बाबा साहब अंबेडकर, जो जीवन भर राष्ट्रीयता की भावना को पुष्ट करने के लिए कर्मरत रहे
जन-जन में बाबा साहब के नाम से विख्यात डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर भारतीय संस्कृति की उस धारा के प्रतिनिधि हैं जो कालक्रम से समाज में चली आई कुरीतियों, पाखंड, भेदभाव, अमानवीयता व दुर्गुणों का परिमार्जन कर समाज को स्वच्छ, शुद्ध व एकात्म बनाती है।
14 अप्रैल 1891 को तत्कालीन सेंट्रल प्रोविंस, महू में जन्मे बाबा साहब आजीवन भेदभाव के विरुद्ध तथा राष्ट्रीयता की भावना को पुष्ट करने के लिए कर्मरत रहे। स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने जब रत्नागिरी में अस्पृश्यता उन्मूलन आंदोलन चलाया तो बाबा साहब ने पत्र लिखकर उनकी प्रशंसा की थी।
1939 में नागपुर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शिक्षा वर्ग में बाबा साहब पहुँचे, तब प्रथम प.पू. सरसंघचालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी भी वहाँ उपस्थित थे। एक साथ भोजन ग्रहण करने के बाद जब वे स्वयंसेवकों के मध्य पहुँचे तो बाबा साहब को यह देखकर बहुत प्रसन्नता हुई कि सभी आपस में बिना जाति पूछे एक साथ सहयोग तथा कार्य-व्यवहार कर रहे थे।
14 जनवरी 1946 को सोलापुर के भाषण में उन्होंने कहा था किसी जाति से मेरा कोई झगड़ा है ही नहीं। दूसरों को नीचे समझने की प्रवृत्ति से मेरा संघर्ष है।” बौद्ध पंथ अपनाने के निर्णय पर उन्होंने कहा था- “बौद्ध धर्म भारतीय संस्कृति का ही भाग है। इस देश की संस्कृति, परम्परा, इतिहास को ज़रा भी आंच न आये, इसकी चिंता मैंने की है। इस देश की संस्कृति और परम्परा के विध्वंसक के रूप में इतिहास में मैं अपना नाम नहीं लिखवाना चाहता।”
बाबा साहब ने भारतीय संविधान का जो प्रारूप तैयार किया वह भी बौद्ध, जैन, सिख आदि पंथों को वृहद हिंदू पहचान के ही अंतर्गत रखता था। स्वतंत्रता के समय जब नेहरू ने कश्मीर हेतु अलग संविधान बनाने के लिए बाबा साहब के सम्मुख प्रस्ताव रखा तो उन्होंने साफ मना कर दिया। वे भारत की अखंडता से कोई समझौता नहीं कर सकते थे। तब गोपालस्वामी आयंगर द्वारा कश्मीर के लिए अलग संविधान प्रारूप बनाया गया।
वर्तमान कुप्रचार से उलट, बाबा साहब के लिए धर्म के वास्तविक स्वरूप का बहुत महत्व था। फरवरी 1954 को आचार्य अत्रे की फिल्म ‘महात्मा फुले’ हेतु आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा था- “मंत्री देश का उद्धार नहीं कर सकते। जिसने धर्म को भली भाँति समझा है वही देश को तार सकता है। महात्मा फुले ऐसे ही धर्म सुधारक थे। विद्या, प्रज्ञा, करुणा और मैत्रीभाव इन धर्मतत्वों से प्रत्येक को अपना चरित्र विकसित करना चाहिए।”
एकात्मता स्त्रोत में बाबा साहब का नाम सम्मिलित किया गया ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी उनकी राष्ट्रभक्ति, समाजसेवा तथा कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष भावना से प्रेरणा लेती रहें।
बाबा साहब की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन।