बॉलीवुड का दोगला चेहरा
शैलेंद्र जैन
मार्च, 1995 में एक फिल्म रिलीज हुई थी ‘Bombay’। राम जन्मभूमि आंदोलन की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म एक प्रेमकथा थी। कुछ भी असामान्य नहीं था इस फिल्म में, अगर हम फिल्म की पटकथा, स्क़ीन-प्ले की बात करें तो।
लेकिन फिल्म रिलीज होते ही बवाल मच गया पूरे देश में, कारण क्या था?
दरअसल फिल्म की हीरोइन ‘मुस्लिम’ थी, मतलब हीरोइन का किरदार निभाने वाली अदाकारा नहीं (वो तो मनीषा कोईराला थी), पर फिल्म में प्रेम करने वाली लडकी ‘मुस्लिम’ थी, और लडका ‘हिन्दू’ और यही सबसे बडा ‘जुर्म’ था, मुसलमानों की निगाहों में। दंगे भड़क उठे, पूरे देश में फिल्म की स्क्रीनिंग रुकवा दी नारे लगाती हुई इस्लामी भीड़ ने। कई छोटे शहरों में तो भीड़ सिनेमाघरों के अंदर घुस गई और तोड़फोड़ की। मामला अदालत पहुँचा, और सात दिनों के लिए फिल्म पर रोक लगा दी गई।
तीन लोगों की एक मुस्लिम कमेटी को फिल्म दिखाई गयी (उनमें से एक ‘रजा एकेडमी’, मुबंई का था) तीनों ने मुबंई पुलिस की सुरक्षा में फिल्म देखी, कुछ भी नहीं कहा फिल्म देखने के दौरान, और फिर अपने कार्यालय जाकर एक बयान जारी कर दिया कि यह फिल्म इस्लाम के विरुद्ध है। दंगे कुछ दिनों तक चले, फिर धीरे – धीरे थम गए।
उसके बाद क्या हुआ?
‘Bombay’ फिल्म के रिलीज के लगभग पाँच महीने बाद, जुलाई 1995 में फिल्म के निर्देशक, मणि रत्नम, चेन्नई में अपने घर की पहली मंजिल वाली बालकनी में सुबह – सुबह कॉफी की चुस्कियां ले रहे थे, अखबार पढ़ते हुए, तभी सामने वाली रोड पर मोटरसाइकिल से दो युवक आए। उनके घर के सामने मोटरसाइकिल रोकी। पीछे बैठे युवक ने अपने बैग में से एक देसी बम निकाला, और मणि रत्नम के घर की बालकनी में फेंक दिया। मणि रत्नम की नौकरानी, जो बालकनी में थी, बुरी तरह घायल हो गई। मणि रत्नम भी गम्भीर रूप से घायल हो गए। उनकी बालकनी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई। बम भले देसी था, पर बहुत शक्तिशाली था
तो क्या प्रतिक्रिया रही होगी फिल्म इंडस्ट्री की?
सारे फिल्मकार सड़क पर उतर आए होंगे, मणि रत्नम के घर मिलने वालों की भीड़ लग गयी होगी?
कुछ भी नहीं हुआ ऐसा। स्वयं को सेकुलर कहलाने में गर्व का अनुभव करने वाले बॉलीवुडियन्स ने एक शब्द नहीं कहा इस घटना के विरुद्ध। मणि रत्नम से मिलने सिर्फ दो – तीन लोग ही पहुँचे। अस्पताल में बॉलीवुड के किसी भी अहम फिल्मकार ने व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर इस घटना की निंदा नहीं की। बम फेंकने वाले ‘अल – उम्मत’ संगठन के दो जिहादी निकले, जिनके संगठन ने कुछ महीनों पहले तमिलनाडु के प्रख्यात हिन्दू नेता की हत्या की थी।
…और जावेद अख्तर की प्रतिक्रिया? उनका क्या रुख था?
घटना के कुछ दिनों के बाद जावेद अख्तर ने यह बयान दिया कि गलती मणि रत्नम की ही थी, जैसे बाल ठाकरे के विरोध के कारण उन्होंने फिल्म के हिन्दू नेता के गेटअप और डॉयलॉग्स में कुछ बदलाव किए थे, कुछ वैसे ही बदलाव अगर उन्होंने इस्लामिस्ट की बातें सुनकर भी कर दिए होते, तो इतना बवाल न मचता !!
इसके बाद से जितनी भी फिल्में आईं, यदि उनमें हीरो/ हीरोइन का पंथ अलग था, तो उनमें लड़की हिन्दू दिखाई गई और लड़का मुसलमान। फिर कहीं दंगे नहीं भड़के। बल्कि गंगा जमुनी तहजीब और मजबूत हुई।
पिछले वर्ष जुलाई में इन्हीं जावेद अख्तर के बेटे फरहान अख्तर की भी फिल्म आई ‘तूफान’। फिल्म में ‘Love – Equation’ का पूरा ध्यान रखा गया यानि लड़का ‘मुस्लिम’ था और लड़की ‘हिन्दू’ !
फिल्म का डायरेक्टर ‘हिन्दू’ था- ओम प्रकाश मेहरा। यह वही डायरेक्टर है, जिसका परिवार मुस्लिम अत्याचारों की विभीषिका झेल कर पाकिस्तान से हिन्दुस्तान आया था।