सनातन की सम्पोषक पुण्यश्लोक अहिल्याबाई

सनातन की सम्पोषक पुण्यश्लोक अहिल्याबाई

हेमलता चतुर्वेदी

सनातन की सम्पोषक पुण्यश्लोक अहिल्याबाईसनातन की सम्पोषक पुण्यश्लोक अहिल्याबाई

महाराष्ट्र सरकार ने वर्ष 2023 में अहमद नगर का नाम बदल कर अहिल्या नगर रख दिया। अहिल्या नगर की विशेषता यह है कि इसी नगर के जामखेड स्थित चौंडी गांव में अहिल्याबाई का जन्म हुआ था। 31 मई, 1725 को जन्मी अहिल्याबाई होल्कर 11 दिसम्बर, 1767 को इंदौर की शासक बनीं। वे एक ऐसी शासनकर्ता थीं, जो स्वयं को राजगद्दी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि मानती थीं। इसीलिए उनके राज्य की राजमुद्रा का नाम ‘श्री शंकर आज्ञेवरून’ अर्थात् ‘श्री शंकर जी की आज्ञानुसार’ था। ये अहिल्याबाई ही थीं, जिन्होंने औरंगजेब द्वारा तोड़े गए काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। इसके अलावा बद्रीनाथ से रामेश्वरम् तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक आक्रमणकारियों द्वारा क्षतिग्रस्त मंदिरों का भी जीर्णोद्धार करवाया। इनमें सोमनाथ में बनवाया गया शिव मंदिर भी शामिल है। द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी के गंगा घाट, उज्जैन, नासिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास धर्मशालाएं बनवाईं। इसके परिणामस्वरूप प्राचीन काल में खंडित हुई तीर्थ यात्राओं में नवीन चेतना आई। इसी महान् कार्य के कारण उन्हें ‘पुण्यश्लोक’ की उपाधि मिली।

चौंडी गांव से पहुंचीं इंदौर राजघराने में
नारी सशक्तिकरण का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि साधारण परिवार में जन्मीं अहिल्या को उनके पिता ने उस कालखंड में पढ़ना-लिखना सिखाया, जब लोग अपनी बच्चियों को मुस्लिम आक्रांताओं की बुरी नजर से बचाने के लिए उन्हें घर पर रखना ही उचित समझते थे। यह शिक्षा और संस्कार ही थे कि अहिल्याबाई का व्यक्तित्व बचपन से ही अत्यंत प्रभावशाली था। एक दिन तत्कालीन सूबेदार मल्हार राव होल्कर पुणे जाते समय चौंडी गांव में विश्राम के लिए रुके तो उन्होंने देखा, एक आठ वर्षीय बालिका भूखे-गरीब लोगों को भोजन करवा रही थी। यह कोई और नहीं बल्कि अहिल्याबाई होल्कर ही थीं। उनके ऐसे आचरण और संस्कार से प्रभावित होकर मल्हार राव ने अहिल्याबाई का रिश्ता अपने बेटे खांडेराव के लिए मांग लिया। इस प्रकार आज के ‘अहिल्या नगर’ की अहिल्याबाई विवाह के बाद राजघराने की सदस्य बन इंदौर पहुंच गई।

बनी इंदौर- मालवा की शासक
अपने ससुर मल्हार राव से भी उन्हें पिता तुल्य स्नेह मिला। मल्हार राव ने उन्हें राजकाज की शिक्षा दी। कुम्हेर युद्ध में उनके पति खांडेराव की मृत्यु हो गई, तब मल्हार राव ने उन्हें सम्भाला। बाद में जब उनके ससुर की भी मृत्यु हो गई तो अहिल्याबाई ने राजधर्म का पालन करते हुए इंदौर मालवा की शासन व्यवस्था अपने हाथ में लेने के लिए पेशवा के समक्ष याचिका प्रस्तुत की। पेशवा की अनुमति मिलने पर उन्होंने इंदौर का शासन संभाला।

