आरएसएस के सरकार्यवाह सुरेश (भैय्याजी) जोशी की पुस्तक ज्ञानेश्वरी प्रसाद
पुस्तक परिचय
रवीन्द्र जोशी
दिल्ली के सुप्रसिद्ध प्रकाशक प्रभात पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक ज्ञानेश्वरी प्रसाद में भैय्याजी जोशी ने अपने मनोगत में लिखा है – हम सभी भारतवासी बड़े भाग्यशाली हैं कि हमें श्रीमद्भगवद्गीता जैसी श्रेष्ठ चिंतन- संपदा प्राप्त हुई है। प्रस्तुत संकलन में नया कुछ नहीं है। यह न विश्लेषण है, न समीक्षात्मक विवेचन है बल्कि अनेकानेक महानुभावों द्वारा प्रस्तुत की गई संकल्पनाओं को, उन्हीं के शब्दों में सरलता से प्रस्तुत करने का एक प्रयास मात्र है। मन की संतुष्टि के लिए यह प्रयास है, ऐसा कह सकते हैं।
गीता के प्रत्येक अध्याय के विविध शब्दों के अतीव सारगर्भित शब्दार्थ – भावार्थ – गूढ़ार्थ की प्रस्तुति इस लघु एवं अनोखे ग्रंथ में पढ़ने को मिलती है। जैसे – पहले अध्याय में लिखा है कि स्वधर्म पालन से जो प्राप्त होता है, उसे स्वीकार भी करें और सहन भी करें। चौथे अध्याय में ज्ञानी पुरुष के लक्षण बताए गए हैं। मैं यह कार्य कर रहा हूँ , मैं ही इसे पूर्ण करूंगा – यह संकल्प जिसके मन में रहता है। जो विविध आशा -अपेक्षाओं के साथ अहंकार को दूर रखता है, मत्सर और निर्मत्सर भाव से मुक्त, कर्मभाव से शास्त्र के अनुसार कर्म करता है, वही ज्ञानी पुरुष है।
अध्याय 18 में बताया गया है कि गीता में वर्णित किसी भी विधि से अपने हृदय में उपस्थित आत्मतत्व का साक्षात्कार किया जा सकता है। गीता में अर्जुन ‘एक भ्रमित परिच्छिन्न, असंख्य दोषों से युक्त जीव’ का प्रतीक है। परन्तु जब वह धनुष धारण करके अपने कार्य के लिए तत्पर हो जाता है, तब हम उसमें ‘धनुर्धारी पार्थ’ के दर्शन करते हैं जो सब प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्पर हो जाता है।
पुस्तक पठनीय और ज्ञानवर्धक है।
इसे प्रभात पेपरबैक्स, दिल्ली या फिर घर के निकट पुस्तक-बिक्री करने वाले बंधु की सहायता से क्रय किया जा सकता है।