नई पीढ़ी को पर्यावरण का महत्व समझाना आवश्यक है

नई पीढ़ी को पर्यावरण का महत्व समझाना आवश्यक है

रवि कुमार

नई पीढ़ी को पर्यावरण का महत्व समझाना आवश्यक है

जितने विषय समाज जीवन को प्रभावित करते है उनमें सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा है। शिक्षा मानव को मानव बनना सिखाती है। दुनिया के शिक्षाविद शिक्षा के तीन मुख्य उद्देश्य बताते हैं। एक, पुराना ज्ञान नई पीढ़ी को हस्तांतरित करना, दूसरा, नव ज्ञान का सृजन करना, तीसरा, जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए सुसज्ज करना यानि भविष्य की तैयारी करना। आज का विद्यार्थी कल का नागरिक होता है और आज का विद्यार्थी ही कल का नेतृत्व बनता है। भविष्य की तैयारी करना, कल का नागरिक व कल का नेतृत्व तैयार करना है तो आज के विद्यार्थी को प्रकृति की समझ भी देनी होगी। विद्यार्थी को प्रकृति का घनिष्ठतम अनुभव करवा कर प्रकृति संरक्षण के विषय में ज्ञान बढ़ाना होगा। विश्व पर्यावरण दिवस, पृथ्वी दिवस आदि वर्ष में आयोजन होते है जिससे विद्यार्थियों में जागरूकता बनाई जा रही है। पुस्तकीय जानकारी को व्यवहारिक अनुभव से जोड़ा जाए तो यह स्थाई भी होगा और परिणामकारी भी। इस विषय में कुछ प्रयोग सभी स्थानों पर कर सकते है।

जन्म दिवस पर पौधा रोपण : कक्षा में बालकों का जन्म दिवस आता ही है। जन्म दिवस पर प्रत्येक विद्यार्थी घर या विद्यालय में एक पौधा लगाए और वर्षभर उसकी संभाल भी रखे। कुछ वर्षों में एक कक्षा द्वारा लगाए गए पौधों में से कितने वृक्ष बने इसकी चर्चा भी हो ।

हरा-भरा कक्षा कक्ष : कुछ चयनित कक्षाओं को बताया जाए कि कक्षा-कक्ष व आसपास को हरा-भरा बनाया जाए। घर में कचरा पात्रों व डिब्बों को पेंट कर एक-एक पौधा सभी लगाएं, उसकी संभाल करना व पानी देना इसकी चिंता भी वह बालक स्वयं करे। इससे कक्ष-कक्ष भी हर-भरा होगा, सभी की आदत में भी आएगा।

जल संरक्षण का विषय आदत बने : जल प्राकृतिक संसाधन है। जहां उसकी उपलब्धता रहती है। वहां के लोगों को लगता है कि जल असीमित है और जितना भी उपयोग करो समाप्त नहीं होगा। परंतु जहां जल की कम उपलब्धता रहती है या अनुपलब्ध रहता है वहां के लोगों की जल संसाधन का ठीक भान होता है। जल के प्रति जागरूकता बने यह अच्छा विषय है परंतु जल संरक्षण नई पीढ़ी की आदत में आना चाहिए।

सामान्यतः विद्यालय में बालक जब आता है पानी की बोतल लेकर आता है। विद्यालय अवकाश के समय जब वह घर जाता है तो सभी की बोतल का पानी पूरा उपयोग नहीं होता। बालकों से यह कहा जा सकता है कि जब विद्यालय से घर जाते समय बचे हुए पानी को पौधों में डाल कर जाएं अथवा किसी एक पात्र में डालकर जाएं और उस पात्र में जो पानी एकत्र होगा उससे पेड़-पौधों में देने के लिए उपयोग किया जाए।

कक्षाशः प्रकल्प : एक कक्षा के बालकों के साथ जल संरक्षण की चर्चा की जाए। चर्चा में घर में जल का उपयोग व दुरुपयोग प्रमुख रूप से रहे। घर में जल के दुरुपयोग को कम कैसे करे इसके कुछ बिंदु चर्चा कर निश्चित किए जाए। एक मास के पश्चात उसी कक्षा में इस विषय पर चर्चा हो। बीच-बीच में स्मरण करवाते रहे। मासिक चर्चा में किस बालक के घर में कैसा प्रयास हुआ इस पर शेयरिंग हो। यह चर्चा तीन पास तक हो । इससे बालकों में आदत का विषय बनेगा।

प्लास्टिक का प्रयोग न करें : प्लास्टिक का प्रयोग पर्यावरण को दूषित करता है। अतः नई पीढ़ी को प्लास्टिक प्रयोग से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक किया जाना आवश्यक है। जागरूकता के साथ-साथ व्यवहार में भी संभव हो सकता है ऐसा होता हुआ बालकों को दिखना भी चाहिए। जैसे अर्धावकाश के समय खाने के लिए बालक कुछ न कुछ लाता है। जिस टिफन में वह लाता है वह प्लास्टिक का न होकर स्टील या अन्य किसी धातु का हो, इसका आग्रह बना रहे। धीरे-धीरे सभी के टिफन प्लास्टिक रहित हो जाएं।

दूसरा, विद्यालय में अनेक कार्यक्रम होते हैं। उन कार्यक्रमों की सज्जा आदि के लिए सामग्री व बैनर आदि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला न हो। तीसरा, विभिन्न विषयों विज्ञान, गणित के मॉडल आदि में थर्मोकॉल की बजाय गत्ते या अन्य किसी का उपयोग हो। चौथा, कार्यक्रमों में जलपान आदि के लिए डिस्पोजल का प्रयोग वर्जित हो। कागज के कप/गिलासों की बजाय स्टील, कांच या चीनी मिट्टी से बने बर्तनों का प्रयोग हो। कागज जितना अधिक प्रयोग होगा उतने अधिक पेड़ कटेंगे।

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