जनकल्याणकारी कार्य एवं धर्म संस्कृति का संरक्षण
इस अवधि में अहिल्याबाई ने भारत के उत्तर से दक्षिण तक कई प्रसिद्ध तीर्थों में मंदिर व धर्मशालाएं बनवाईं। पवित्र नदियों के घाट बनवाए, कुओं, बावड़ियों, बांधों और तालाबों का निर्माण करवाया। तीर्थ यात्रियों के लिए तीर्थ स्थानों पर अन्न क्षेत्र तथा पीने के पानी के लिए प्याऊ बनवाए। मंदिर केवल आस्था के ही केन्द्र नहीं होते, हमारी सांस्कृतिक विरासत को पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रवाहित करने का भी माध्यम हैं। इसे ध्यान में रखते हुए अहिल्याबाई ने मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति भी करवाई, ताकि वहां शास्त्रों का चिंतन-मनन एवं प्रवचन होता रहे।

महिला सशक्तिकरण
महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उन्होंने अनेक कार्य किए, जैसे विधवा महिला, जिसके कोई पुत्र न हो, उसकी संपत्ति राजकोष में जमा करवाने का नियम था। उन्होंने इस नियम को बदला तथा ऐसी महिलाओं को पति की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी मानकर छूट दी कि वे अपनी इच्छानुसार उस सम्पत्ति का उपयोग करें। इसी क्रम में उन्होंने पवित्र नदियों पर जहां-जहां भी घाट बनवाए वहां स्त्रियों के लिए अलग व्यवस्था की।

कुशल सेनापति
अहिल्याबाई ने अपनी ससुराल में न केवल राजकाज की शिक्षा पाई, बल्कि एक बहादुर योद्धा के गुर भी सीखे। अपने शासन काल के पहले वर्ष में ही उन्होंने बहादुरी का परिचय दिया और लुटेरों से मालवा की प्रजा की रक्षा की। कई युद्धों में सेना का नेतृत्व करने वाली अहिल्याबाई कुशल तीरंदाज भी थीं। वे अपने पति के साथ भी युद्धों में जाया करती थीं।

विकास की सूत्रधार
अहिल्याबाई होल्कर के कार्यकाल में इंदौर जैसा छोटा सा गांव विकसित शहर बन गया। अहिल्याबाई ने ही मालवा में सड़कें व किले बनवाने का कार्य किया। उद्योग-धंधों को प्रोत्साहन दिया। उनके शासनकाल में वाणिज्य अभिवृद्धि पर पूरा जोर दिया गया। किसान आत्मनिर्भर बनें, उन्हें शीघ्र न्याय मिले, ऐसी व्यवस्था की गई। उनके शासनकाल में गांव में पंचायत व्यवस्था, कोतवाल व पुलिस व्यवस्था एवं न्यायालय की स्थापना की गई।

ब्रिटिश समाज सेविका और कांग्रेस पार्टी की पहली महिला अध्यक्ष एनी बेंसेट के अनुसार- अहिल्याबाई के शासन काल में सड़कों के दोनों ओर पेड़ लगे होते थे। राहगीरों के लिए कुएं और विश्राम गृह बनाए गए। गरीबों और बेघरों की आवश्यकताएं पूरी की गईं। उन्होंने वनवासियों को मनाया कि वे जंगलों से निकल कर गांवों में किसानों की तरह जीवन यापन करें।

राज्य भगवान शिव का माना
सनातन धर्म में मान्यता है कि सम्पूर्ण सृष्टि ईश्वरीय विधान से चल रही है। इसी अवधारणा का पालन करते हुए रानी अहिल्याबाई राज आज्ञा पत्रों पर हस्ताक्षर के रूप में ‘शंकर’ लिखती थीं। उनका मानना था कि यह राज्य भगवान शिव का है और वे उनकी सेविका के रूप में राजकार्य कर रही हैं। उनके राज्य के रुपयों पर शिवलिंग और बिल्व पत्र तथा सिक्कों पर नंदी का चित्र अंकित था।

