बढ़ रहे मुस्लिम, घट गए हिन्दू

बढ़ रहे मुस्लिम, घट गए हिन्दू

बढ़ रहे मुस्लिम, घट गए हिन्दू बढ़ रहे मुस्लिम, घट गए हिन्दू 

क्या आपको वर्ष 2015 का वह समय याद है, जब चारों ओर तथाकथित असहिष्णुता का मनगढ़न्त नैरेटिव रचा गया था। मुस्लिम समुदाय से आने वाले जाने-माने एक्टर आमिर खान ने यहां तक कह दिया था कि “उनकी पत्नी ने उनसे देश छोड़ देने की बात कही है, उन्हें अपने बच्चे के लिए डर लगता है।” …और आज लगभग दस वर्ष बाद एक रिपोर्ट आई है कि देश में 1951 से अल्पसंख्यकों (विशेषकर मुसलमान) की जनसंख्या 43 प्रतिशत बढ़ी है, वहीं जनसंख्या में हिन्दुओं की भागीदारी 7.8 प्रतिशत कम हुई है। यदि भारत में मुसलमान वास्तव में पीड़ित होते तो क्या उनकी जनसंख्या इतनी बढ़ती? इस रिपार्ट ने विघटनकारी तत्वों द्वारा चलाए जा रहे बहुसंख्यकवाद के नैरेटिव पर पानी फेर दिया है।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, जनसंख्या में विभिन्न समुदायों की हिस्सेदारी को देखा जाए तो भारत भी ग्लोबल ट्रेंड के अनुसार ही चल रहा है। ‘शेयर ऑफ रिलीजियस माइनॉरिटी’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अल्पसंख्यकों में भी मुसलमान, ईसाई, सिख और बौद्ध समुदाय की जनसंख्या में हिस्सेदारी बढ़ी है, जबकि जैन और पारसी समुदाय का जनसंख्या में हिस्सा पहले की तुलना में घटा है। आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि में मुसलमानों की जनसंख्या 9.84 प्रतिशत से बढ़ कर 14.09 प्रतिशत हो गई है। ईसाइयों की ​जनसंख्या में हिस्सेदारी 2.24 प्रतिशत से बढ़ कर 2.36, सिखों की 1.24 से बढ़ कर 1.85 प्रतिशत हो गई है। बौद्ध समुदाय की जनसंख्या में हिस्सेदारी 0.05 से बढ़ कर 0.81 प्रतिशत हो गई है, वहीं जैन समुदाय में यह 0.45 प्रतिशत से घट कर 0.36 प्रतिशत रह गई है।

इससे स्पष्ट है कि मुसलमानों के लिए देश में अनुकूल वातावरण है। फिर भी हमारे देश का दुर्भाग्य है कि 1947 के पहले और बाद से भारत में रह रहे मुसलमान भारत के नहीं हो पा रहे। उन्हें जब कभी अवसर मिलता है वे अल्पसंख्यक होने का ‘विक्टिम कार्ड’ खेलने से बाज नहीं आते। हालांकि इसमें दोष मुसलमानों से अधिक उन राजनेताओं का है, जो अपने आपको भारत के मुसलमानों का ‘संरक्षक’ मान बैठे हैं। इनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आप आदि राजनीतिक दल शामिल हैं, जो वोट बैंक की राजनीति के चलते मुसलमानों के तुष्टिकरण में लगे रहते हैं। तभी तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी कह रहे हैं कि वे जनसंख्या में हिस्सेदारी के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण देंगे।

जब संविधान में रिलिजन के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान ही नहीं है तो कांग्रेस ऐसे विष बीज क्यों बो रही है? यदि वह ऐसा करेगी तो क्या यह कर्नाटक सरकार की तरह एससी, एसटी या ओबीसी में आरक्षण के नियमों के साथ खिलवाड़ नहीं होगा? इससे क्या इन वर्गों में आरक्षण के असली हकदारों का अहित नहीं होगा? अगर ऐसा होता है तो यह पूरी तरह से गलत परम्परा की शुरुआत नहीं होगी? कब तक कांग्रेस गरीब को ‘गरीबी हटाओ’ और मुसलमानों को अधिकार दिलाने के नाम पर अपनी रोटियां सेंकती रहेगी?

