बाबा विश्वेसर मंदिर के गर्भगृह में गेरुआ वस्त्र व त्रिपुंडधारी पुलिसकर्मी श्रद्धालुओं का रखेंगे ध्यान

बाबा विश्वेसर मंदिर के गर्भगृह में गेरुआ वस्त्र व त्रिपुंडधारी पुलिसकर्मी श्रद्धालुओं का रखेंगे ध्यान

बाबा विश्वेसर मंदिर के गर्भगृह में गेरुआ वस्त्र व त्रिपुंडधारी पुलिसकर्मी श्रद्धालुओं का रखेंगे ध्यानबाबा विश्वेसर मंदिर के गर्भगृह में गेरुआ वस्त्र व त्रिपुंडधारी पुलिसकर्मी श्रद्धालुओं का रखेंगे ध्यान

भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक हैं बाबा विश्वेसर। काशी स्थित बाबा विश्वेसर के मंदिर के गर्भगृह में बुधवार को एक नया वातावरण देखने को मिला। यहॉं ड्यूटी पर तैनात सभी पुलिसकर्मी पुजारियों की वेशभूषा में थे। गले में रुद्राक्ष, माथे पर त्रिपुंड और गेरुआ वस्त्रों में उन्हें देखना श्रद्धालुओं को भा गया। पूछताछ में पता चला कि अब मंदिर में इनका यही ड्रेस कोड होगा। बताया जा रहा है कि यह निर्णय पुलिस कमिश्नरेट द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की लगातार बढ़ती संख्या के कारण लिया गया है। इस बार काशी में शिवरात्रि से लेकर अब तक रिकॉर्ड तोड़ संख्या में श्रद्धालु आए हैं।

ड्रेस कोड रखने का कारण
पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल के अनुसार श्रद्धालु सामान्यत: पुजारी की बातों को आसानी से मान लेते हैं। इसलिए अब मंदिर में पुलिसकर्मी पुजारियों की वेशभूषा में रहेंगे। भक्तों की संख्या बढ़ने या वीआईपी मूवमेंट के समय भी किसी प्रकार की धक्का मुक्की न हो इसका पूरा ध्यान रखेंगे। वे श्रद्धालुओं को गाइड करेंगे कि उनको बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए कहां पर ध्यान केंद्रित करना है। क्योंकि भीड़ के समय श्रद्धालु मंदिर की चकाचौंध में खो जाते हैं और उन्हें बाबा विश्वनाथ के दर्शन ठीक से नहीं हो पाते हैं। वीआईपी मूवमेंट के समय रस्सी से एक घेरा बना दिया जाएगा। इससे श्रद्धालु स्वतः बिना धक्का लगे एक निश्चित दूरी पर रहेंगे। पुलिसकर्मियों को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के महत्व, काशी के महत्वपूर्ण स्थलों, घाटों आदि की भी पूरी जानकारी होगी। वे इस सम्बंध में भी श्रद्धालुओं को गाइड कर सकेंगे।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
काशी विश्वनाथ मंदिर हिन्दुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। यह मंदिर कई हजार वर्षों से पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। मंदिर के मुख्य देवता को श्री विश्वनाथ और विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ब्रह्मांड के भगवान। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वाराणसी को प्राचीन काल में काशी कहा जाता था। इसलिए इस मंदिर को लोकप्रिय भाषा में काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है।

18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित बताया जाता है। औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को तोड़कर एक इस्लामिक ढांचा बना दिया गया। सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था। इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र लगवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई। सन् 1809 में हिन्दुओं ने ज्ञानवापी क्षेत्र को एक बार फिर अपने अधिकार में ले लिया। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया।

दिसम्बर 2021 में प्राचीन मंदिर के मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए 5 लाख 27 हजार वर्ग फीट से अधिक क्षेत्र को विकसित किया गया। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का क्षेत्रफल पहले 3,000 वर्ग फीट था। लगभग 400 करोड़ रुपए की लागत से मंदिर के आसपास की 300 से अधिक इमारतों को खरीद कर इसे विस्तार दिया गया। उल्लेखनीय है कि धाम के लिए खरीदे गए भवनों को तोड़ने के दौरान 40 से अधिक मंदिर मिले। उन्हें विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट के अंतर्गत नए सिरे से संरक्षित किया गया है। इस्लामिक ढांचे वाले क्षेत्र का मामला अभी कोर्ट में है।

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