मां दुर्गा का अपमान करने वाले फारवर्ड प्रेस के मालिक कोस्टा दंपत्ति पर कब होगी कार्रवाई?

मां दुर्गा का अपमान करने वाले फारवर्ड प्रेस के मालिक कोस्टा दंपत्ति पर कब होगी कार्रवाई?

आशीष कुमार ‘अंशु’

मां दुर्गा का अपमान करने वाले फारवर्ड प्रेस के मालिक कोस्टा दंपत्ति पर कब होगी कार्रवाई?

जो लोग फारवर्ड प्रेस को दिलीप सी मंडल या कॉमरेड चौथीराम यादव की वजह से दलित हितों की पत्रिका मानते हैं, वे घोर मुगालते में हैं। इस पत्रिका ने अम्बेडकर को बौद्ध धर्म की खोल में दुबका हुआ ईसाई बताया है और इस पर कई कवर स्टोरी तथा किताबें प्रकाशित की हैं कि कैसे आंबेडकर और ज्योतिबा फुले क्राइस्ट से प्रभावित थे, महात्मा बुद्ध से नहीं।

ईसाई मिशनरियों का यह सुनियोजित षड्यंत्र है कि भारत की संस्कृति को अपमानित किया जाए। यह बात अब भारतीय समाज अब पूरी तरह जान चुका है। इसके अन्तर्गत वे तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। भारतीय सनातन समाज के देवी-देवताओं को अपमानित करते हैं। यह भारतीय कानून व्यवस्था की कमजोरी है कि ईसाई मिशनरीहाल ही में इन्हें दिल्ली में फिर कुछ सार्वजनिक कार्यक्रमों में देखा गया। देवी दुर्गा वाले मुकदमे में फंसने के बाद ये देश छोड़ कर भाग गए थे। अब इनके करीबी ही बता रहे हैं कि एक बार फिर कोस्टा दंपत्ति भारत में अपनी सारी संपत्ति बेचने के इरादे से लौट आए हैं।

पत्रिका से जुड़े रहे एक पत्रकार ने बताया कि किसी विदेशी खाते से उनकी सैलरी देने की बात कोस्टा ने की, इसलिए उन्होंने फारवर्ड प्रेस छोड़ने का निर्णय लिया। लेकिन इस समय ऐसे कर्मचारी वहां मौजूद हैं जो किसी ना किसी मजबूरी के कारण वह पैसा ले रहे हैं। पैसा कहां से आ रहा है और कौन दे रहा है और क्यों दे रहा है, इसकी भी सही-सही जानकारी पत्रिका से जुड़े लोगों के पास नहीं है।

कोस्टा दंपत्ति लगातार हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली ऐसी सामग्री प्रकाशित कर रहे हैं, जिससे हिन्दू समाज के बीच घृणा फैले। इसलिए जातिवाद का जहर अधिक से अधिक समाज में फैलाने के लिए इन्हें ऐसे लोगों की तलाश होती है, जो इनके एजेंडे को बढ़ा सकें। इस पत्रिका से जुड़े कांचा इलैया शेफर्ड, चौथीराम यादव, दिलीप सी मंडल, सुजैना, अरुंधति राय जैसे लेखक-पत्रकारों का नजरिया भारतीय जाति व्यवस्था को लेकर क्या है, यह समझने के लिए आप इन्हें पढ़ेंगे तो इन सभी को चर्च का एजेंडा बढ़ाते हुए ही पाएंगे।

देवी दुर्गा के लिए बेहद घृणित शब्दों और उनके अश्लील चित्र प्रकाशित करने के बाद अब ये होली जैसे समाज के सभी वर्गों के त्योहार को निशाना बना रहे हैं। महिषासुर की मौत को दलित अस्मिता से जोड़ने के असफल प्रयास के बाद अब ये होलिका के जलने को दलित वर्ग की अस्मिता से जोड़ने में लगे हैं। इतना ही नहीं, ये भारतीय संस्कृति के आराध्य नायकों को पापी और हत्यारा बताने के नैरेटिव पर काम कर रहे हैं।

दिलीप सी मंडल के करीबी ही बताते हैं कि दिल्ली में चर्च के एजेंडे पर आधारित कार्यक्रम कराने के लिए मंडल को कोस्टा दंपत्ति से आर्थिक मदद मिलती थी। दिलीप का सवर्ण विरोध वास्तव में चर्च के खर्चे पर ही पलता हुआ दिखता है। कायदे से दिलीप सी मंडल और कोस्टा दंपत्ति के बीच संबंधों की भी जांच होनी चाहिए। साथ-साथ हमारी कोशिश होनी चाहिए कि देश की भावनाओं से खेलने वाले कोस्टा दंपत्ति देश छोड़ कर न भागने पाएं ।

हिन्दू धर्म को मानने वाले को भावनाओं को आहत करने वाले एक-दो नहीं बल्कि चर्च की प्रेरणा से पादरी कोस्टा ने ऐसे दर्जनों लेख पिछले दिनों पत्रिका में प्रकाशित करवाए हैं। उनमें से कुछ की भाषा तो इतनी अभद्र है कि उनका वेबसाइट लिंक भी साझा करने में संकोच हो। मसलन एक लेख का शीर्षक है : “बलात्कार की जड़ें हिन्दू संस्कृति में हैं”। उस लेख में हिन्दू देवी देवताओं का नाम ले कर उन्हें बलात्कारी बताया गया है और कहा गया है कि निर्भया जैसे कांड इन बलात्कारी देवताओं के कारण ही होते हैं।

