नूंह हिंसा पर कारवां पत्रिका की ग्राउंड रिपोर्ट : हिन्दू दोषी, मुसलमान पीड़ित, छिपाए तथ्य
नूंह हिंसा पर कारवां पत्रिका की ग्राउंड रिपोर्ट : हिन्दू दोषी, मुसलमान पीड़ित, छिपाए तथ्य
वामपंथी पत्रिका कारवां अपनी एजेंडा आधारित पत्रकारिता के लिए जानी जाती है। हिन्दुओं के विरोध में लिखना और ऐसा करते समय तथ्यों को छिपा जाना पत्रिका के लिए कोई नयी बात नहीं। हाल ही में नूंह (मेवात) में जलाभिषेक यात्रा के दौरान हुई हिंसा में सुनियोजित तरीके से हिन्दुओं को निशाना बनाया गया। अभिषेक व प्रदीप की क्रूर हत्या हुई, अनेक हिन्दू घायल हो गए, दूसरी ओर एक भी मुसलमान को चोट तक नहीं आई, छतों से पत्थर फेंकते उनके वीडियो खूब वायरल हुए। लेकिन कारवां ने अपनी ’ग्राउंड रिपोर्ट’ में पूरे प्रयास कर डाले हिन्दुओं को दोषी और मुसलमानों को पीड़ित सिद्ध करने के।
अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में कारवां ने लिखा है कि किस तरह से हिंसा के बाद 2 अगस्त को मुस्लिम बहुल एक गांव में पुलिस ने रेड मारी, वहां के युवकों और पुरुषों को हिरासत में लिया और कैसे पूरा गांव खाली हो गया। जो लोग रह गए थे, वे भी डर के कारण गांव से चले गए।
रिपोर्ट का कहना है कि पुलिस ने केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों को हिरासत में लिया। जिनका हिंसा से कोई लेना–देना नहीं है। जबकि पुलिस ने हिन्दू समुदाय के एक भी व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया।
रिपोर्ट को इस तरह से प्रस्तुत किया गया कि पूरी हिंसा में पुलिस की कार्यवाही एकतरफा दिखाई दे, किसी भी सतही सोच रखने वाले व्यक्ति के लिए यह रिपोर्ट सम्भ्रम पैदा कर सकती है।
कारवां ने पुलिस पर मनमाने तरीके से गिरफ्तारी का आरोप लगाया। रिपोर्ट में कहा गया है कि 57 FIR के आधार पर 220 गिरफ्तारियां की गईं, जो कि सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों की थीं। रिपोर्ट पूरी तरह से इस बात पर केंद्रित है कि पुलिस ने सिर्फ मुसलमानों को हिरासत में लिया है जबकि वास्तव में यह पीड़ित पक्ष है। मुस्लिम समुदाय भयभीत है।
कारवां की यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे एक तरफा झूठी, रिपोर्टिंग करके कुछ मीडिया संस्थान लोगों को दिग्भ्रमित करने का कार्य करते हैं। अपनी इस रिपोर्ट में कारवां ने पुलिस रेड की बात तो बताई, लेकिन यात्रा में “अल्लाह हू अकबर” के नारों के साथ हुई सुनियोजित पत्थरबाजी और गोलीबारी में कौन लोग घायल हुए हैं इसकी कोई जानकारी नहीं दी। ना तो अभिषेक की हत्या करने वाले दंगाइयों का नाम लिया, ना पुलिस पर हमला करने वाले और पुलिस की गाड़ियां जलाने वालों की पहचान बताई, जबकि इन सब के साक्ष्य हिंसा के बाद ही वीडियो रिकॉर्डिंग्स में सामने आ चुके थे।
चार हजार श्रद्धालुओं को किस प्रकार से घेर कर पहाड़ से गोलीबारी की गई। एंबुलेंस जलाई गई, काली मंदिर पर पथराव किया गया, साइबर थाने में आग लगाई गई, तेल मिल को जलाने से करोड़ों का नुकसान हुआ, लेकिन कारवां ने इन सब बातों का उल्लेख करने में कोई रुचि नहीं दिखायी।
कारवां की रिपोर्ट ने यह भी नहीं बताया कि हिंसा भड़काने के लिए वायरल किया गया मोनू मानेसर का वीडियो इस वर्ष का नहीं था, पुराना था। ना ही कारवां ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में दंगे से पहले सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट करने वाले अजहर इसाब, मोहम्मद साबिर जैसे लोगों की पहचान बताई। क्योंकि यह सब इसके एजेंडा को सूट नहीं करता।
इसके एजेंडा को समझने के लिए कुछ और महत्वपूर्ण मामलों में इस पत्रिका द्वारा की गई रिपोर्टिंग को देखना आवश्यक है।
श्री राम जन्मभूमि के महत्वपूर्ण निर्णय के बाद कारवां ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि “अधिकतर हिन्दू राम के जीवन के बारे में सोचते तक नहीं हैं और ना ही वे राम के जन्म को सच्ची घटना मानते हैं।” कारवां ने लिखा कि पूरे निर्णय में न्यायाधीश मुसलमानों की तुलना में हिन्दुओं के लिए कहीं अधिक संवेदनशील दिखे। और यह भी कि ब्रिटिश राज से पहले हिन्दू राम जन्मभूमि के बारे में सोचते तक नहीं थे। यह तो अंग्रेजों की फूट डालने की नीति के साथ सामने आया। इसी तरह दिल्ली दंगों को लेकर भी एक ‘हिन्दू दंगाई का कबूलनामा‘ ऐसी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। और कुछ इसी तरह की रिपोर्टिंग ज्ञानवापी मामले में भी की। जबकि समय–समय पर आए न्यायालय के निर्णयों के बाद इन सभी मामलों की सच्चाई स्पष्ट दिखाई देती है।
इस पत्रिका पर तो तत्काल बैन लगाया जाए