमेशा के लिए लंगड़ा कर दिया। लेकिन इस बहादुरी से नेताजी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने राजमणि को आईएनए की रानी झांसी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट का पद दिया और मैं कैप्टन बना दी गई। मैंने एक दिन राजमणि से मजाक में कहा, तू तो लंगड़ी हो गई, अब तुझसे शादी कौन करेगा? तो वह बोली, आजाद हिन्द में हजारों बहादुर हैं, उनमें से कोई जो जंग में दोनों पैरों में गोलियां खाएगा और दुश्मनों को ढेर करेगा उसी से कर लूंगी, बराबर की जोड़ी हो जाएगी। मेरी बोलती बंद!”

नीरा आर्य का विवाह एक अंग्रेजी अफसर से हुआ था। अंग्रेजों ने उन्हें नेताजी की जासूसी व उनकी हत्या का काम सौंपा था। ऐसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए उन्होंने अपने पति की हत्या कर दी थी। अंग्रेजों ने उन्हें पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा सुनाई और घोर यातनाएं दीं। यहॉं तक कि उनके स्तन काट दिए।

जीवन के अंतिम दिन
ऐसी बहादुर और अप्रतिम योद्धा को स्वाधीनता के बाद वह सम्मान नहीं मिला, जिसकी वो अधिकारी थीं। जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने फूल बेचकर गुजारा किया और हैदराबाद में एक झोपड़ी में रहीं। बाद में तो इनकी झोपड़ी को भी तोड़ दिया गया, कहा गया कि वह सरकारी जमीन पर बनी है। वृद्धावस्था में बीमारी की अवस्था में चारमीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में इन्होंने रविवार 26 जुलाई, 1998 में एक गरीब, असहाय, निराश्रित, बीमार वृद्धा के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया। भारत माता की विवादित पेंटिंग पर एमएफ हुसैन से उलझने वाले हिन्दी दैनिक स्वतंत्र वार्ता के पत्रकार तेजपाल सिंह धामा ने अपने सा​थियों संग मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया।

नीरा आर्य : भारत की पहली महिला जासूस

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