नए अवतार में न्याय की देवी, आंखों से पट्टी हटी, हाथ में तलवार की जगह संविधान

नए अवतार में न्याय की देवी, आंखों से पट्टी हटी, हाथ में तलवार की जगह संविधान

नए अवतार में न्याय की देवी, आंखों से पट्टी हटी, हाथ में तलवार की जगह संविधान नए अवतार में न्याय की देवी, आंखों से पट्टी हटी, हाथ में तलवार की जगह संविधान

स्वाधीनता के दशक बीत जाने के बाद भी हम ब्रिटिश कानूनों और प्रतीक चिह्नों को ढोते आ रहे हैं। हालांकि वर्तमान सरकार इनसे मुक्ति के प्रयास कर रही है। कुछ समय पहले केन्द्र सरकार ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता लागू की थी। अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ ने भारतीय न्यायपालिका में एक और बड़ा परिवर्तन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों से न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हटा दी है और हाथ में भी अब तलवार के स्थान पर संविधान है। इससे सुप्रीम कोर्ट ने देश को संदेश दिया है कि अब ‘कानून अंधा’ नहीं है। सीजेआई मानते हैं कि कानून अंधा नहीं है बल्कि सभी को समान मानता है। इसी कारण आंखों से पट्टी हटाई गई है। प्रधान न्यायाधीश का मानना है कि न्याय की देवी के एक हाथ में संविधान होना चाहिए, तलवार नहीं ताकि लोगों में यह संदेश जाए कि वह संविधान के अनुसार न्याय करती है। तलवार हिंसा का प्रतीक है, अदालतें संवैधानिक कानूनों के अनुसार न्याय करती हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायिक प्रक्रिया में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परिपाटी को बदलकर उसमें भारतीयता को बढ़ावा देना चाहते हैं। उनका उद्देश्य संविधान में समाहित समानता के अधिकार को जमीनी स्तर पर लागू करना है। सीजेआई द्वारा किए गए इन परिवर्तनों का हर ओर स्वागत किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में ‘न्याय की देवी’ की नई प्रतिमा लगाई गई है। इसमें कई बदलाव किए गए हैं। पुरानी प्रतिमा में न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बंधी थी, एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में तराजू था। लेकिन नई प्रतिमा की आंखों से पट्टी हटा दी गई है। नई मूर्ति के एक हाथ में पहले की तरह तराजू है, लेकिन दूसरे हाथ में तलवार के स्थान पर संविधान है। मूर्ति के एक हाथ में जो तराजू है वह यह दिखाता है कि कोर्ट किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों की बात को ध्यान से सुनता है। तराजू संतुलन का प्रतीक है।

भारतीय संस्कृति को दर्शाती है नई प्रतिमा 
सीजेआई की पहल पर लगाई गई न्याय की देवी की यह प्रतिमा भारतीय संस्कृति को दर्शाती है। शांति के प्रतीक सफेद रंग की इस प्रतिमा को भारतीय परिधान यानी साड़ी पहनाई गई है। इसके अतिरिक्त पौराणिक कथाओं में देवियों के सिर पर मुकुट होने का वर्णन किया जाता है, उसी के अनुरूप नई प्रतिमा के सिर पर एक मुकुट भी है। माथे पर बिंदी और आभूषण भी पहनाए गए हैँ।

भारत में कहां से आई न्याय की देवी की मूर्ति 
यूनान से न्याय की देवी की मूर्ति इंग्लैंड पहुंची थी। एक अंग्रेज अधिकारी वहां से इस मूर्ति को लेकर भारत आए थे। ये अंग्रेज अफसर न्यायालय में एक अधिकारी थे। ब्रिटिशकाल में 18वीं शताब्दी के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक प्रयोग किया गया। बाद में जब देश स्वाधीन हुआ, तो हमने भी न्याय की देवी को स्वीकार किया। न्याय की देवी वास्तव में यूनान की प्राचीन देवी हैं, जिन्हें न्याय का प्रतीक कहा जाता है। इनका नाम जस्टिया है। इनके नाम से जस्टिस शब्द बना था।

सुप्रीम कोर्ट की एक और पहल 
एक और पहल करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने तिलक मार्ग पर एक बड़ी वीडियो वॉल लगा दी गई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस क्लॉक हर समय चलती रहती है। इससे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की रियल टाइम जानकारी जानी जा सकती है। जस्टिस क्लॉक को वेबसाइट पर देखा जा सकता था, लेकिन आम जनता को सीधे जानकारी पहुंचाने और व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए जस्टिस क्लॉक का वीडियो वॉल लगाया गया है।

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