बुद्ध मुस्कुरायेंगे नहीं
हे बुद्ध ; महात्मा!
आँखें बंद किये हो क्यों?
विष्णु रूप,करुणा के सागर
आँखें खोलो, कुछ तो बोलो ।।
हे आर्य! सत्य के अन्वेषक
किया था महाभिनिष्क्रमण
हेतु दुःख निवारण था ।
न स्वयं बच सके, न बच पाया कोई
जरा , व्याधि और मृत्यु से ।
आँखें खोलो, कुछ तो बोलो ।।
हे तथागत ! शक्ति पुंज
कोरोना के नाग पाश में
जकड़ा सकल जगत उसने।
कैसे मुक्त करोगे ?
उस ड्रैगन, महादानव से।
आँखें खोलो, कुछ तो बोलो। ।
हे शाक्य मुनि! हे पथ प्रदर्शक
तमस भरा, मेरा जीवन
दिव्य ज्योति से, कर दो रोशन।
आँखें खोलो, कुछ तो बोलो ।।
डाॅ. जयन्तीलाल खण्डेलवाल
जयपुर