चर्च समर्थित संगठनों के कारण अपने ही देश में शरणार्थी बन गए ब्रू-रियांग जनजाति के जीवन में आया सवेरा
शुभम उपाध्याय
भारत ने ढेरों नरसंहार झेले हैं। यहां की कोई भूमि ऐसी नहीं है, जहॉं आक्रमणकारी शक्तियों ने हमला न किया हो। कभी भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े भूभाग पर सनातन संस्कृति थी और हिंदू समाज पूरे अधिकार से रहता था, वहीं आज भारत भूमि के अंदर ही कई ऐसे प्रांत हैं जहां हिंदू समुदाय के विभिन्न अंग शरणार्थी बनने को मजबूर हो चुके हैं।
हमने जम्मू कश्मीर से कश्मीरी हिंदुओं के पलायन का किस्सा सुना है। हमने भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान बड़ी संख्या में पाकिस्तान से आए हिंदुओं के पलायन की कहानियां सुनी हैं। हमने बांग्लादेश से भाग कर आए हिंदुओं के बारे में भी पढ़ा है जो वहॉं अत्याचार के शिकार हुए। लेकिन हमने उत्तर पूर्व के राज्य में एक ऐसी जनजाति के हालातों पर कभी चर्चा नहीं की, जिन्हें चर्च और चर्च समर्थित संगठनों ने ना सिर्फ बेघर कर दिया बल्कि वे दोबारा उन्हें उनकी मूल भूमि पर लौटने भी नहीं देना चाहते।
भारत के उत्तर पूर्व प्रांतों में एक जनजाति निवास करती हैं जिसे रियांग के नाम से जाना जाता है। यह जनजाति मुख्यतः मिजोरम और त्रिपुरा के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहती है। मिजोरम में इस जनजाति को ब्रू जनजाति के रूप में जाना जाता है। इस जनजाति को ब्रू-रियांग भी कहा जाता है।
90 के दशक के पूर्वार्ध में जब कश्मीर से हिंदुओं का पलायन हो रहा था, तब उसी दशक के उत्तरार्ध में उत्तर पूर्व से जनजातीय हिंदू ब्रू-रियांग समाज के साथ मिजोरम के चर्च समर्थित संगठनों ने हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया जिसकी वजह से ब्रू-रियांग जनजातीय समाज के लोगों को मिजोरम छोड़कर निकलना पड़ा।
1996-97 के बीच एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार मिजोरम में ईसाई पंथ अपना चुके मिजो समुदाय के विभिन्न संगठनों के द्वारा ब्रू जनजाति के लोगों के साथ हिंसक वारदातें की गईं। इसके बाद लगभग 5000 ब्रू जनजाति के परिवारों का त्रिपुरा की ओर विस्थापन हुआ।
तब से लेकर आज तक त्रिपुरा के शिविरों में हिन्दू ब्रू-रियांग जनजाति के लोग शरणार्थी बनकर रह रहे हैं। वर्ष 2020 की जनवरी में केंद्र सरकार ने इस समाज के लिए त्रिपुरा में ही पुर्नस्थापन की व्यवस्था की है और अब इन्हें त्रिपुरा में ही बसाया जाएगा, साथ ही इन्हें बुनियादी सुविधाएं दी जाएंगी।
ब्रू-रियांग जनजाति के विस्थापन को लेकर एक यह बात भी सामने आती है कि जब मिजोरम में तमाम जनजाति समाज के लोगों का ईसाई मिशनरियों एवं चर्च समर्थित संगठनों के द्वारा मतांतरण कराया जा रहा था, तब इस जनजाति के लोगों ने मतांतरित होने से साफ इनकार कर दिया। इस कारण भी स्थानीय मिजो समुदाय के लोग जो अपना धर्म परिवर्तित कर ईसाई धर्म में शामिल हो चुके हैं उन्होंने ब्रू-रियांग जनजाति के लोगों को बाहर निकालने के लिए अभियान चलाया।
