मकर संक्रांति पर्व

मकर संक्रांति पर्व

  मनोज गर्ग

मकर संक्रांति पर्वमकर संक्रांति पर्व 

 

मकर संक्रांति त्योहार समयानुकूल तो है ही, साथ ही इसको मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है। सूर्य एक वर्ष में 12 राशियों में भ्रमण करता है। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को संक्रमण या संक्रांति कहा जाता है। इस प्रकार एक वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं, किंतु मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। दक्षिण भारत में इसे ‘पोंगल’ कहा जाता है वहीं पंजाब व जम्मू-कश्मीर में इसकी पूर्व संध्या लोहड़ी के रूप में मनाई जाती है। आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में इसे ‘भोगी’ व असम में ‘बिहू’ के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रांति से सूर्य का उत्तर की ओर क्रमश: बढऩा आरंभ हो जाता है, जिसे सूर्य का उत्तरायण कहा जाता है। सूर्य का उत्तरायण 6 माह तक अर्थात् कर्क संक्रांति तक रहता है। उत्तरायण प्रारम्भ होने पर रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। इस दिन लोग विशेष रूप से पवित्र नदियों, तालाबों तथा जलाशयों आदि में स्नान कर दान-पुण्य से दिन की शुरुआत करते हैं। घर-घर में इस दिन तिल व गुड़ के व्यंजन बनाकर खाए-खिलाए जाते हैं। इस दिन कई स्थानों पर पतंग उड़ाने का भी चलन है। दान-पुण्य से जहां मानसिक शांति मिलती है वहीं तिल-गुड़ के एकमय होने का भाव समाज में स्नेह और मधुरता का संदेश देता है। इस तरह से इस पर्व का आयोजन समाज में समरसता की प्रगाढ़ता को बढ़ाता है। मकर संक्रांति पर्व को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने 6 उत्सवों में से एक उत्सव माना है। इस दिन संघ की सभी शाखाओं पर तिल-गुड़ से बने व्यंजन मिल बांट कर खाए-खिलाए जाते हैं।

ऐतिहासिक संदर्भ में यदि हम देखते हैं तो यह वह दिन है जब गुरु गोविन्द सिंह के 40 शिष्यों ने युद्ध भूमि में वीरगति प्राप्त की थी। ये शिष्य गुरु गोविंद सिंह का साथ छोड़ आए थे। बाद में इन्हें पश्चाताप हुआ तो मुगल हमलावरों के विरुद्ध अद्भुत वीरता दिखा कर इन शिष्यों ने अपना बलिदान दिया। मकर संक्रांति के दिन मुक्तसर (पंजाब) में हर साल इन वीरों की स्मृति में मेला भी भरता है। यह मेला ‘माघी मेला’ के नाम से विख्यात है।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *