बैटल ऑफ सारागढ़ी : जब 10 हजार अफगानों से भिड़ गए थे 21 सिख सैनिक
बैटल ऑफ सारागढ़ी 12 सितंबर 1897
नरेंद्र सहगल
बैटल ऑफ सारागढ़ी 12 सितंबर 1897 को ब्रिटिश भारतीय सेना की 36वीं सिख बटालियन के 21 सिख जवानों और दस हजार अफगानियों के बीच लड़ा गया था। अफगानियों ने उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत (पाकिस्तान) पर हमला बोल दिया था। यह लोग गुलिस्तां किले पर अधिकार करना चाहते थे। किले के पास बनी सारागढ़ी सुरक्षा चौकी पर केवल 21 जवान तैनात थे। इन वीर सैनिकों ने अफगान हमलावरों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया और ये किले को बचाने में सफल रहे।
युद्ध के अंत में सभी जवान शहीद हो गए। मरणोपरांत सभी शहीद सैनिकों को इंडियन मैरिट ऑफ ऑर्डर अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह तारीख इतिहास में सिखों के अतुल्य साहस के रूप में दर्ज है। ब्रिटिश-एंग्लो सेना व अफगान सेना के बीच लड़ी यह लड़ाई बैटल ऑफ सारागढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। यह विश्व की महानतम लड़ाइयों में से एक है। इस युद्ध में सिख रेजीमेंट के 21 जवान अफगानों की 10 हजार की फौज से भिड़ गए थे और उन्होंने लगभग 600 अफगानों को मौत के घाट उतारकर वीरगति पाई।
यह दर्रा खैबर क्षेत्र से लगभग 47 किलोमीटर दूर छह हजार फुट ऊंची चोटी पर किला सारागढ़ी और इससे समान दूरी पर किला लाकर हार्ट व किला गुलस्तान त्रिकोण की स्थिति में मौजूद है। किला लाक हार्ट व किला गुलेस्तान पाकिस्तान में आर्मी कैंट में बदल हो चुके हैं, जबकि किला सारागढ़ी आज पाकिस्तान सेना द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है।
वर्ष 1897 में समाना घाटी में उक्त किलों सहित सरतूप व संगर किले भी मौजूद थे, जिनमें 36 नंबर सिख बटालियन की पांच कंपनियां तैनात थी। इनका कमांडिंग अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल जान हयूगटन था। अंग्रेज हकूमत के विरुद्ध शुरू हुए विद्रोह के चलते हजारों की संख्या में कबाइली पठानों ने 11 सितंबर 1897 की रात संगर किले पर हमला बोल दिया, परंतु वे किले की दीवारों को गिराकर किले में प्रवेश नहीं कर पाए।
इसके बाद उन्होंने अगले दिन 12 सितंबर की दोपहर साढ़े तीन बजे सारागढ़ी की चौकी पर पूरे लाव लश्कर सहित हमला बोल दिया। इस किले में हमले से मात्र आधा घंटा पहले ही कर्नल जान हयूगटन ने 93 सैनिकों को किसी पास के अन्य किले की कबालियों से हिफाजत करने के लिए भेजा था, इसलिए जब कबालियों ने सारागढ़ी पर हमला किया तो वहां हवलदार ईशर सिंह की कमांड में मात्र 20 अन्य सिख सैनिक थे। नायक लाल सिंह, लायंस नायक चंदा सिंह, सिपाही राम सिंह, राम सिंह, हीरा सिंह, उत्तम सिंह, दया सिंह, जीवन सिंह, भोला सिंह, गुरमुख सिंह, नारायण सिंह, जीवन सिंह, नंद सिंह, भगवान सिंह, भगवान सिंह, सुंदर सिंह, बूटा सिंह, जीवा सिंह व सिपाही गुरमुख सिंह थे।
इन 21 बहादुर सिखों ने हिम्मत नहीं हारी। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की हजूरी में अरदास कर युद्ध करने के लिए अपना-अपना मोर्चा संभाल लिया। किले में मौजूद जवानों ने जवाब में कहा कि हमने दुश्मन का मुकाबला करने के लिए अरदास करके अपने हथियार उठाए लिए हैं। अब हम किसी भी स्थिति में पीछे हटने के बारे में नहीं सोच सकते हैं। ये 21 योद्धा पूरे छह घंटे तक बीस हजार के करीब पठानों से पूरी बहादुरी के साथ तब तक जूझते रहे।
उनके पास किले में मौजूद सारा गोली सिक्का समाप्त हो गया और फिर एक-एक कर सभी जवान बलिदान हो गए। इनके बलिदान होने के साथ ही सारागढ़ी चौकी पर कबाइलियों का अधिकार हो गया। वीरगति प्राप्त 21 सैनिकों की यादगार बनाने के लिए जनांदोलन हुआ था। जो वजीरास्तान (अब पाकिस्तान), अमृतसर व फिरोजपुर में स्थापित की गई थी।