जन जन की आस्था का केंद्र बेणेश्वर धाम
गुड्डी खंडेलवाल
जन-जन की आस्था का केंद्र जहाँ की सादगी, नैसर्गिक सौंदर्य व सुषमा अद्वितीय है। जहाँ भक्ति की शक्ति के आगे सारा संसार नतमस्तक है। “निष्कलंक महाराज की जय हो! निष्कलंक महाराज की जय!” हजारों की संख्या में जब एक साथ यह जयकार गूंजता है तो स्वच्छंद वातावरण में शाश्वत ऊर्जा का आभास करा देता है। जहाँ तक दृष्टि जाए वहाँ तक अपार आनंद वर्षा व उल्लास का माहौल है।
यह है बेणेश्वर धाम। वागड़ का प्रयागराज। वनवासी जनजातियों का महाकुंभ। बेणेश्वर धाम डूंगरपुर जिले में स्थित साबला गाँव में है। यहाँ होली से पहले माघ मास की शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर सोम, माही व जाखम नदियों के पवित्र संगम पर मेला लगता है।
वागड़ के प्रकृति प्रेमी संत मावजी महाराज ने वागड़ की सोम, माही व जाखम नदियों के तट पर तपस्या की थी। मावजी महाराज के काल में छुआछूत, ऊंच-नीच आदि का भेदभाव किया जाता था। उन्होंने इस भेदभाव का खंडन कर समाज को एकाकार किया। मावजी महाराज ने भगवान की भक्ति पर सबका अधिकार बताया व संदेश दिया- “जात-पात पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।” लोगों के मन-मस्तिष्क पर उनकी वाणी का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा तथा वे वनवासियों सहित जन-जन की श्रद्धा एवं विश्वास का केंद्र बन गए। इन्हीं मावजी महाराज की स्मृति में बेणेश्वर धाम में प्रतिवर्ष यह विशाल मेला लगता है।
बेणेश्वर मेला अपने आप में एक अनूठा मेला है। यह मेला भावनाओं की साक्षात् अभिव्यक्ति है। इस मेले के प्रति वनवासियों में अगाध श्रद्धा है। वनवासी जन भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में मावजी महाराज की पूजा करते हैं। 7 दिनों तक चलने वाला यह मेला मुख्यतः क्षेत्र की वनवासी भील जाति का प्रमुख पर्व है। इस मेले में राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात, मध्य प्रदेश तथा अन्य राज्यों से हजारों वनवासी इन नदियों के पवित्र संगम में डुबकी लगाने आते हैं। इसके पश्चात् बेणेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। इन नदियों के पवित्र संगम स्थल पर एक टापू बना हुआ है जिसे आबूधरा कहते हैं।
बेणेश्वर धाम में बहुत से मंदिर हैं परंतु प्रमुख मंदिर बेणेश्वर महादेव का है। बेणेश्वर मंदिर के परिसर में लगने वाला मेला भगवान शिव को समर्पित है। इस मेले में प्रतिवर्ष 500000 से अधिक श्रद्धालु आते हैं। यहाँ जनजातीय गण अपने परिजनों की अस्थियों का विसर्जन करने भी आते हैं। मेले में आने वाले पर्यटक डूंगरपुर के ऐतिहासिक किलो एवं मंदिरों को देखना नहीं भूलते हैं।
बेणेश्वर धाम मुक्तिधाम है। यह त्रय-ताप निवारिणी पवित्र भूमि है व राजस्थान के लोगों के लिए हरिद्वार, काशी एवं मथुरा के समान ही महत्व रखती है। बेणेश्वर धाम का आध्यात्मिक व सामाजिक महत्व अतुलनीय है। इसकी महिमा का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है। यह केवल वहाँ जाकर ही अनुभव किया जा सकता है।