पुस्तक परिचय – जाति का विनाश
राजू धतरवाल
पुस्तक जाति का विनाश सन 1936 के जात पांत तोड़त मंडल के एक सम्मेलन में प्रस्तुत करने हेतु डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा तैयार किए गए एक भाषण पर आधारित है।लेखक व पत्रकार राजकिशोर द्वारा अनुवादित इस पुस्तक को फॉरवर्ड प्रेस ने प्रकाशित किया है।
इसमें डॉ. आंबेडकर ने जाति व्यवस्था के उद्गम व विकास को बताते हुए समाज व राष्ट्र पर इसके प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण किया है। उन्होंने बताया कि जाति व्यवस्था जनित विभेदकारी वातावरण ने किस प्रकार जनचेतना व नैतिकता को नष्ट किया है। इस का निवारण करने तथा समाज में सुधार लाने के लिए उन्होंने कुछ उपाय बताए हैं जैसे अंतर्जातीय विवाह, भाईचारे की भावना पैदा करना, अंतर्जातीय सहभोज तथा समाज को ऐसे पुनर्गठित करना चाहिए जिसमें स्वतंत्रता समानता और भ्रातृत्व को मान्यता दी जाए।
हिंदू समाज की वर्ण व्यवस्था के सकारात्मक वास्तविक स्वरूप तथा जाति व्यवस्था को समझने तथा जाति विभेद जनित दुष्प्रभावों को जानने व इन कुरीतियों को समाप्त करने के उपाय जानने हेतु इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिए। हमारे समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर कर सुधार करने में यह पुस्तक निसंदेह एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।
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