ग़ैर-मुस्लिमों के मक्का-प्रवेश पर प्रतिबंध का मूल कारण क्या है?
प्रागैस्लामी अरब में हिंदू-संस्कृति- (भाग-11)
गुंजन अग्रवाल
मक्का शहर में प्रवेश के तीनों मार्गों— 1. ‘अल्-मुअल्लत’ (Al-Muallat) अथवा ‘अल्-हुजून’ (Al-Hujoon), 2. ‘अल्-मुसफ़लह’ (Al-Musfalah) एवं 3. ‘अल्-शुबैकाह’ (Al-Shubaikah)— पर बड़े-बड़े सूचना-पट्ट लगे हुए हैं, जिनपर लिखा है : ‘Muslims only’ अर्थात्, ‘केवल मुसलमानों के लिए’। सऊदी-क़ानून के अंतर्गत मक्का में गै़र-मुस्लिमों के प्रवेश की अनुमति नहीं है। (1) उनके लिए मक्का से बाहर-ही-बाहर निकल जाने के लिए अलग रास्ते बने हुए हैं, जिनपर लिखा है : ‘Obligatory for non-Muslims’ अर्थात्, ‘ग़ैर-मुसलमानों के लिए अनिवार्य (रास्ता)।’
इस्लाम के इतिहास से अनभिज्ञ डॉ. जाक़िर नायक (Dr. Zakir Abdul Karim Naik, b. 1965)-जैसे कुछ इस्लामी-विचारकों का तर्क है कि जिस प्रकार फ़ौजी इलाकों में तमाम नागरिकों को प्रवेश की अनुमति नहीं होती, उसी प्रकार इस्लाम, जो समूची दुनिया और सम्पूर्ण मानवता की रक्षा के लिए है, उसके (धार्मिक दृष्टि से) ‘फ़ौज़ी क्षेत्र’ दो पवित्र स्थल हैं— 1. मक्का और 2. मदीना। इन दोनों जगहों पर जाने की अनुमति सिर्फ़ उन लोगों को है, जो इस्लाम में विश्वास रखते हैं और इस्लाम की सुरक्षा में लगे हुए हैं। ये लोग मुसलमान हैं। (2) इसलिए मक्का और मदीने में प्रवेश के लिए बुनियादी शर्त क़लमा पढ़ना है। क़लमा इस प्रकार है— ला इला-ह इल्लिल्लाह मुहम्मदुर्रसूलिल्लाह, अर्थात्, ‘अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं। मुहम्मद साहब अल्लाह के रसूल (पैग़ंबर) हैं।’
न तो मक्का और मदीना फ़ौज़ी-स्थल हैं और और न इस्लाम मानवता की रक्षा के लिए बना है। अपने स्थापना-काल से लेकर आजतक इस्लाम ने सिवाय लूट-खसोट, आतंक-हत्या-बलात्कार के दुनिया का कौन-सा भला किया है? डॉ. ज़ाक़िर नायक-जैसे इस्लामी-वक्ता सत्य से आँखें मूँदकर पूरी दुनिया की आँखों में धूल झोंक रहे हैं। इस्लाम के इतिहास का उनका ऐसा मनगढ़न्त वर्णन, चन्द मुसलमानों को तो संतुष्ट कर सकता है, किन्तु इतिहास को नहीं।
अस्तु! मक्का और मदीना में ग़ैर-मुस्लिमों का आगमन इसलिए प्रतिबन्धित किया गया है ताकि गै़र-मुस्लिमों (हिंदुओं) को काबा की जानकारी से दूर रखा जा सके। हिंदुओं को मक्का शहर से ही दूर रखने के लिए ऐसी सरकारी व्यवस्था की गई है। सऊदी अरब की सरकार मक्का में गै़र-मुसलमानों के आगमन/भ्रमण पर सख़्ती से नियन्त्रण रखती है। क़ुरआन में भी गै़र-मुस्लिमों को काबा के पास न फटकने देने के लिए बाक़ायदा एक आयत ही है। (3)
(लेखक महामना मालवीय मिशन, नई दिल्ली में शोध-सहायक हैं तथा हिंदी त्रैमासिक ‘सभ्यता संवाद’ के कार्यकारी सम्पादक हैं)
संदर्भ सामग्रीः
- The Hajj: The Muslim Pilgrimage to Mecca and the Holy Places, p.206, by Francis E. Peters, Published by Princeton University Press., 1994, ISBN 069102619X
- कुरआन मजीद, 9.28
- इस्लाम के विषय में गै़र-मुस्लिमों के सवालों के ज़वाब, डॉ. ज़ाक़िर नायक़, अल्-हसनात बुक़्स प्रा.लि., नयी दिल्ली, 2007, ISBN 81-8314-069-6, पृ. 42-43