संस्कार स्थलों पर यूं उड़ेगा संस्कृति का मजाक तो कैसे सुरक्षित रहेंगी बेटियां
भारतीय संस्कृति का मजाक : स्कूल में रामलीला का फूहड़ मंचन
जयपुर। हरियाणा के फतेहाबाद जिले के दो अलग–अलग स्कूलों में पिछले दिनों रामलीला के मंचन के दौरान भगवान राम, मॉं सीता और लक्ष्मण का आपत्तिजनक चित्रण किया गया और एक अन्य दृश्य में अश्लीलता दिखाई गई। इस दौरान वहां उपस्थित अध्यापक और बच्चे ठहाके लगाते दिखे।
राजस्थान में पिछले दिनों जयपुर, झुंझुनूं, भीलवाड़ा और जालौर जिले के निजी और सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों ने नाबालिग मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म या यौन उत्पीड़न की घटनाओं को अंजाम दिया। क्या ये दोनों स्थितियां संयोग मात्र हैं या इनमें कोई सम्बंध है? यदि आप इसके पीछे के कारणों को देख और समझ पा रहे हैं तो ठीक है, लेकिन यदि नहीं देख पा रहे हैं तो यह हमारे स्वयं व समाज दोनों के लिए बहुत चिंताजनक स्थिति है।
स्कूल यानी विद्यालय यानी विद्या के मंदिर, बच्चों के संस्कार स्थल माने गए हैं और ऐसा सिर्फ भारत में नहीं है, बल्कि पूरे विश्व में शिक्षण संस्थानों को यही दर्जा प्राप्त है। स्वरूप कुछ अलग हो सकता है, लेकिन भावना यही है कि जो बच्चा स्कूल में पढ़ने के लिए आ रहा है, वह शिक्षित और संस्कारित नागरिक बने। लेकिन जब इन संस्कार स्थलों पर पवित्र धर्मग्रंथों, पौराणिक पात्रों और समाज के लिए आदर्श माने जाने वाले महापुरुषों के साथ भद्दा मजाक होने लगे, हास्य के नाम पर फूहड़ता की जाए या किसी धर्म को नीचा दिखाने के लिए विशेष तौर पर ऐसे प्रयास किए जाएं तो समझा जा सकता है कि उस विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को क्या संस्कार मिल रहे होंगे और जो अध्यापक यह सब होने दे रहे हैं, उनके स्वयं के संस्कार कैसे होंगे।
हरियाणा में हाल में जो घटना हुई, ऐसी घटनाएं हमारे आस–पास के स्कूलों में भी होती रहती हैं और अक्सर हम इसे बच्चों का मजाक समझ कर नजरअंदाज भी कर देते हैं, लेकिन यह जानना और समझना बहुत आवश्यक है कि क्या यह मात्र एक मजाक है या जिस स्कूल में या जिन अध्यापकों द्वारा यह कराया जा रहा है या होने दिया जा रहा है, उनका इसके पीछे कोई विशेष मंतव्य है? यदि इसे जान और समझ लेंगे तथा समय रहते इनका उचित मंच पर विरोध करेंगे तो बहुत सी बातें अपने आप ही स्पष्ट हो जाएंगी।
अब बात करते हैं इन स्थितियों के दुष्प्रभावों की। अकेले राजस्थान में पिछले दिनों यानी लॉकडाउन के बाद खुले स्कूलों में जयपुर, झुंझुनूं, भीलवाड़ा और जालौर में बच्चियों के साथ यौन उत्पीडन की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। प्रदेश के स्कूलों में पिछले कुछ वर्षों में ऐसी घटनाओं में तेजी से बढोत्तरी हुई है। घर, मोहल्लों और सार्वजनिक स्थानों पर तो बच्चियों का ख्याल रखा जा सकता है, लेकिन स्कूलों में तो वे घर के बाद सबसे ज्यादा समय बिताती हैं ऐसे में वहां अपनी मासूम बच्चियों को बचाना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। पुलिस के आंकड़ों पर विश्वास करें तो हर वर्ष ऐसे लगभग दो दर्जन से अधिक मामले दर्ज किये जा रहे हैं।
चूरू में न्यूड फोटो प्रिंसिपल को भेजने की धमकी देकर दुष्कर्म, जोधपुर में फेल करने की धमकी देकर छात्रा से दुष्कर्म करता रहा अध्यापक, डूंगरपुर में 12वीं की छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म और ना जाने ऐसी कितनी ही घटनाएं पिछले दिनों सुर्खियां बनीं।
राज्य विधानसभा के पिछले कार्यकाल में विधायक अभिषेक मटोरिया ने स्कूली बच्चियों के यौन उत्पीड़न के आंकड़े सरकार से मांगे तो सामने आया कि पांच साल में 129 प्रकरण दर्ज हुए हैं। इनमें से 95 प्रकरणों में 138 अभियुक्तों के विरुद्ध चार्जशीट कोर्ट में पेश हुई, जबकि 31 मामलों को जांच के बाद झूठा मानते हुए एफआर लगा दी गई। वहीं दो मामलों की जांच पेंडिंग बताई गई।
यही नहीं इसी वर्ष विधानसभा के चौथे और छठे सत्र में विधायक संयम लोढ़ा की ओर से मांगी गई तीन साल की रिपोर्ट में सामने आया कि वर्ष 2018 से 2020 तक ऐेसे 29 मामले दर्ज हुए हैं और अब कोरोना के बाद स्कूल खुलते ही फिर से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं और ये तो वो मामले हैं जो सामने आ गए, जबकि ऐसे ज्यादातर मामलों में तो अभिभावक या पीड़ित बच्चियां सामने आने की हिम्मत ही नहीं जुटा पातीं।
ये आंकड़े स्पष्ट तौर पर इस बात की ओर संकेत कर रहे हैं कि हमारे स्कूल और शिक्षण संस्थान अब धीरे धीरे संस्कार स्थल कम आधुनिकता के नाम पर लिबरलिज्म के केंद्र बनते जा रहे हैं और भारत में लिबरल होने का अर्थ है हिंदू धर्म को गाली देना, प्राचीन भारतीय संस्कृति का मजाक उड़ाना। समस्या यही नहीं है, स्मार्टफोन और उस पर आसानी से उपलब्ध अनेक प्रकार के कचरे ने भी लोगों की मन:स्थिति को प्रभावित किया है। आज जिस तरह से विभिन्न माध्यमों से कहीं विशेष मंतव्य से तो कहीं अनजाने में सनातन संस्कृति, सनातनी प्रतीकों, महापुरुषों और पौराणिक आख्यानों का अपमान किया जा रहा है, वह आने वाले समय के लिए गम्भीर चुनौती बन रहा है।
इन संकेतों को समय रहते समझना बहुत आवश्यक है, अन्यथा यह चुनौती और बड़ी होती जाएगी। यह सिर्फ बच्चियों या बच्चों की अस्मिता की सुरक्षा से जुड़ा मामला ही नहीं है, बल्कि इसके दुष्परिणाम बहुत व्यापक और दूरगामी हैं, क्योंकि इनके माध्यम से कहीं ना कहीं सिर्फ बच्चों के मन और मस्तिष्क को ना सिर्फ प्रदूषित किया जा रहा है, बल्कि उसके अंदर अपनी जड़ों और संस्कृति से दूर कर एक विशेष विचार भी घुसाया जा रहा है।
इस चुनौती से निपटने का उपाय यही है कि ऐसी बातों को नजरअंदाज ना करें और तुरंत प्रतिक्रिया करते हुए उचित मंच पर विरोध दर्ज कराएं।