बेरोजगारी का बन गया है अपना बाजार
बेरोजगारी का बन गया है अपना बाजार, कोचिंग संस्थानों के पीछे भाग रहे छात्र
जयपुर। राजस्थान के छोटे-बडे शहरों में कुछ जगहें आपको अलग ही नजर आएंगी। यहॉं आपको दिखेंगे कोचिंग संस्थानों के बोर्ड, पीजी और होस्टलों के होर्डिंग, पुस्तकों और फोटोस्टेट की दुकानें और वो पूरा बाजार जिसकी एक प्रतियोगी परीक्षा देने वाले को आवश्यकता होती है। इसमें चाय और पान वाले तक शामिल हैं।
जी हां! प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षा देकर सरकारी नौकरी की चाह रखने वाले युवाओं के पीछे एक पूरा बाजार खड़ा हो गया है। यह बाजार ऐसे युवाओं को नौकरी भले ही ना दे पा रहा हो, लेकिन सैकड़ों दूसरे लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार अवश्य दे रहा है। एक युवा एक अदद सरकारी नौकरी के सपने को पूरा करने के लिए प्रति वर्ष औसतन एक से डेढ़ लाख रुपए खर्च कर देता है, जिसके बदले में अक्सर उसे मिलता है पेपर लीक, नकल या किसी अन्य कारण से पेपर निरस्त होने का समाचार और वो मायूस हो कर फिर आगे दूसरी परीक्षा की तैयारी में जुट जाता है। यह बाजार आज करोड़ों रुपए का हो चुका है।
सिर्फ सरकारी नौकरी को ही रोजगार मानने वाली शिक्षा नीति ने खड़ा किया है यह बाजार
मैकाले की शिक्षा पद्धति के अंधानुकरण ने रोजगार का मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी को बना दिया है और इसी के चलते यह बाजार खड़ा हुआ है। स्वाधीनता के बाद से बनी शिक्षा नीतियों ने स्वरोजगार पर जोर ही नहीं दिया और युवाओं को उद्यमिता से दूर कर दिया। यही कारण है कि आज तक युवा रोजगार का अर्थ सिर्फ सरकारी नौकरी से लगाता है। स्वरोजगार से जुड़ा कोई काम रोजगार लगता ही नहीं है। जबकि यह एक सर्वविदित तथ्य है कि सरकारी नौकरी हर किसी को नहीं मिल सकती। राजस्थान की ही बात करें तो यहां अभी सरकारी कर्मचारियों की संख्या सिर्फ सात लाख है जबकि प्रदेश की जनसंख्या पांच करोड़ से अधिक हो चुकी है। केन्द्र व राज्य सरकारें कितने भी पद बढ़ा लें सबको सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। इसके बावजूद युवा अपने जीवन के सबसे उद्यमितापूर्ण वर्ष सरकारी नौकरी की तैयारी में खपा देता है, जबकि वह चाहे तो इन्हीं वर्षों में स्वयं का कोई उद्यम स्थापित कर स्वयं सहित दो और लोगों को रोजगार दे सकता है।
बेरोजगारी के बाजार के खिलाड़ियों ने युवाओं की इस मानसिकता को बखूबी पढ़ लिया है और अब इसी का लाभ उठा कर यह बाजार खड़ा कर लिया गया है। इसमें शोषण सिर्फ बेरोजगार का हो रहा है। इस स्थिति को बदलना बेहद आवश्यक है और यह तभी सम्भव है जब हमारी शिक्षा नीति सरकारी नौकरी या किसी भी तरह की नौकरी के बजाए स्वरोजगार और उद्यमिता पर जोर दे। वर्तमान सरकार की ओर से लाई गई नई शिक्षा नीति में इस ओर गम्भीर प्रयास किए गए हैं और स्कूल से ही बच्चों को उद्यमी बनाने पर जोर दिया गया है। आशा की जानी चाहिए कि नई शिक्षा नीति युवाओं की सोच को बदलने में सफल रहेगी।
ये हैं बेरोजगारी के बाजार के खिलाड़ी
कोचिंग संस्थान- बेरोजगारी के बाजार के सबसे बड़े खिलाड़ी कोचिंग संस्थान हैं। परीक्षा में निश्चित सफलता दिलाने का दावा करने वाले इन संस्थानों का पूरा जाल खड़ा हो गया है। एक समय सिर्फ कोटा कोचिंग संस्थानों के लिए जाना जाता था, जहां इंजीनियरिंग व मेडिकल की प्रवेश परीक्षा के लिए कोचिंग होती थी। अब कोचिंग का ऐसा ही बाजार प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए खड़ा हो गया है जो प्रति वर्ष बेरोजगारों से फीस के रूप में करोड़ों रुपए वसूल रहा है। यह कोचिंग का बाजार नकल और पेपर लीक के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
होस्टल और पीजी
कोचिंग करने के लिए इन शहरों में आ रहे बेरोजगारों को रहने के लिए जगह चााहिए और यह सुविधा दे रहे हैं होस्टल और पीजी। कोचिंग संस्थानों के आसपास के क्षेत्रों में लोग अपने घरों को होस्टल और पीजी में बदल रहे हैं।
प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकों के प्रकाशक
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अभ्यर्थी को पुस्तकों और नोट्स की आवश्यकता होती है और इन्हें तैयार करने वाले प्रकाशकों का एक पूरा बाजार है। न जाने कितने लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। ये पुस्तकें मनमाने दामों पर बिक रही हैं, इनकी गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है।
ई-मित्र संचालक
सरकार की हर भर्ती परीक्षा के आवेदन अब ई-मित्रों के माध्यम से ही भरे जाते हैं। ऐसे में इनकी संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। ई-मित्र संचालक आवेदन भरने के साथ ही फोटोस्टेट, इंस्टेट फोटोग्राफ, कई तरह के प्रमाण पत्र आदि बनाने की सुविधा भी दे रहे हैं साथ ही इनके मनमाने दाम भी वसूल रहे हैं।
टिफिन सेंटर
ऐसे क्षेत्र जहॉं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवा रहते हैं, वहॉं टिफिन सेंटरों, नाश्ते के रेस्टोरेंट, चाय की टपरियों और पान-गुटखे वालों का भी एक पूरा बाजार आपको दिख जाएगा।
कपड़े, जूते, मोबाइल, स्टेशनरी
बेरोजगार युवाओं की ये भी अहम आवश्यकताएं हैं। इनकी दुकानें भी आपको ऐसे क्षेत्रों में अवश्य मिल जाएंगी, जहां रहकर वे परीक्षाओं की तैयारी कर रहे होते हैं।
ये बेरोजगारी के बाजार के सिर्फ वो हिस्से हैं जो हम देख पा रहे हैं। इनके अलावा भी एक बहुत बडी वर्कफोर्स बेरोजगारों के लिए काम कर रही है जो यह जानती है कि बेरोजगारी या यूं कहें कि सरकारी नौकरी के प्रति युवाओं की आसक्ति कभी कम नहीं हो सकती और इसी का लाभ यह पूरा बाजार उठा रहा है।
अब सोचने की बात है कि जब बाजार इतना बड़ा हो जाए तो उसकी ताकतें कहां तक पहुंच सकती हैं और क्या नहीं करवा सकती हैं।