प्यू रिसर्च सेंटर का दावा है कि रिलिजन के आधार पर जनसंख्या की बात की जाए तो 2050 तक दुनिया में मुसलमानों की जनसंख्या सर्वाधिक होगी। ऐसा हो सकने के अनेक कारण हैं। जैसे- इस्लाम में निकाह नियम। पहला, कई निकाह, दूसरा, कम उम्र में निकाह, तीसरा, ट्रिपल तलाक के कारण तलाकशुदा जोड़ों का फिर से निकाह और फिर नए परिवार में संतान का जन्म। इसके बाद लवजिहाद, कन्वर्जन और घुसपैठिए।

मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने की बात पर 70 वर्षीय बुजुर्ग हेमंत सहगल कहते हैं, कांग्रेस जो न करे कम है। पहले नारा दिया बच्चे दो ही अच्छे, हिन्दू पीढ़ी दर पीढ़ी इसे अपनाते गए और आज बहुत से तो दो से एक पर आ गए। परिवार नियोजन वाले विज्ञापनों में हिन्दू कपल (मांग भरी, बिन्दी लगाए, साड़ी पहने महिला) और दो बच्चों (एक लड़का और एक लड़की) का परिवार दिखाया जाता था, इसने हिन्दुओं को बहुत प्रभावित किया। दूसरी ओर मैंने परिवार नियोजन का आज तक ऐसा कोई विज्ञापन नहीं देखा, जिसमें परिवार के नाम पर मुस्लिम कपल (बुरका पहने महिला और टोपी लगाए पुरुष) और दो बच्चे हों।

इसी तरह आप सरकारी जनाना अस्पतालों में चले जाइए, आपको वहॉं  बड़ी संख्या में बुरकानशीं दिखेंगी। इसका कारण है सरकार की जननी सुरक्षा योजना, जिसके अंतर्गत गरीब महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान उनके बच्चों का ध्यान रखने के लिए मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। महिलाओं को छह हजार रुपये का बैंक खाता मिलता है। इस योजना पर सरकार हर वर्ष 1600 करोड़ रुपये खर्च करती है।

बरेली की सायरा, जो अब हिन्दू लड़के से शादी कर घर वापसी कर चुकी हैं, कहती हैं, इस्लाम एक ऐसी विचारधारा है, जिसमें गैर मुसलमान के लिए कोई स्थान नहीं। वे यह बात दिन में पांच बार लाउडस्पीकर पर बोलते हैं, लेकिन कोई समझना ही नहीं चाहता। रही जनसंख्या बढ़ने की बात तो आपको पता होना चाहिए इस्लाम में एबॉर्शन या परिवार नियोजन के उपाय वर्जित हैं क्योंकि वहॉं माना जाता है कि बच्चे अल्लाह की देन हैं। मेरे स्वयं के 8 भाई बहन हैं। मेरे बेटे और मेरे सबसे छोटे भाई में ढाई माह का अंतर है।

कॉलेज छात्रा अमृता सक्सेना कहती हैं कि यह स्कूल / कॉलेजों में फैले वामपंथी नैरेटिवों – विवाह के बाद लड़कियों का करियर समाप्त हो जाता है, उनका जीवन घर में स्वयं को खपाने के लिए थोड़े ही न है, एकल जीवन जिओ और ऐश करो या पति पत्नी दोनों नौकरी करें, क्यों बच्चों की जिम्मेदारी लें (डबल इन्कम नो किड) आदि का प्रभाव है कि आज लड़कियां करियर को परिवार से अधिक महत्व दे रही हैं। इसका असर रिश्तों के साथ साथ हिन्दुओं की जनसंख्या पर भी पड़ा है।

वास्तव में स्थिति विचारणीय है। एक ओर मस्तिष्क में उच्छृंखलता भरी जा रही है, तो दूसरी ओर मजहबी कट्टरता। एक ओर सिर पर पल्ला रखने तक को दकियानूसीपन बताया जा रहा है तो दूसरी ओर हिजाब और बुर्के को भी प्राइड साबित किया जा रहा है। कारण एक ही है, वोट बैंक। हिन्दुओं को बांटो और मुसलमानों को संगठित करो। आज भारत में मुसलमानों को कभी मजहब, तो कभी गरीबी, तो कभी अशिक्षा के नाम पर अनेक सुविधाएं प्राप्त हैं, वे आरोप कुछ भी लगाएं, लेकिन सिद्ध होता है कि वे फल फूल रहे हैं। वे करदाता के रूप में भले ही देश की अर्थव्यवस्था में 8 प्रतिशत का योगदान दे रहे हों लेकिन 65 वर्षों में उनकी जनसंख्या में 43.15 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

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