वामपंथी इतिहास लिखते नहीं, गढ़ते हैं

वामपंथी इतिहास लिखते नहीं, गढ़ते हैं

 

वामपंथी इतिहास लिखते नहीं, गढ़ते हैंवामपंथी इतिहास लिखते नहीं, गढ़ते हैं

वामपंथी इतिहासकार इतिहास लिखते नहीं, गढ़ते हैं। वे अपने मन में उसे डिजाइन करते हैं और तदनुरूप उसे शब्द देते हैं। वे वर्ग विभाजन का कोई अवसर नहीं चूकते। मतभेद को मनभेद में बदलना उन्हें बखूबी आता है। आज भगवान बुद्ध की जयंती है, तो हम बात करेंगे बौद्ध राजा बृहद्रथ और पुष्यमित्र शुंग की, बौद्ध सम्प्रदाय को लेकर वामपंथी फरेब की।

बृहद्रथ मौर्य वंश का अंतिम शासक था। 322 ई.पू. चंद्रगुप्त ने चाणक्य की दूरदृष्टिता और सहयोग से नंदों को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चाणक्य की मृत्यु के बाद उनकी अखंड भारत की परिकल्पना धुंधली होने लगी थी। मौर्य वंश के शासक वैदिक धर्म के प्रति उदासीन होने लगे थे। चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने अंतिम दिनों में जैन धर्म अपना लिया था। चन्द्रगुप्त के पुत्र बिन्दुसार ने आजीविक सम्प्रदाय में दीक्षा ले ली थी। इसके बाद बिन्दुसार का पुत्र अशोक राजगद्दी पर बैठा। उसने अपने साम्राज्य विस्तार के लिए कलिंग पर चढ़ाई की, भयंकर नरसंहार हुआ। बाद में उसने अहिंसा अपना ली और बौद्ध सम्प्रदाय की दीक्षा ले ली। अशोक ने 20 वर्षों तक एक बौद्ध सम्राट के रूप में शासन किया। दशकों तक अहिंसा का पाठ पढ़ते पढ़ते पूरे भारतवर्ष का शासनतंत्र निर्बल हो गया। भारतीय सनातन धर्म से विरक्ति की यह प्रक्रिया मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ तक चलती रही। तब तक अधिकांश मगध साम्राज्य बौद्ध अनुयायी हो चुका था।

तभी यवनों का आक्रमण हुआ। यवन बौद्ध भिक्षुओं के भेष में मठों में छुप गए। कुछ बौद्ध गुरु भी उनका सहयोग कर रहे थे। बृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने ये समाचार अहिंसक राजा बृहद्रथ को दिए तो उसने कोई रुचि नहीं ली।पुष्यमित्र शुंग का मन व्यथित हो उठा। उसे चुभ रहा था कि शत्रु आक्रमण के लिए आगे बढ़ा चला आ रहा है और सम्राट कोई सक्रियता नहीं दिखा रहा। पुष्यमित्र ने बृहद्रथ से बौद्ध मठों की तलाशी लेने की अनुमति माँगी, किन्तु बृहद्रथ इसके लिए भी तैयार नहीं हुआ। तब पुष्यमित्र ने अपने स्तर पर कार्यवाही करते हुए मठों में सैनिक भेज दिए, जिनका सामना शत्रु सैनिकों से हुआ। मुठभेड़ में शत्रु सैनिक मारे गए। बृहद्रथ इससे नाराज हो गया। वह पुष्यमित्र से भिड़ गया। इस संघर्ष में बृहद्रथ मारा गया। बृहद्रथ की मृत्यु के बाद पुष्यमित्र राजा बना। पुष्यमित्र ने यवनों को खदेड़ दिया। पुष्यमित्र के राजा बनने के बाद बौद्ध सम्प्रदाय की ओर जा चुके हिन्दू पुनः सनातन धर्म में लौटने लगे।

पुष्यमित्र शुंग एक प्रजा वत्सल राजा और सनातनी ब्राह्मण था। वहीं बृहद्रथ बौद्ध सम्प्रदाय का पालन करता था। वामपंथियों ने इस एंगल को अपने अनुकूल पाया और इसे ब्राह्मण बनाम बौद्ध बना दिया। पुष्यमित्र को बौद्ध विरोधी, बौद्धों का हत्यारा आदि साबित करने के प्रयास किए। अब प्रश्न उठता है विदेशी आक्रांता आप पर चढ़ाई कर रहे हैं, आपको मिटा देना चाहते हैं क्या तब भी आपको हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना चाहिए? राजा, जिसका काम है राज्य की सुरक्षा करना, वह आक्रांताओं का प्रतिरोध न करे तो क्या सेनापति या प्रजा को राज्य रक्षा के लिए आगे नहीं आना चाहिए? बात तो यहॉं पर राज्य की रक्षा की है न कि ब्राह्मण या बौद्ध की। लेकिन आमतौर पर वामपंथियों ने पुष्यमित्र शुंग की छवि कट्टर ब्राह्मण व बौद्धों के संहारक की गढ़ने के ही प्रयास किए हैं, जबकि उनकी अपनी इतिहासकार रोमिला थापर ही अपनी पुस्तक अशोक एवं मौर्यों का पतन (Asoka and the Decline of the Mauryas) में लिखती हैं कि पुष्यमित्र द्वारा बौद्धों के नरसंहार का कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
अपनी पुस्तक “Popular Controversies in World History” में स्टीवन एल डेनवर लिखते हैं कि “मौर्य साम्राज्य में मिल रही सहायता बंद होने के बाद बौद्ध पुष्यमित्र विरोधी हो गए थे।” इससे भी संघर्ष हुआ, जिसमें बौद्ध मारे गए।

