बहुत तकलीफ़ होती है
प्रो. राकेश कुमार पांडेय
बहुत तकलीफ़ होती है
तुम क़त्ल के तरीक़ों में भी
मज़हबी हलाल ढूँढ लेते हो
मगर अपना मज़हब बताने में
तुम्हें मज़हबी तकलीफ़ होती है।
तुम्हें जिहाद के नाम पे
धोखा करने से परहेज़ नहीं
पर हम जिहाद का ज़िक्र करें
तो तुम्हें बहुत तकलीफ़ होती है।
झूठी मुहब्बत की झूठी दुकान
क़ुर्बानी से पहले बक़रीदी सौहार्द
और हम इस क़ुर्बानी पर प्रश्न करें
तो तुम्हें बड़ी तकलीफ़ होती है।
तुम तो शिवलिंग पे
थूकने को वजू कहते रहो
हम अपना मंदिर माँगें
तो तुम्हें बहुत तकलीफ़ होती है।
तुम तो पाँच बार चिल्लाओ
कि शिव पूजने के काबिल नहीं
और हम तुम्हारा नाम पूछ लें
तो तुम्हें बड़ी तकलीफ़ होती है।