सिर्फ इतना ही नहीं केंद्र एवं राज्य सरकार की सहायता से जब जब वार्ता कर ब्रू-रियांग जनजाति के लोगों को वापस मिजोरम में बसाने की पहल की गई तो मिजोरम में चर्च समर्थित गैर सरकारी संगठनों के द्वारा बार-बार इसका विरोध किया गया।
चर्च समर्थित ईसाई संगठन सेंट्रल यंग मिजो एसोसिएशन ने ब्रू-रियांग जनजाति के लोगों को वोट देने के अधिकार से भी वंचित करने की मांग की थी। यह ईसाई संगठन लगातार ब्रू-रियांग जनजाति के लोगों को प्रदेश से बाहर धकेलने की मुहिम में लगा रहा और उन्हें बाहरी बताने की जद्दोजहद करता रहा है।
चर्च और चर्च समर्थित संगठनों का खौफ आज इतना अधिक बढ़ चुका है कि रियांग जनजाति के लोग भूखे प्यासे तड़प कर मरना स्वीकार करते हैं लेकिन वापस अपनी भूमि पर नहीं जाना चाहते हैं।
इसके अलावा ऐसी स्थितियां भी देखी गई हैं जिनसे चर्च समर्थित संगठनों एवं ईसाई संगठनों की भूमिका इसमें शामिल दिखती है क्योंकि ब्रू-रियांग जनजातियों के जो लोग मतांतरित होकर ईसाई बने हैं, उन्हें स्थानीय मिजो जो कि पहले ही मतांतरित हो चुके हैं, परेशान नहीं करते।
त्रिपुरा में हिंदू ज्वाइंट कोऑर्डिनेशन कमेटी के नाम से संचालित एक संगठन के द्वारा लगातार ब्रू-रियांग जनजाति समाज के हितों और उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए आवाज उठाई जा रही है। इस संगठन ने 2017 में गृह मंत्रालय से मूल निवासी हिंदू धर्म के ब्रू-रियांग जनजाति के लोगों की मिजोरम में सुरक्षा को लेकर अपनी बात कही थी।
केंद्र की योजना से कैसे बदलेंगे हालात
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, त्रिपुरा एवं मिजोरम के मुख्यमंत्रियों एवं ब्रू-रियांग जनजातियों के प्रतिनिधियों के साथ हुए एक समझौते के अंतर्गत केंद्र सरकार अब इन्हें घर बनाने के लिए 1200 स्क्वायर फीट की जगह और डेढ़ लाख रुपए की सहायता त्रिपुरा में ही करेगी।
इसके अलावा उन्हें ₹4 लाख फिक्स डिपॉजिट के माध्यम से दिए जाएंगे और 2 साल तक प्रतिमाह ₹5000 एवं मुफ्त राशन भी दिया जाएगा।
लंबे अरसे से इन शरणार्थियों को अपना घर और अपनी पहचान देने के वादे के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्रालय लगातार इनकी सुरक्षा में लगा है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव कुमार देब ने स्वयं जाकर ब्रू-रियांग जनजातियों के लिए बन रही पुनर्वास कॉलोनी का मुआयना किया है।
मुख्यमंत्री ने इस मानवीय कार्य को ऐतिहासिक बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह का आभार जताया। उन्होंने कहा कि बीते 23 वर्षों से जिस तरह यह समाज यातना का शिकार हुआ है, उसे जब तक हम निकट से नहीं देखेंगे तो उसका एहसास कभी नहीं कर पाएंगे।
मुख्यमंत्री ने बताया कि रियांग जनजाति के कुल 37,140 लोग एक नए जीवन के साथ अब शुरुआत करने वाले हैं। शरणार्थी भी अब अपने कैंपों से निकलकर त्रिपुरा सरकार द्वारा बनाए जा रही पुनर्वास कॉलोनी में आकर बसने लगे हैं।
यह जनजाति ऐसे समूह में आती है जिन्हें गृह मंत्रालय ने विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह के रूप में वर्गीकृत किया है।
यह जनजाति धार्मिक रूप से हिंदू धर्म के वैष्णव मत को मानने वाली है, यही कारण है कि चर्च समर्थित संगठन लगातार इस जनजाति को अपना निशाना बना रहे हैं।