परंपरा से, राष्ट्रीयता से, मातृभूमि से, पूर्वजों से, हम सब हिन्दू हैं
- सरसंघचालक डॉ. भागवत के उद्बोधनों पर आधारित पुस्तक यशस्वी भारत का विमोचन 19 दिसम्बर को
- पुस्तक में कुल 17 उद्बोधनों का संकलन
- विमोचन संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल करेंगे
- कार्यक्रम का होगा लाइव प्रसारण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के उद्बोधनों पर आधारित पुस्तक ‘यशस्वी भारत’ का विमोचन 19 दिसंबर को होगा। प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक का विमोचन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल करेंगे। कार्यक्रम का लाइव प्रसारण विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर होगा।
पुस्तक में विभिन्न कार्यक्रमों, अवसरों पर सरसंघचालक के 17 उद्बोधनों का संकलन है। पुस्तक में सितंबर, 2018 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित बहुचर्चित कार्यक्रम ‘भविष्य का भारत’ के पहले दो दिन का उद्बोधन और तीसरे दिन के प्रश्नोत्तरी को भी शामिल किया गया है। केवल पुस्तक पढ़कर संघ को समझना आसान नहीं है। लेकिन, फिर भी विभिन्न विषयों पर सरसंघचालक जी के उद्बोधन पर आधारित पुस्तक को पढ़ने से लोगों के लिए संघ को समझना आसान होगा। साथ ही यह भी स्पष्ट होगा कि विभिन्न विषयों पर संघ का विचार क्या है।
पुस्तक की प्रस्तावना में एम.जी. वैद्य लिखते हैं – “वर्तमान पीढ़ी इस ‘यशस्वी भारत’ पुस्तक को पढ़े। उसमें व्यक्त किए गए विचारों पर विचार करे। संघ समझने का अर्थ संघ की अनुभूति है। इसलिए हम यथासंभव शाखा के कार्य से जुड़ें और सामाजिक एकता तथा सामाजिक समरसता का अनुभव लेकर अपना जीवन समृद्ध एवं सार्थक बनाएं।”
‘यशस्वी भारत’ पुस्तक में संकलित उद्बोधनों के कुछ प्रमुख बिंदु संक्षेप में ……
- यह यशस्वी भारत पुस्तक के प्रथम प्रकरण का शीर्षक है, ‘हिंदू, विविधता में एकता के उपासक’। हम स्वस्थ समाज की बात करते हैं, तो उसका आशय ‘संगठित समाज’ होता है। (पृष्ठ 27)
- हम को दुर्बल नहीं रहना है, हम को एक होकर सबकी चिंता करनी है।
- भारत की परंपरागत संस्कृति के आधार पर पूर्व में कभी इस भारत का जो चित्र दुनिया में था, वह अत्यंत परम वैभव-संपन्न, शक्ति-संपन्न राष्ट्र के रूप में था और परम वैभव, शक्ति-संपन्न होने के बाद भी दुनिया के किसी देश को न रौंदने वाला था. उलटा सारी दुनिया को एक सुख-शांतिपूर्वक जीने की सीख अपने जीवन से देने वाला भारत है। (पृष्ठ 45)
- हमारा काम सबको जोड़ने का है।
- संघ में आकर ही संघ को समझा जा सकता है।
- संगठन ही शक्ति है। विविधतापूर्ण समाज को संगठित करने का काम संघ करता है।
- राष्ट्रीयता ही संवाद का आधार हो। वैचारिक मतभेद होने के बाद भी एक देश के हम सब लोग हैं और हम सबको मिलकर इस देश को बड़ा बनाना है. इसलिए हम संवाद करेंगे। (पृष्ठ 73)
- संघ का काम व्यक्ति-निर्माण का है। व्यक्ति निर्मित होने के बाद वे समाज में वातावरण बनाते हैं। समाज में आचरण में परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं। यह स्वावलंबी पद्धति से, सामूहिकता से चलने वाला काम है….संघ केवल एक ही काम करेगा – व्यक्ति-निर्माण. लेकिन स्वयंसेवक समाज के हित में जो-जो करना पड़ेगा, वह करेगा। (पृष्ठ 205)
- भारत से निकले सभी संप्रदायों का जो सामूहिक मूल्यबोध है, उसका नाम ‘हिन्दुत्व’ है।
- हमारा कोई शत्रु नहीं है, न दुनिया में है, न देश में। हमारी शत्रुता करने वाले लोग होंगे, उनसे अपने को बचाते हुए भी हमारी आकांक्षा उनको समाप्त करने की नहीं, उनको साथ लेने की है, जोड़ने की है। यह वास्तव में हिन्दुत्व है। (पृष्ठ 221)
- परंपरा से, राष्ट्रीयता से, मातृभूमि से, पूर्वजों से, हम सब लोग हिन्दू हैं। यह हमारा कहना है और यह हम कहते रहेंगे। (पृष्ठ 257)
- हमारा कहना है कि हमारी जितनी शक्ति है, हम करेंगे, आपकी जितनी शक्ति है, आप करो। लेकिन इस देश को हमको खड़ा करना है। क्योंकि संपूर्ण दुनिया को आज तीसरा रास्ता चाहिए। दुनिया जानती है और हम भी जानें कि तीसरा रास्ता देने की अंतर्निहित शक्ति केवल और केवल भारत की है। (पृष्ठ 276)
- देशहित की मूलभूत अनिवार्य आवश्यकता है कि भारत के ‘स्व’ की पहचान के सुस्पष्ट अधिष्ठान पर खड़ा हुआ सामर्थ्य-संपन्न व गुणवत्ता वाला संगठित समाज इस देश में बने। यह हमारी पहचान हिन्दू पहचान है, जो हमें सबका आदर, सबका स्वीकार, सबका मेल-मिलाप व सबका भला करना सिखाती है। इसलिए संघ हिन्दू समाज को संगठित व अजेय सामर्थ्य-संपन्न बनाना चाहता है और इस कार्य को संपूर्ण संपन्न करके रहेगा। (पृष्ठ 279)