भारतीय राष्ट्रवाद का मूल आधार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है – प्रो.राकेश सिन्हा
- एक साथ हजारों लोगों ने गाया वन्देमातरम
काशी। भारतीय राष्ट्रवाद का मूल आधार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है जिसका दूसरा नाम हिंदुत्व है। हिन्दू हमारी मौलिक पहचान है जबकि हिंदुत्व, हिन्दू होने और हिन्दुओं के वैशिष्ट्य के प्रति जागरूकता का नाम है। जब भी यह जागरूकता कम हुई न सिर्फ हिन्दुओं की संख्या कम हुई बल्कि अखण्ड भारत की चौहद्दी भी सिमटती गयी। हिन्दुओं पर आज भी वही प्रहार कर रहे हैं, जिन्होंने देश को बांटने का कार्य किया था। उक्त बातें प्रख्यात चिंतक एवं विचारक प्रो. राकेश सिन्हा ने वन्देमातरम आयोजन समिति काशी महानगर द्वारा आयोजित डॉ. संपूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम, सिगरा में सामूहिक वन्देमातरम गायन कार्यक्रम के दौरान कही। कार्यक्रम में एक साथ हजारों हजार लोगों ने वन्देमातरम का सामूहिक गायन किया।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता की लड़ाई का हम लोगों का पूरा इतिहास, कुछ लोगों के इर्द-गिर्द रखकर लिखा गया है और बलिदानियों की उपेक्षा की गई है। क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण ही, अंग्रेजों के मन में भय और निराशा के बादल छा गए। आज इतिहास की पुस्तकों में बारह वर्षीय शहीद बाज रावत और उसी उम्र की तैलेश्वरी बरुआ का नाम खोजने से भी नहीं मिलता। क्रांतिकारियों के योगदान और शुद्ध राष्ट्रवाद की घोर उपेक्षा की गई है।
उन्होंने आगे कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के शीर्ष पर बैठे लोगों ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर समझौता करते हुए राष्ट्रीयता को कमजोर किया। इसी कारणवश जिन्ना और मुस्लिम लीग का आत्मविश्वास बढ़ता गया। इसका उदाहरण है कि वन्देमातरम का गायन कांग्रेस में सन 1896 से हो रहा था, उसके गायन को रेडियो पर सन 1937 में बंद कर दिया गया। जो कि फिर से सन 1941 में शुरू हुआ। मातंगी हजारा जैसे बलिदानी, जो वन्दे मातरम गाते हुए हिंदुस्तान के लिए बलिदान हो गए, उनकी भी उपेक्षा कर दी गयी। यह एक तरह से मुस्लिम लीग के प्रति तुष्टिकरण का परिणाम था।
उन्होंने काशी का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि काशी न सिर्फ धर्म की नगरी है, बल्कि ज्ञान और परम्परा की सबसे प्राचीन नगरी है। इसने दुनिया में अकादमिक लोकतंत्र (एकेडेमिक डेमोक्रेसी) का विलक्षण उदहारण प्रस्तुत किया है। इसका उदाहरण दामोदर शास्त्री और बच्चा झा के बीच, दयानन्द शास्त्री और काशी के विद्वान पंडितों के बीच, गंगाधर शास्त्री व गट्टू लाल के बीच का शास्त्रार्थ है। काशी की इसी ज्ञान परम्परा के आधार पर शिक्षा को यूरोपीय केंद्रित से भारतीय केंद्रित बना सकते हैं।
प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए शिक्षा एवं कानूनविद डॉ. वीरेन्द्र ने कहा कि जिस प्रकार सांस्कृतिक विरासत को नष्ट किया गया, उसके बाद यह अमृत महोत्सव सर्वाधिक उपयुक्त अवसर है राष्ट्रवाद को स्पष्ट करने का। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की स्थापना यूरोपियन ने ही की थी, पंथ और जाति के नाम पर समाज को बाँटने का कुचक्र भी उन्होंने किया। वर्तमान में एक सूक्ति प्रचलित है- “हंस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान।” कार्यक्रम की अध्यक्षता रमेश कुमार चौधरी ने की। विशिष्ट अतिथि कर्नल राघवेन्द्र एवं सह संयोजक राहुल सिंह रहे।
इस दौरान डॉ. आशीष, रजत प्रताप समेत हज़ारों छात्र-छात्राएं एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का सीधा प्रसारण विश्व संवाद केन्द्र के काशी, कोंकण एवं राष्ट्रीय संस्था विश्व संवाद केन्द्र, काशी भारत एवं स्वदेशी ऐप वयम समेत देशभर के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर किया गया। संचालन सुनील द्विवेदी ने किया।
संस्कार भारती काशी महानगर ने प्रस्तुत किया सांस्कृतिक कार्यक्रम
कार्यक्रम के दौरान संस्कार भारती काशी महानगर द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से भारतीय संस्कृति से परिचित कराया गया तो देशभक्ति गीतों पर शास्त्रीय नृत्य ने परिसर में देशभक्ति का जुनून जगाया।
शंखनाद और डमरू की धुन से गुंजायमान हुआ काशी
स्टेडियम में काशी का असली स्वरुप देखने को मिला। अतिथियों के आगमन पर डमरू और शंख का नाद किया गया। काशी की इस मूल संगीत ध्वनि ने पूरे माहौल को काशीमय कर दिया। समय समय पर हो रहे हर हर महादेव, वन्देमातरम और भारत माता की जय के उद्घोष ने लोगों में जोश और उत्साह जागृत किया
हर हाथ में तिरंगा ने दिया सन्देश
परिसर में हर हाथ में तिरंगा दिख रहा था। कार्यक्रम में सम्मिलित होने आये अनेक छात्र-छात्रों का कहना था कि हमें स्वाधीनता मिली है लेकिन यह तिरंगा लेकर हम यह सन्देश देना चाहते हैं कि अब हम स्वतंत्रता और सुराज की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।