क्या जी मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार नहीं?
क्या जी मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार नहीं?
आम आदमी पार्टी ने एक दिन पहले ही पंजाब राज्य में बिना कोई आधिकारिक सूचना जारी किए जी मीडिया के सभी चैनलों के प्रसारण पर रोक लगा दी। अपुष्ट रिपोर्टों के अनुसार, इस मीडिया चैनल ने पंजाब सरकार में मंत्री बलकार सिंह का 21 वर्ष की लड़की के साथ आपत्तिजनक वीडियो दिखाया था। इसके बाद मान सरकार ने चैनल पर रोक लगाने का निर्णय लिया। अब प्रश्न उठता है, क्या नेताओं के कुकर्म बाहर नहीं आने चाहिए? क्या जी मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है? 2017 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट तक को नसीहत देने वाले केजरीवाल अब चुप क्यों हैं? कुछ वर्ष पहले आप पार्टी प्रमुख केजरीवाल पर एक बायोपिक बनी थी, उस पर रोक लगाने की मांग सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची, तो केजरीवाल ने कहा था- “कोर्ट बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दखल नहीं दे सकता।” आज इन्हीं की पार्टी की सरकार पंजाब में एक चैनल समूह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन रही है।
आप सरकार का यह निर्णय 1975 में देश में लगे आपातकाल की याद दिलाता है। उस समय भी यही हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इलाहबाद हाईकोर्ट द्वारा उनका चुनाव रद्द करने के बाद त्यागपत्र न दे कर 25-26 जून, 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल लगा दिया। रातों रात दिल्ली के बहादुरशाह जफर मार्ग स्थित अखबारों के ऑफिसों की बिजली काट दी गई ताकि सुबह तक समाचार पत्र न छप सकें और न ही लोगों तक समाचार पहुंच सके। और तो और समाचार पत्रों के कार्यालयों में अपने अधिकारी बिठा दिए, जिनकी अनुमति के बिना राजनीतिक समाचार नहीं छापे जा सकते थे। ठीक यही पंजाब सरकार ने 2024 में किया है।
मामले में प्रतिक्रिया देते हुए चैनल का कहना है कि लोकसभा चुनाव 2024 में राज्य की जनता के आवश्यक मुद्दों को उठाने और आप सरकार की कमियों पर की गई रिपोर्टिंग के बाद प्रदेश सरकार ने यह तुगलकी फरमान सुनाया है। मीडिया संस्थान का कहना है कि उनके पास लोगों की शिकायतें आ रही हैं कि वो अपने घर में Zee मीडिया के चैनल नहीं देख पा रहे हैं।
राजनीतिक दलों व पत्रकारों ने पंजाब सरकार के निर्णय की कड़ी आलोचना की है। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है और लोकतंत्र की रक्षा का दावा करने वाले जब स्वयं ही लोकतंत्र की चूलें हिलाने का काम करें तो क्या लोकतंत्र का मान रह पाएगा? आपातकाल के दौरान एक समाचार पत्र ने सेंसरशिप से बचकर शोक संदेश के कॉलम में छापा- ‘आजादी की मां और स्वतंत्रता की बेटी लोकतंत्र की 26 जून, 1975 को मृत्यु हो गई।’ हालांकि आपातकाल समाचार को विदेशी समाचार पत्रों में छपने से इंदिरा सरकार नहीं रोक पाई और यहीं से लोग बीबीसी न्यूज सेवा की ओर आकर्षित होने लगे थे। पंजाब सरकार ने जिस भी कारण से जी मीडिया (Zee Media) पर रोक लगाई हो, वह अलग मामला है, लेकिन आज भी यह समाचार विदेशों में प्रसारित तो होगा ही! कुछेक राजनेताओं के निजी स्वार्थों के चलते विश्व में देश की छवि को तो नुकसान पहुंचता ही है।
जी न्यूज के रिपोर्टर मनोज जोशी ने कहा कि पंजाब सरकार में कोई भी इस संबंध में कोई उत्तर नहीं दे रहा है और कहा जा रहा है कि उनके पास कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए कहा कि संविधान प्रदत्त अधिकार को रोका गया है। वहीं एक अन्य रिपोर्टर रवि त्रिपाठी ने दावा किया है कि इसी पंजाब में जब इससे पहले अकाली दल की सरकार थी, तब भी Zee मीडिया को बैन किया गया था, पार्टी का बुरा हश्र हुआ। इतिहास गवाह है तानाशाही जनता को स्वीकार्य नहीं है। इसीलिए 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस उत्तर भारत में हार गई।
आम आदमी पार्टी पिछले दो वर्षों से लगातार विवादों में घिरी है। परन्तु यह पार्टी के लिए मात्र एक और विवाद नहीं, लोकतंत्र का अपमान है।