जो लोग फारवर्ड प्रेस को दिलीप सी मंडल या कॉमरेड चौथीराम यादव की वजह से दलित हितों की पत्रिका मानते हैं, वे घोर मुगालते में हैं। इस पत्रिका ने अम्बेडकर को बौद्ध धर्म की खोल में दुबका हुआ ईसाई बताया है और इस पर कई कवर स्टोरी तथा किताबें प्रकाशित की हैं कि कैसे अंबेडकर और ज्योतिबा फुले क्राइस्ट से प्रभावित थे, महात्मा बुद्ध से नहीं। अंबेडकर का बुद्ध धर्म स्वीकार करना उनका पाखंड था।

फारवर्ड पत्रिका ने अम्बेडकर को बौद्ध धर्म की खोल में दुबका हुआ ईसाई बताया है
फारवर्ड प्रेस की पत्रिका का कवर पेज, जिसमें डॉ. अंबेडकर की तस्वीर से छेड़छाड़ करके उन्हें एक ईसाई के रूप में दिखाया गया है

इसके छपने के बाद अनेक स्वाभिमानी दलित बुद्धिजीवियों ने पत्रिका से अपना नाता तोड़ लिया। लेकिन अरुंधती राय और कांचा इलैया शेफर्ड जैसे क्रिश्चियनों का रिश्ता चर्च के एक पादरी द्वारा चलाए जा रही इस वेबसाइट से बना हुआ है।

जाहिर है, दलित भावनाओं से खिलवाड़ कर रही यह पत्रिका किसी भी तरह से दलितों की हितैषी नहीं है। लेकिन मोदी विरोध में पगलाए लेखक थोड़े से पैसे के लिए पत्रिका के एजेंडे पर लिखने को तैयार हो जा रहे हैं। फॉरवर्ड प्रेस की संपादकीय टीम ईसाइयों से भरी है। पत्रिका की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार पत्रिका के संस्थापक संपादक आइवान कोस्टा हैं। अनिल वर्गीज संपादकीय समन्वयक हैं और गोल्डी एम जॉर्ज को कंसल्टिंग एडिटर रखा गया है।

पत्रिका के संबंध में मिली जानकारी के अनुसार- फारवर्ड प्रेस के मालिकों में कैनेडियन नागरिक आइवान कोस्टा और उसकी पत्नी सिल्विया मारिया फर्नांडीस कोस्टा के अलावा एक भारतीय मूल का स्विट्जरलैंड का नागरिक प्रभु गुप्त तारा है। यह स्विस बैंक में डायरेक्टर रहा है। गौरतलब है फारवर्ड प्रेस के प्रिंट संस्करण में इस बैंक अधिकारी का नाम ‘संरक्षक’  के रूप में छपता था।

महाराष्ट्र के कुख्यात तस्कर हवाला किंग हसन अली से इसके नजदीकी संबंध रहे हैं। इसी ने हसन अली का खाता स्विस बैंक में खुलवा कर हजारों करोड़ रुपए हेरा-फेरी में उसकी मदद की थी। सऊदी अरब के अंतर्राष्ट्रीय हथियार व्यापारी अदनान खगोशी के साथ रिश्ते रखने के कारण स्विस बैंक का यह पूर्व अधिकारी कई देशों की जांच एजेंसियों के निशाने पर है।

2011 में हजारों करोड़ मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला के मामले में हसन अली की संलिप्तता की जांच ईडी ने शुरू की थी। जांच के दौरान प्रभु गुप्त तारा का नाम सामने आया। हसन अली तो कोर्ट के कड़े हस्तक्षेप के बाद गिरफ्तार हुआ, लेकिन प्रभु गुप्त तारा को फंसते देख विदेशी फंडिंग के सहारे जी रही क्रिश्चियन लॉबी में हड़कंप मच गया था। उन्होंने इस जांच को बंद करने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर दबाव डाला। तब से यह जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। हालंकि कागजों में अब भी वह भारतीय जांच एजेंसियां के लिए वांछित अपराधी है। 2014 के बाद इस दिशा में जांच एजेन्सियों से सक्रियता की अपेक्षा थी, लेकिन 2020 तक ऐसा कुछ नहीं हुआ।

जरूरत इस बात की है कि ईडी की जांच तुरंत फिर से खुलवाई जाए और फारवर्ड प्रेस के मालिकों के बैंक खातों की जांच की जाए, ताकि इनके पीछे के असली खेल का पता लगाया जा सके। बहुजनों के नाम पर यह पत्रिका क्रिश्चियनों का एजेन्डा ही देश में बढ़ा रही है। इस पत्रिका के साथ सुनील सरदार के संबंधों से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका संबंध भारत के कन्वर्जन रैकेट से भी है।

दरअसल, सिर्फ फारवर्ड प्रेस ही नहीं, देश में चल रहे इस प्रकार के कई संस्थान हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग के बड़े खेल के मुखौटे हैं, जिनकी पहचान होनी चाहिए। इस तरह की संस्थाएं किसी भी देश के लिए कोढ़ हैं, जो समाज में जातीय दंगों और वैमनस्यता की जमीन तैयार करती हैं। ऐसी सोच के साथ काम करने वालों को किसी भी सूरत माफ नहीं किया जाना चाहिए। बहरहाल मामला अब न्यायालय में है। यदि इस पर गम्भीरता के साथ समय रहते कार्रवाई ना की गई तो देश छोड़कर भागने में कोस्टा दंपत्ति देर नहीं लगाएंगे।

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