धोखे और फरेब से भरा है सल्तनतकालीन इतिहास

धोखे और फरेब से भरा है सल्तनतकालीन इतिहास

31 जनवरी 1561 : पठानों ने मुगल सेनापति बैरम खान की पीठ में भोंका था छुरा 

रमेश शर्मा

धोखे और फरेब से भरा है सल्तनतकालीन इतिहासधोखे और फरेब से भरा है सल्तनतकालीन इतिहास

सल्तनत और अंग्रेजी काल का इतिहास धोखे और फरेब से भरा है। दिखावटी दोस्ती और मीठी बातों में फँसाकर कर न जाने कितना खून खराबा हुआ। इसी शैली में 31 जनवरी 1561 को पठान हमलावरों के एक गिरोह ने मुगल सेनापति बैरम खान की हत्या कर दी। इस हत्या के बाद बैरम खान की पत्नी सलीमा सुल्तान बेगम और बेटे रहीम को मुगल बादशाह अकबर के हरम में पहुँचा दिया गया।

यह घटना गुजरात के पाटन में घटी। बैरम खान अपने परिवार सहित हज के लिये मक्का जा रहा था। यह काफिला नमाज के लिए रास्ते में रुका। तभी वहाँ बीस पच्चीस पठानों का समूह आया। उस समूह ने भी साथ नमाज पढ़ी। उस समूह का सरदार मुबारक खान नमाज के बाद बैरम खान के गले मिला। तभी उसके दूसरे साथी ने बैरम खान की पीठ में छुरा भोंक  दिया,  जिससे उसकी मौत गई।

बैरम खान मुगल बादशाह हुँमायूं का बाल सखा और रिश्ते में साढ़ू भाई था। बैरम खान ने ही दिल्ली के शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य को धोखे से पराजित कर मुगलों को पुनः दिल्ली का अधिपति बनाया था। यह भयानक युद्ध इतिहास के पन्नों में पानीपत के द्वितीय युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है, जो 1556 में लड़ा गया था। इससे प्रसन्न होकर हुँमायूं की पत्नी ने अपनी सगी ननद गुलरुख की बेटी सलीमा सुल्तान का निकाह बैरम खान से करा दिया था। सलीमा बेगम अपने सौन्दर्य के लिये मुगल परिवार में प्रसिद्ध थी। रिश्ते में सलीमा सुल्तान और अकबर ममेरे फुफेरे बहन भाई थे। जब यह निकाह हुआ तब सलीमा बेगम की आयु अठारह वर्ष थी और बैरम खान 56 वर्ष का था। यानि दोनों की आयु में लगभग अड़तीस वर्ष का अंतर था।

अकबर को गद्दी पर बिठाने और हमलों से सुरक्षित करने का श्रेय बैरम खान को ही है। हुँमायूं की मृत्यु के बाद बैरम खान ही अकबर का अभिभावक था। वह रिश्ते में अकबर का सगा मौसा भी था, पर अकबर इस विवाह से खुश न था। मतभेद बढ़े और बादशाह के आदेश पर बैरम खान परिवार सहित हज को चल दिये। रास्ते में उनकी हत्या कर दी गई। यद्यपि आइने अकबरी आदि में इस घटना को एक लूट के इरादे से माना गया। किन्तु कुछ इतिहासकारों ने इसे लूट नहीं एक षड्यंत्र माना। चूँकि घटना में केवल कुछ पुरुष ही मारे गये थे। स्त्री बच्चे सुरक्षित रहे। बैरम खान की मौत के बाद सलीमा बेगम और बैरम खान के पुत्र रहीम को दरबार लाया गया। अकबर ने सलीमा से निकाह किया और रहीम के पालन पोषण का जिम्मा लिया। यह रहीम आगे चलकर सुप्रसिद्ध कवि अब्दुल रहीम खान ए खाना बने।

यहाँ एक और बात है। अधिकांश इतिहास की पुस्तकों में रहीम को सलीमा सुल्तान बेगम का पुत्र माना है। जबकि रहीम बैरम खान के तो पुत्र थे पर उनकी माँ सुल्ताना बेगम थीं, जो जलाल खाँ मेवाती की बेटी थीं। रहीम का जन्म 1556 में हुआ था, जबकि सलीमा बेगम से बैरम खान का विवाह 1557 में हुआ था। जब धोखे से बैरम खान को मारा गया तब रहीम की आयु पाँच वर्ष थी, जबकि विवाह को चार वर्ष हुए थे। इस प्रकार जिस धोखे से बैरम खान ने दिल्ली के शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य की हत्या की थी, वैसी ही धोखे की मौत 31 जनवरी 1561 को बैरम खान को मिली।

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