पर्यावरण विकास
जानकारी के अनुसार, महारानी अहिल्याबाई मिट्टी के शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती थीं। पूजा के बाद जब वे उन्हें विसर्जित करती थीं, तो इन शिवलिंगों में अनाज के दाने या बीज रख देती थीं। इससे दो काज सिद्ध होते, एक तो नदी तल में बीज और दाने जाने से समुद्री जीवों को पोषण मिलता और अगर ये बीज बहकर नदी किनारे आ जाते तो अंकुरित होकर वृक्ष बन जाते।
रानी अहिल्याबाई के आदेश पर ही किसानों ने खेतों की मेड़ पर छायादार और फलदार पेड़ लगाने शुरू किए। इनमें नींबू, गूलर, बरगद, आम तथा इमली को प्राथमिकता दी गई। इसका लाभ यह हुआ कि मिट्टी का क्षरण होना बंद हो गया। हरियाली बढ़ने के साथ ही कृषकों की आय भी बढ़ी। इस प्रकार रानी अहिल्याबाई की सूझ-बूझ से पर्यावरण संरक्षण, पशु-पक्षी पोषण, मृदा संरक्षण जैसे कामों को भी साधा गया। ऐसे उपाय आज के समय में भी प्रासंगिक हैं।

न्यायप्रियता
रानी अहिल्याबाई का एक और गुण उन्हें लोकप्रिय शासक के रूप में स्थापित करता है, वह है उनकी न्यायप्रियता। वे ऐसा न्याय करने में विश्वास रखती थीं, जिसके आधार पर प्रजा को सताने वाले को भी दंड न देकर उसे समझाने को प्राथमिकता दी जाती थी। अपराधियों को सुधारने पर ध्यान दिया जाता था। जन सुनवाई कार्यक्रम जो आजकल बहुत प्रचलित है, ऐसा कार्यक्रम अहिल्याबाई के शासनकाल में ही शुरू हो चुका था। रानी अहिल्याबाई प्रतिदिन एक सार्वजनिक सभा को सम्बोधित करती थीं, जिसमें वे लोगों की समस्याओं को सुनकर उनका निवारण करती थीं।

प्रजा की संतुष्टि ही प्रमुख
अहिल्याबाई कुशल प्रशासक एवं प्रजा की संरक्षक थीं। वे प्रजा से न्यूनतम कर की वसूली करती थीं। कर का उपयोग भी केवल प्रजा हित के कार्यों के लिए ही किया जाता था। स्वयं को प्रजा की संरक्षक मानने वाली अहिल्याबाई प्रजा को संतुष्ट रखना ही राज्य का मुख्य कार्य मानती थीं।

भारत सरकार व कई राज्य सरकारों ने अहिल्याबाई की प्रतिमाएं लगवाई हैं। उनकी स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए अनेक संस्थाओं व योजनाओं का नामकरण उनके नाम पर किया गया है।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में “अहिल्याबाई ने इंदौर पर तीस वर्षों तक शासन किया। यह समय सुशासन और व्यवसायिक दृष्टि से स्मरणीय माना जाता है। वे एक कुशल शासक और प्रबंधक थीं।” पूरा जीवन लोगों के बीच सम्माननीय रहीं। मृत्यु के बाद एक संत के रूप में उन्हें याद किया जाता है। अहिल्याबाई होल्कर ने भारत में धर्म का संदेश प्रसारित किया, संस्कृति और विरासत संजोने के साथ ही विकास को बढ़ावा देते हुए औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहन दिया। उनके सारे प्रबंधन सूत्र वर्तमान में भी उतने ही प्रासंगिक हैं, इसलिए अनुकरणीय भी हैं। आज भी धर्म व संस्कृति का संरक्षण करना भारत की एकता और अखण्डता के लिए आवश्यक है।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *