बाल वीरांगना मैना कुमारी, जिसे अंग्रेजों ने जिंदा जला दिया था
बाल वीरांगना मैना कुमारी बलिदान दिवस पर विशेष
3 सितम्बर 1857 आज का ही दिन था जब…बिठूर में एक पेड़ से बंधी 14 वर्ष की लड़की को, ब्रिटिश सेना ने जिंदा ही आग के हवाले किया, धूँ धूँ कर जलती वो लड़की, उफ़ तक न बोली और जिंदा लाश की तरह जलती हुई, राख में बदल गई।
यह लड़की थी नाना साहब पेशवा की दत्तक पुत्री मैना कुमारी। जिसे 160 वर्ष पूर्व, आज ही के दिन, आउटरम नामक ब्रिटिश अधिकारी ने जिंदा जला दिया था। जिसने 1857 की क्रांति के दौरान, अपने पिता के साथ जाने से इसलिए मना कर दिया, कि कहीं उसकी सुरक्षा के चलते, उसके पिता को देश सेवा में कोई समस्या न आये और बिठूर के महल में रहना उचित समझा।
नाना साहब पर ब्रिटिश सरकार इनाम घोषित कर चुकी थी।
और जैसे ही उन्हें पता चला नाना साहब महल से बाहर हैं, ब्रिटिश सरकार ने महल घेर लिया, जहाँ उन्हें कुछ सैनिको के साथ बस मैना कुमारी ही मिली। मैना कुमारी, ब्रिटिश सैनिकों को देख कर महल के गुप्त स्थान में जा छुपी, यह देख ब्रिटिश अफसर आउटरम ने महल को तोप से उड़ने का आदेश दिया और ऐसा कर वो वहां से चला गया पर अपने कुछ सिपाहियों को वही छोड़ गया। रात को मैना को जब लगा की सब लोग जा चुके है, और वो बाहर निकली तो 2 सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और फिर आउटरम के सामने पेश किया।आउटरम ने पहले मैना को एक पेड़ से बांधा, फिर मैना से नाना साहब के बारे में और क्रांति की गुप्त जानकारी जाननी चाही। पर उस ने मुँह नहीं खोला। यहाँ तक कि आउटरम ने मैना कुमारी को जिंदा जलाने की धमकी भी दी, पर उसने कहा कि वह एक क्रांतिकारी की बेटी है, मृत्यु से नहीं डरती। यह देख आउटरम तिलमिला गया और उसने मैना कुमारी को जिंदा जलाने का आदेश दे दिया। इस पर भी मैना कुमारी, बिना प्रतिरोध के आग में जल गई, ताकि क्रांति की मशाल कभी न बुझे।
बिना खड्ग बिना ढाल वाली गैंग या धूर्त वामपंथी लेखक चाहे जो लिखें पर हमारी स्वतंत्रता इन जैसे असँख्य क्रांतिवीर और वीरांगनाओं के बलिदानों का ही प्रतिफल है और इनकी गाथाएँ आगे की पीढ़ी तक पहुँचनी चाहिए, हर भारतीय को इनका कृतज्ञ होना चाहिये।
शत शत नमन इस महान बाल वीरांगना को!