गंगा अवतरण से लेकर नौआखली दंगा पीड़ितों की चित्र यात्रा है संविधान
संविधान दिवस 26 नवंबर पर विशेष
डॉ. सुरेंद्र कुमार जाखड़
26 नवम्बर संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतंत्रता मिलते ही देश को चलाने के लिए संविधान बनाने के लिए काम शुरू कर दिया गया। इसी कड़ी में 29 अगस्त 1947 को भारतीय संविधान के निर्माण के लिए प्रारूप समिति बनाई गई। इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ. भीमराव अंबेडकर को जिम्मेदारी सौंपी गई। दुनिया भर के संविधानों का अध्ययन करने के बाद डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किया। 26 नवंबर 1949 को इसे भारतीय संविधान सभा के समक्ष रखा गया। इसी दिन संविधान सभा ने इसे अपना लिया। इसी कारण 2015 से हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
26 नवंबर 1949 को लागू होने के बाद संविधान सभा के 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद 26 जनवरी को इसे पूर्ण रूप से लागू कर दिया गया।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा। जिसमें एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद, 22 भाग एवं 8 अनुसूचियां थीं। वर्तमान में 12 अनुसूचियां हैं। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है।
भारतीय संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेजी दोनों में ही हस्तलिखित है। इसमें टाइपिंग या प्रिंट का इस्तेमाल नहीं किया गया। दोनों ही भाषाओं में संविधान की मूल प्रति को प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने लिखा था। रायजादा का खानदानी पेशा कैलिग्राफी का था। उन्होंने संविधान के हर पेज को बेहद खूबसूरत इटैलिक लिखावट में लिखा है। 251 पन्नों का संविधान लिखने में उन्हें 6 महीने लगे ।
भारतीय संविधान के हर पेज को चित्रों से आचार्य नंदलाल बोस ने सजाया है। मूल संविधान में सुविख्यात चित्रकार नंदलाल बोस द्वारा बनाए गए 22 चित्र हैं। इन चित्रों के आधार पर ही हम समझ सकते हैं कि हमारे संविधान निर्माताओं के मन मस्तिष्क में कैसी आदर्श परिकल्पना भारतीय समाज की रही होगी। इन चित्रों की शुरुआत मोहनजोदड़ो से होती है। फिर वैदिक काल के गुरुकुल, महाकाव्य काल के रामायण में लंका पर प्रभु श्री राम की विजय, गीता का उपदेश देते भगवान श्री कृष्ण, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, सम्राट अशोक द्वारा बौद्धिक धर्म प्रचार, मौर्य काल, गुप्त वंश की कला जिसमें हनुमान जी का दृश्य है। विक्रमादित्य का दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय, उड़िया मूर्तिकला, नटराज की प्रतिमा, भागीरथ की तपस्या से गंगा का अवतरण, शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह जी और महारानी लक्ष्मी बाई, गांधी का दांडी मार्च और नौआखली में दंगा पीड़ितों के बीच गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, हिमालय का दृश्य, रेगिस्तान का दृश्य एवं महासागर का दृश्य इन चित्रों में शामिल हैं।
इसके अलावा इसके प्रस्तावना पेज को सजाने का काम राममनोहर सिन्हा ने किया है। वह नंदलाल बोस के ही शिष्य थे।
हमारा संविधान भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित करता है जो अपने नागरिकों को न्याय, समानता और स्वतंत्रता का आश्वासन देता है तथा भाईचारे को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। 26 नवंबर 1949 संविधान को अपनाए जाने के पश्चात संविधान सभा को भंग कर दिया गया था लेकिन आम चुनाव होने तक अंतरिम संसद के रूप में कार्य करने की अनुमति प्रदान की गई।
समाजवादी समाज की स्थापना में आने वाली कई कानूनी अड़चनों को दूर करने के लिए संविधान सभा के सदस्यों ने ही 1951 में प्रथम संविधान संशोधन करके संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा। जिसमें शामिल कानूनों को न्यायिक पुनर्विलोकन के दायरे से बाहर किया गया। इसलिए भारतीय संविधान के आलोचक कहते हैं कि जिस संविधान सभा ने भारत के लोगों को अधिकार दिए थे उन्होंने नौवीं अनुसूची को जोड़कर उन अधिकारों को वापस छीनने का प्रयास किया है।
आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन द्वारा 1976 में प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष, समाजवादी एवं अखंडता शब्दों को जोड़ा गया और अनुच्छेद 51-क के रूप में एक नया भाग-4-क मूल कर्तव्यों के रूप में संविधान में जोड़ा गया। मूल रूप से दस मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध किया गया था, बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा ग्यारहवां मूल कर्तव्य भी जोड़ दिया गया।
आपातकाल के पश्चात 44वें संविधान संशोधन के माध्यम से 1978 में संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों से हटाकर इसे संवैधानिक अधिकार में बदल दिया गया, जो अब अनुच्छेद 300क के रूप में है। संपत्ति को लेकर न्यायालिका में बढ़ते मामलों को रोकने के लिए 44वाँ संशोधन किया गया। संविधान में अब तक 105 संशोधन हुए हैं।
भारत के संविधान को स्वीकार किए हुए आज हमें 72 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। यह अपने उद्देश्यों और लक्ष्यों में सार्थक सिद्ध हुआ है। इस संविधान दिवस के उपलक्ष्य में हम भारत के लोगों को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम हम अपने संविधान प्रदत्त अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों के प्रति भी जागरुक रहेंगे तथा अन्य सभी को भी जागरूक करेंगे, तभी संविधान और अधिक सार्थक सिद्ध हो पाएगा।
(लेखक युवान विधि संस्थान के निदेशक हैं)