भाग चार – प्रताप का प्रताप
अनमोल
प्रताप पिछले 500 वर्षों से भारत में लाखों करोड़ों के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। भारत के प्रसिद्ध चित्रकार रवि वर्मा ने उनका भाला लिए खड़े हुए एक सुंदर चित्र बनाया था। वियतनाम के लोग चीन से लड़ने की प्रेरणा मेवाड़ से प्राप्त करते हैं। वे अपना आदर्श प्रताप को मानते हैं और प्रसिद्ध क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप नाम से एक समाचार पत्र कानपुर से अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्तिकारी विचारों के लिए निकाला था।
प्रताप के बारे में उनके प्रखर विचार
गणेश शंकर विद्यार्थी के मन में प्रताप के लिए अद्वितीय विचार थे। उनका कहना था- प्रताप! हमारे देश का प्रताप! हमारी जाति का प्रताप! दृढ़ता और उदारता का प्रताप! तू नहीं है, केवल तेरा यश और कीर्ति है। जब तक यह देश है, और जब तक संसार में दृढ़ता, उदारता, स्वतंत्रता और तपस्या का आदर है, तब तक हम तुच्छ प्राणी ही नहीं, सारा संसार तुझे आदर की दृष्टि से देखेगा। संसार के किसी भी देश में तू होता, तो तेरी पूजा होती और तेरे नाम पर लोग अपने को न्योछावर करते। अमरीका में होता तो वाशिंगटन और अब्राहम लिंकन से तेरी किसी तरह कम पूजा न होती। इंग्लैंड में होता तो वेलिंगटन और नेल्सन को तेरे सामने सिर झुकाना पड़ता। स्कॉटलैंड में बलस और रॉबर्ट ब्रूस तेरे साथी होते। फ्रांस में जोन ऑफ आर्क तेरे टक्कर की गिनी जाती और इटली तुझे मैजिनी के मुकाबले में रखती। लेकिन हाँ! हम भारतीय निर्बल आत्माओं के पास है ही क्या, जिससे हम तेरी पूजा करें और तेरे नाम की पवित्रता का अनुभव करें! एक भारतीय युवक, आँखों में आँसू भरे हुए, अपने हृदय को दबाता हुआ संकोच के साथ तेरी कीर्ति गा नहीं-रो नहीं, कह-भर लेने के सिवा और कर ही क्या सकता है?
क्रमश: