भारतीय संस्कृति सदियों से सबकी प्रेरक – डॉ. मोहन भागवत
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि विश्व में कई सभ्यताएं आईं और समाप्त हो गईं। लेकिन भारतीय सभ्यता इसलिए विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है क्योंकि वह सबको साथ लेकर आगे बढ़ने में विश्वास रखती है और यही कारण है कि इसे कोई नष्ट नहीं कर पाया।
संत ईश्वर सम्मान समारोह में सरसंघचालक ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में स्व-प्रेरणा से निःस्वार्थ भाव से कार्य करने वालों को सम्मानित करते हुए कहा कि भारतीय समाज की संरचना ऐसी है कि वह किसी का विरोध नहीं करता। समाज में रहने वाले व्यक्ति पूजा पद्धति को अपनाएं या न अपनाएं, लेकिन समाज का हर व्यक्ति ‘सेवा’ भाव से अपनी क्षमता अनुसार कार्य करता है। यही एक कार्य है जो मनुष्यता का स्वरूप है। मनुष्य में यह भाव तभी आता है, जब वह पूरी तरह से करुणा, सदाचार, पवित्रता और संयम युक्त हो और किसी के विरोध में नहीं बल्कि सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वह सदियों से सबको प्रेरित करती रही है और आगे भी युवा पीढ़ी को प्रेरित करती रहेगी।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद जिस तरह समाज को आगे बढ़ना चाहिए था, वह नहीं हो पाया, लेकिन समाज अगर संवेदनाओं को आधार बनाकर और अहंकार को छोड़कर काम करे तो तेजी से विकास प्राप्त किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनसे कहीं अधिक विगत 200 वर्षों में भारत में हुए हैं। आध्यात्मिक होना और धर्मों को मानना अच्छी बात है, लेकिन अध्यात्म कभी ये नहीं सिखाता है कि तुम मेरे बताए हुए रास्तों पर चलो, बल्कि अध्यात्म हमें सिर्फ रास्ता दिखाता है कि मैं इस रास्ते पर चला तो अच्छा हुआ और यदि आप भी इस रास्ते पर चलेंगे तो आपके साथ भी अच्छा होगा। मनुष्य सिर्फ अपनी संवेदना और विचारों से मनुष्य कहलाता है क्योंकि अगर इन दोनों को अलग कर दिया जाए तो मनुष्य और जानवर में कोई फर्क नहीं होगा। मनुष्य के अंदर सेवा की भावना होती है, जिसके लिए उसे आर्थिक या समाजिक रूप से किसी पर भी निर्भर होने की जरुरत नहीं है क्योंकि अगर हमारी भावना और काम करने का उद्देश्य सच्चा हो तो वह कार्य पूर्ण होने में किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं आएगी।
सरसंघचालक ने कहा कि मनुष्य के पास बुद्धि होना अलग बात है, लेकिन उसे एक सही दिशा देना और एक पथ को अपनाना अलग बात है। सिर्फ आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आचरण से अगर हम अपने परिवार को कोई बात सिखाकर चले गए तो आने वाली कोई भी पीढ़ी भटक नहीं सकती। अपने कर्मों से अपने परिवार पर जो प्रभाव डालते हैं और जो नियम बनाते हैं, आने वाली पीढ़ी अमल करती है और उसे आगे बढ़ाती है। हमारा जीवन सिर्फ पानी के एक बुलबुले जैसा है।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आज हम एक ऐसे विषय पर यहां इकट्ठे हुए हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में सेवा कार्य बिना किसी पहचान और किसी लाभ की इच्छा के निरंतर अपना काम करते जा रहे हैं। नए भारत के निर्माण में इन महानुभावों का विशेष योगदान है, इसलिए उनके लिए हम आभार व्यक्त करते हैं। हम सभी अलग-अलग तरीके से सेवा कार्य का काम करते हैं, लेकिन जिन्हें कोई दायित्व नहीं दिया गया हो, वह स्वयं की जिम्मेदारी निर्धारित करके काम करता है।
उन्होंने कहा कि आज हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि इस अमृत महोत्सव में हम जनजातीय दिवस मना रहे हैं। जिसका अर्थ है कि हम सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को साथ मिलाकर राष्ट्र का निर्माण करने का काम कर रहे हैं। हमें इस बात का गर्व है कि बिरसा मुंडा की जन्म जयंती पर न ही सिर्फ इस वर्ष, बल्कि आने वाले हर एक वर्ष हम जनजाति गौरव दिवस मनाएंगे।
संत ईश्वर फाउंडेशन द्वारा राष्ट्रीय सेवा भारती के सहयोग से संत ईश्वर सम्मान में विभिन्न क्षेत्रों में सेवारत संस्थाओं और महानुभावों को सम्मानित किया गया। हर वर्ष की तरह इस बार भी 12 शख्सियतों और संस्थाओं को संत ईश्वर सेवा सम्मान (₹1,00,000/=) दिया गया।