बृज मण्डल में हिन्दी उत्थान व स्वतन्त्रता की अलख
कुशलपाल सिंह
बृज मण्डल में हिन्दी उत्थान व स्वतन्त्रता की अलख
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल॥
प्राचीनकाल से ही बृज क्षेत्र अपने धार्मिक महत्व के कारण सम्पूर्ण जगत् में विख्यात है। भगवान कृष्ण के लौकिक रूप से बृज की धरा पूर्ण रूप को प्राप्त हुई। धर्म व कर्म का समन्वित ज्ञान इस धरा से विश्व को प्राप्त हुआ। बृज मण्डल में मथुरा जहाँ धार्मिक नगरी के रूप में संसार में प्रसिद्ध है, वहीं भरतपुर नगरी राजनीतिक मानचित्र पर एक समृद्वशाली शक्ति के रूप में उभर कर सामने आई। यहाँ का राज परिवार अपने नाम से पूर्व बृजेन्द्र लगाकर अपनी श्रद्धा व सेवा को समर्पित कर सिद्ध कर चुका है कि वे वास्तव में बृज क्षेत्र के राजनीतिक उत्थान के साथ-साथ धार्मिक व सांस्कृतिक उत्थान के प्रति कृत संकल्पित रहे। महाराजा बृजेन्द्र सवाई सूरजमल से लेकर यह परम्परा महाराजा बृजेन्द्र सिंह तक अनवरत चलती रही। स्वधर्म व संस्कृति के लिए लगातार विदेशी शक्तियों से संघर्ष करते हुए अपने धर्म भाषा व जनता के कष्टों को समाप्त करने के लिए समाज को भी संघर्ष के लिए प्रेरित किया। भारत में अंग्रेजी शासन स्थापित हो जाने पर भरतपुर नरेश लगातार उनका विरोध करते रहे। जब स्वतन्त्रता की ज्योति जलने लगी तो भरतपुर राजपरिवार भी इस यज्ञ में अपनी आहुति देने लगा। इस सन्दर्भ में महाराजा किशन सिंह (कृष्ण सिंह) का योगदान अविस्मरणीय है।
20वीं सदी के प्रारम्भ में सम्पूर्ण उत्तर भारत में हिन्दी प्रेमियों ने मातृभाषा की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित किया। राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति प्रेम के कारण महाराजा किशन सिंह के काल में महाराज व सामान्य नागरिकों ने मिलकर हिन्दी भाषा के प्रति अपने कर्त्तव्यों को मूर्त रूप देने के लिए प्रयास प्रारम्भ किये और महाराज किशन सिंह ने इस कार्य को पूर्ण श्रद्धा व समर्पण से प्रारम्भ करवाया। जनवरी 1919 में राज्याधिकार प्राप्त होते ही सर्वप्रथम हिन्दी को राजभाषा घोषित किया और सभी कर्मचारियों को 3 माह में हिन्दी सीखने के लिए प्रेरित किया। महाराज के कुशल नेतृत्व में राज्य प्रशासन ने 16 नवम्बर 1926 को हिन्दी भाषा में ‘‘भारतवीर‘‘ नामक साप्ताहिक समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इस पत्र में शिक्षा, वाणिज्य, विज्ञान, कला, दस्तकारी तथा जन कल्याणकारी गतिविधियों से सम्बन्धित समाचार प्रकाशित किये जाते थे। इस समाचार पत्र में हिन्दी
कविता को नये मापदण्ड प्रदान करने के लिए अलग से ‘‘कविता कुंज‘‘ नामक खण्ड शामिल किया गया। इस समाचार-पत्र में 7 विशेषांक निकले जिसमें बालकांक, महिलांक, विविधांक तथा अछूतांक विशेष प्रसिद्ध रहे। शिक्षा व हिन्दी के प्रति समर्पण के कारण महाराज ने भरतपुर में अनिवार्य शिक्षा लागू की जो कि भारत में विचारणीय भी नहीं थी।
महाराज किशन सिंह के निर्देशन में 175 केन्द्रों के माध्यम से निःशुल्क या साधारण खर्चे से पाठशाला संचालित की गई।मातृभाषा की सेवा के लिए 13 अगस्त 1912 को भरतपुर में श्री हिन्दी साहित्य समिति भरतपुर की स्थापना की गई। श्री साहित्य समिति ने वाचनालय व पुस्तकालय को सुधीजनों के लिए सुचारू रूप से प्रारम्भ किया जो कि अनवरत रूप से आज भी कार्यरत है। समिति के पुस्तकालय में विषय वैविध्य भी प्रचुर मात्रा में है। यहाँ पर हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की बहुमूल्य अंसख्य प्राचीन पुस्तकें उपलब्ध हैं। यहाँ पर इतिहास, जीवन चरित्र, वेद, नाटक, चिकित्सा, स्त्री शिक्षा, साहित्य, वेदान्त, शिल्पकला, उपन्यास, कहानी, अर्थशास्त्र, विज्ञान, कृषि, भूगोल, धर्म, काव्य आदि विषयों के साथ 28000 मुद्रित ग्रन्थ, 1542 हस्तलिखित ग्रन्थ (पाण्डुलिपियाँ) संग्रहित हैं।
श्री हिन्दी साहित्य समिति के तत्वाधान में 17वाँ हिन्दी साहित्य सम्मेलन भरतपुर नगर में 29 मार्च से 31 मार्च 1927 को आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में नोबल पुरस्कार विजेता रवीन्द्र नाथ टैगोर, मदनमोहन मालवीय, पुरूषोत्तम दास टण्डन, डॉ0 सम्पूर्णानन्द, माखनलाल चतुर्वेदी आदि अनेक विभूतियों ने भाग लिया। महाराजा किशन सिंह ने राष्ट्रभाषा का ध्वज फहराकर इस सम्मेलन का उद्घाटन किया। राष्ट्रभाषा की सेवा के साथ-साथ भरतपुर के नागरिकों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी भाग लिया। सत्यभक्त ने सम्पूर्ण भारत को अपनी कार्यस्थली बनाया। कानपुर, नागपुर, अजमेर, प्रयागराज आदि स्थानों पर वह सक्रिय रहे। 1924 में कानपुर में अखिल भारतीय साम्यवादी दल की स्थापना की। मन्मथ नाथ गुप्त, शचीन्द्र नाथ सान्याल, भगत सिंह, गणेशशंकर विद्यार्थी, विजय सिंह पथिक आदि स्वतन्त्रता के सेवकों से सम्पर्क तथा राष्ट्र सेवा के लिए सम्मिलित रूप से कार्य किया।
बृज मण्डल में स्थित भरतपुर राज्य ने हिन्दी व राष्ट्रसेवा के लिए अथक प्रयास किये। यहां की जनता ने भी इस कार्य को शिरोधार्य करके इस कार्य के प्रति सम्पूर्ण निष्ठा से हिन्दी भाषा के उत्थान में अपना सम्पूर्ण योगदान दिया जो कि अविस्मरणीय है।
(साभार-श्री हिन्दी साहित्य समिति शताब्दी ग्रन्थ)
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