मजहबी उन्माद में कलात्मकता ढूंढते चेतन भगत
डॉ. अरुण सिंह
दुःख है, चेतन भगत को तनिष्क विज्ञापन का विरोध चुभ गया! यदि मुस्लिम लड़का, हिन्दू लड़की से प्रेमालाप करे, मतांतरण करवा दे, तो चेतन भगत के अनुसार यह कलात्मकता है, राष्ट्रीय भाईचारा है। दशकों से बॉलीवुड में यह भाईचारा ही तो चलता आया है और सनातनी अस्मिता के साथ चोट होती आयी है। कितनी ही घटनायें देश में हो रही हैं, जिनमें हिन्दू लड़कियों को फंसाया जाता है, कुछ मामलों में मार भी दिया जाता है। तब देश का यही प्रिंट मीडिया बेशर्मी से यह छिपा लेता है। समाचार छपता है : युवक ने युवती को सरेआम चाकू से गोदा अथवा गोली मारी। नाम भी नहीं छपता मुस्लिम समुदाय के लड़के का। ऐसे मुद्दों पर आप तो चुप रहते हैं, लेकिन यदि कोई राष्ट्रप्रेमी संगठन या लोग अपनी बात कहते हैं तो आपको चुभता है। और आप लिखते हैं -‘डियर तनिष्क, आप पर हमला करने वाले ज्यादातर लोग आपको किसी भी तरह अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। और उनकी यह सोच इकॉनमी को ऐसी जगह पर पहुंचा देगी कि जल्द ही उनके पास नौकरियां नहीं होंगी और इस तरह वे भविष्य में भी तनिष्क से कुछ भी खरीदने के काबिल नहीं रहेंगे। उनके बारे में फिक्र मत करो।’ अपनी गलती तनिष्क तो समझ गया, उसने अपना विज्ञापन वापस ले लिया। पर आपके प्रति लोगों का नजरिया बदल गया।
आप लुगदी साहित्य लिख कर बड़े लेखक बन गए। फिल्में भी बना दीं बॉलीवुड वालों ने आपके लुगदी साहित्य पर। इयान मैक इवान हो गए आप तो भारत के! अब आप तो वातानुकूलित बुद्धिजीवी हो गए! आपको मेवात में नहीं रहना और न ही जानना है कि वहाँ क्या हो रहा है आपके तथाकथित भाईचारे के नाम पर।
दक्षिणपंथ कट्टर नहीं है, उसके मूल में ही कट्टरता नहीं है। पंरतु सांस्कृतिक अखाड़े में वह भाईचारे के नाम पर हिन्दू अस्मिता के साथ खिलवाड़ नहीं देखना चाहता। यह तो मुग़ल करते आये थे। उनसे पहले भी हुआ और आप भाईचारे के नाम पर वही दिखाना चाहते हैं, जैसे बॉलीवुड ने दशकों से दिखाया है। इसका उल्टा क्यों नहीं? दूसरा पक्ष भी तो देखिए, अच्छा लगेगा! दाग अच्छे नहीं, दाग बुरे हैं। उन दागों को दिखाना भी आवश्यक है।
यह मुद्दा केवल हिन्दू- मुस्लिम युग्म तक ही सीमित नहीं है। मुद्दा वस्तुतः यथार्थ को छिपाने का है और एक षड्यंत्रपूर्ण विमर्श खड़ा करने का है। तथाकथित अल्पसंख्यक समुदाय की ऐतिहासिक और वर्तमान वास्तविकता भी छिपी हुई नहीं है। पर जब बात इस यथार्थ को उजागर करने पर आती है, और झूठे विमर्श का भंडाफोड़ किया जाता है, तो इसे कट्टरता का नाम दे दिया जाता है। फिर तो बोलने और लिखने की स्वतंत्रता रही ही कहाँ? यदि भ्रामक व षड्यंत्रपूर्ण राष्ट्रीय भाईचारे का विरोध करना कट्टरता है, तो दुनियाभर में आतंक फैलाने वालों, ईश निंदा के नाम पर गला काटने वालों, हिंदू मंदिरों को शौचालय बनाने वालों की मानसिकता को क्या कहेंगे? बांग्लादेश का एक मुस्लिम क्रिकेटर भारत में काली के मंदिर में पूजा कर लेता है तो उसे भयवश अपने देश में सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगनी पड़ती है। यह है मजहबी उन्माद जिसे कट्टरता कहा जाता है। जिस देश में लाखों हिन्दू दरगाहों में जाते हैं, वहाँ का बहुसंख्यक समाज कभी उन्मादी नहीं रहा। यथार्थ को छिपाना और उसके उजागर कर दिए जाने पर उसे कट्टरता कहना ही मजहबी उन्माद व वामपंथ की पहचान है।
Chetan Bhagat writes only for entertainment . He doesn’t have respect for our Sanatan religion . His support proves that.