भारत विभाजन का एजेंडाः मिशनरीज से लेकर वामपंथ तक विषवमन जारी है

भारत विभाजन का एजेंडाः मिशनरीज से लेकर वामपंथ तक विषवमन जारी है

अमित कुमार ठाकुर

भारत विभाजन का एजेंडाः मिशनरीज से लेकर वामपंथ तक विषवमन जारी है
आज मिशनरीज से लेकर वामपंथ तक विषवमन जारी है। वे अपना भारत विभाजन का एजेंडा चला रहे हैं। भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा को जितना खतरा बाहर से है, उससे अधिक खतरा देश के भीतर से है। शिक्षित और राष्ट्रीय संस्कारों से युक्त व्यक्ति ही इस खतरे को समझ सकता है और उसका प्रतिकार कर सकता है ।

 औपनिवेशिक शासकों और विशेषकर ईसाई मिशनरियों का प्रमुख उद्देश्य भारत को पददलित करना और उस पर शासन करना था। औपनिवेशिक शासक जहां अपने राजनैतिक और आर्थिक हितों के लिए भारत को गुलाम बनाए रखना चाहते थे, वहीं ईसाई मिशनरियां सम्पूर्ण भारत को ईसाई बना कर अपने धार्मिक कृत्य को संपन्न करना चाहते थे। दोनों का ही उद्देश्य केवल तब ही पूरा हो सकता था जब भारत के समाज को बाँटा जाए। इसके लिए उन्होंने भारतीय समाज में कुछ भ्रंश रेखाएँ (fault lines) तलाशनी प्रारंभ की। उनकी सबसे बड़ी दिक्कत भारतीय समाज की अंतर्निहित सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता थी जिसे हमारे हजारों वर्षों के सह सामुदायिक जीवन ने विकसित किया था। उत्तर से दक्षिण तक पूर्व से पश्चिम तक रामायण, महाभारत, पुराण, वेद, उपनिषद, बौद्ध और जैन मत की शिक्षायें, संतों और भक्त कवियों की वाणी, रीति रिवाज, पर्व त्यौहार भारतीय समाज को एक मजबूत और  अनूठी सामाजिक और सांस्कृतिक एकता प्रदान करते थे।

जब यूरोपीय शासकों और मिशनरियों को भारतीय समाज में दरार डालने वाली कोई वास्तविक भ्रंश रेखाएँ नहीं मिलीं तो उन्होंने मक्कारीपूर्वक ऐसी नकली भ्रंश रेखाएँ आविष्कृत कीं और भारतीय समाज को बांटने के लिए  उत्तर- दक्षिण, आर्य- द्रविड़, सवर्ण- दलित के विभाजन और झूठे झगड़े पैदा करने शुरू किए। दक्षिण भारत में जहां- जहां ईसाई मिशनरियों का जोर रहा वहीं पर उत्तर के तथाकथित प्रभुत्व, संस्कृत और हिन्दी का विरोध और अलग द्रविड़ राष्ट्र की मांग पुरजोर ढंग से उठायी गयी।

सम्पूर्ण भारत में दलितों और सवर्णों के बीच नफरत पैदा की गयी। इस सबके लिए भरपूर विदेशी धन का प्रयोग किया गया। दक्षिण भारतीयों और दलितों के मन में विष भरा गया कि तुम पीड़ित हो, उत्तर भारतीयों और सवर्णों ने तुम पर बहुत अत्याचार किया है, तुम्हारा शोषण किया है। बाद में उन्होंने  मुसलमानों के रूप में एक और भ्रंश रेखा खोज ली और भारत का विभाजन करवा दिया।

स्वतंत्रता के बाद भारत विभाजन का एजेंडा वामपंथियों के हाथ में आ गया। ईसाई मिशनरियों की ही भांति उनका भी उद्देश्य पूरे विश्व में वामपंथ का प्रचार करना है। जब तक लोग राष्ट्रीय विचार और संस्कृति से गहरे रूप से जुड़े रहेंगे तब तक वे वामपंथ से नहीं जुड़ सकते क्योंकि वामपंथ राष्ट्र के विचार को नकारता है तथा धर्म और संस्कृति को अफीम मानता है। उनका भी उद्देश्य केवल तभी पूरा होगा जब भारत का विखंडन हो। इसीलिए उन्होंने बौद्धिक रूप से यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि भारत एक राष्ट्र है ही नहीं अपितु अनेक राष्ट्रीयताओं का एक समूह है। उन्होंने भारतीय संस्कृति की हर उस बात को लांछित करने का प्रयास किया जिस पर भारतीय गर्व कर सकते थे अथवा जो राष्ट्रीय एकता को मजबूत करती है। वामपंथियों को भी भारत विभाजन के अपने एजेंडे को बढ़ाने के लिये विदेशों से भारी मात्रा में धन मिलता है। वामपंथी हर उस संस्था को बदनाम करते हैं और उस पर प्रहार करते हैं जिस पर भारत की एकता और अखंडता टिकी हुई है जैसे भारत की सेना। उनके झूठे प्रचार का विरोध करने वालों को असहिष्णु कहते हैं और सहानुभूति एकत्र करने के लिए विक्टिमहूड कार्ड खेलते हैं। बची खुची कसर राजनीतिक दलों ने पूरी कर दी जो वोट बैंक की राजनीति के लिए देश के हितों से समझौता करने से भी परहेज़ नहीं करते।

आज भारत की एकता अखंडता और सुरक्षा को जितना खतरा बाहर से है, उससे अधिक खतरा देश के भीतर से है। सही मायनों में शिक्षित और राष्ट्रीय संस्कारों से युक्त व्यक्ति ही इस खतरे को समझ सकता है और उसका प्रतिकार कर सकता है । इसलिए आज आवश्यकता है शिक्षा प्रणाली और शिक्षा नीति में ऐसे बदलावों की जो मैकाले को हमारे विश्वविद्यालयों, विद्यालयों, घरों और हमारी सोच से बाहर कर दे और विवेकानंद, महर्षि अरविंद , जे कृष्णमूर्ति जैसे महापुरुषों को हमारी सोच में प्रतिष्ठित कर दे। उम्मीद की जा सकती है कि देश की नई ऱाष्ट्रीय शिक्षा नीति देश की नई पीढ़ी को भारत केंद्रित बनाने में मदद करेगी।

(लेखक दिल्ली के शिक्षा निदेशालय में इतिहास के प्रवक्ता हैं)

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