एटिने लमोत्ते (Etienne Lamotte) जो कि बौद्ध इतिहास के एक बड़े ज्ञाता थे, उन्होंने ऊपर बताई गई स्टीवन की पुस्तक में कहा है कि महान बौद्ध विचारक और इतिहासकार भी इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं कि पुष्यमित्र बौद्ध विरोधी था अथवा उसने किसी भी प्रकार से बौद्धों का नरसंहार किया।

वामपंथी फरेब के और भी अनेक उदाहरण हैं, जहॉं वे अपनी सुविधानुसार मनचाहा नैरेटिव बनाते हैं। किसी को उद्धृत करते समय उतना ही लिखते हैं, जितना उनके एजेंडे को सूट करता है, बाकी बातें नेपथ्य में चली जाती हैं। जैसे वामपंथी इतिहासकार डीएन झा लिखते हैं, “तिब्बती परंपरा-कथा बताती है कि कल्कुरी के राजा कर्ण ने मगध में कई बौद्ध मंदिरों और विहारों को नष्ट कर दिया। तिब्बती ग्रन्थ ‘पग सैम जॉन जैंग’ में एक उल्लेख है कि नालंदा के पुस्तकालय को कुछ ‘हिन्दू उन्मादियों’ द्वारा जला दिया गया।” झा अपने इस वक्तव्य के समर्थन में बीएनएस यादव की पुस्तक को कोट करते हैं।

जबकि यादव ने अपनी पुस्तक में उपर्लिखित दो वाक्यों के बीच में एक और वाक्य लिखा है- “यह कहना बहुत मुश्किल है कि यह बात कहाँ तक सत्य हो सकती है।” लेकिन डीएन झा ने पुनर्प्रस्तुति में यादव के इस वाक्य को बड़ी चालाकी से छोड़ दिया।

इसी प्रकार यादव ने लिखा है, “पग सैम जॉन जैंग’ में एक संदिग्ध उल्लेख है कि नालंदा के पुस्तकालय … जला दिया गया।” लेकिन झा ने बड़ी चालाकी से इसमें से “संदिग्ध” शब्द हटा दिया।

झा ने अपने वक्तव्य में ‘हिन्दू उन्मादियों’ अभिव्यक्ति को उद्धरण चिह्न के साथ लिखा मानो तिब्बती ग्रन्थ में इसी अभिव्यक्ति का प्रयोग हुआ हो। जबकि ऐसा नहीं है। उस ग्रन्थ में “हिन्दू” और “उन्मादी” जैसे शब्द न हो कर एक “चमत्कार” की चर्चा थी कि कैसे दो “गैर-बौद्ध भिखारियों” (यही शब्द थे) ने एक दुर्व्यवहार की प्रतिक्रियास्वरूप एक चमत्कारी शक्ति से पुस्तकालयों में आग लगा दी। यादव ने इन “चमत्कारी भिखारियों” को “हिन्दू उन्मादियों” लिख दिया, जिसे डीएन झा ने मूल शब्द के तौर पर प्रस्तुत कर दिया।

झा की चालाकी देखिए, वे 500 वर्ष बाद लिखे ग्रन्थ में वर्णित एक “चमत्कार” को तो प्रमाण मानते हैं लेकिन नालंदा की घटना के समकालीन प्रख्यात विद्वान मौलाना मिन्हाज़ुद्दीन की विश्व भर में प्रमाणित पुस्तक ‘तबाकत-इ-निसारी’ –- में उल्लिखित मुहम्मद बख्तियार की सेना के द्वारा नालंदा के विध्वंस के वर्णन को बड़ी चालाकी से दरकिनार कर देते हैं।

झा यादव के इस वाक्य को भी ,“…बौद्ध पंथ को निःसंदेह तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा बेहद नुकसान पहुंचाया गया, जिन्होंने मगध और बंगाल के बौद्ध विहारों को ध्वस्त कर दिया… ” कहीं उद्धृत नहीं करते।

धर्मस्वामिन नामक उस तिब्बती भिक्षु के मुस्लिम आक्रान्ताओं के कारण वहां व्याप्त भय आदि संबंधी अनुभवों को भी दरकिनार कर दिया जाता है, जिस पर प्रसिद्ध रूसी विद्वान जोर्ज रोरिच ने शोध किया है, जो मोस्को के ओरिएण्टल स्टडीज इंस्टिट्यूट में विभागाध्यक्ष थे।

अब यह सर्वविदित है कि वामपंथी और मार्क्सवादी भारतीय वर्ण-व्यवस्था, विशेषकर ब्राह्मणों के भयंकर विरोधी हैं। ऐसे में इनसे यह आशा नहीं की जा सकती है कि ये किसी ब्राह्मण शासक का निष्पक्ष चरित्र चित्रण करेंगे। इतिहास के पन्ने पलटने पर अनुभव होता है कि भारतवर्ष के इतिहास में हर उस महापुरुष को या तो कलंकित कर दिया गया या हाशिए पर छोड़ दिया गया, जो हिन्दू था और देश के लिए मर मिटा। उदाहरण सिर्फ पुष्यमित्र शुंग नहीं है, महाराणा प्रताप, सावरकर जैसे महान देश प्रेमी भी हैं। लेकिन इन्हें हिन्दू संहारक टीपू सुल्तान, बाबर, औरंगजेब, अकबर और तैमूर जैसे आक्रांता महान लगते हैं।

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